रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम में रात के समय दर्द, फड़कना, जलन, झनझनाहट और असहजता महसूस होती है। इससे ग्रसित लोगों को अपने ही पैरों पर कंट्रोल नहीं होता है और न चाहते हुए पैरों को इधर-उधर मूव करना पड़ता है।
ऐसे में पीड़ित की नींद प्रभावित होती है और जीवन पर उसका गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके लिए ली जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी होते हैं, इसलिए इसके इलाज के लिए अल्टरनेटिव तरीका अपनाना उपयुक्त हो सकता है।
आयरन सप्लीमेंट से मिल सकता है लाभ
शोधों में यह बात साबित हुई है कि आयरन का सप्लीमेंट लेने से एक-तिहाई मरीजों को रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम में आराम मिलता है। जिन लोगों को हार्ट से जुड़ी परेशानी है उन्हें अपने कोलेस्ट्रॉल स्तर का पता होना चाहिए। वैसे यह सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह लें। थोड़ी मात्रा में आयरन या अन्य कोई मिनरल जैसे मैग्नीशियम, पोटेशियम, कैल्शियम और फोलेट रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षणों को कम करने में मददगार होते हैं।
डाइट में करें कुछ बदलाव
खाद्य के प्रति संवेदनशीलता भी कई बार रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम को ट्रिगर करने का काम करता है। इसलिए एमएसजी या ग्लूटन को अपने भोजन से बाहर करें। हाइपरटेंशन, डायबिटीज, आर्थराइटिस और अन्य स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां यदि कंट्रोल में न हो तो उससे भी रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम होने का खतरा बढ़ जाता है।
सक्रिय बने रहें
जॉन्स हॉपिंक्स स्कूल ऑफ मेडिसिन के न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ के अनुसार खुली हवा में एक्सरसाइज करने से इंडोर्फिन रिलीज होता है और डोपामाइन में वृद्धि होती है, मांसपेशियों, टेंडन्स की स्ट्रेचिंग होती है। इससे सामान्य तौर पर दिमाग और शरीर को आराम मिलता है। एरोबिक्स और शरीर के निचले हिस्से की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए की जाने वाली तीन हफ्ते की ट्रेनिंग रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षणों को कम करने का काम करती है।
साथ ही अल्टरनेटिव थैरेपी के एक जर्नल के मुताबिक अयंगर योग का अभ्यास करने से इस परेशानी में राहत मिलती है और लगभग आठ हफ्तों के बाद नींद में सुधार होने लगता है। लेकिन एक्सरसाइज का समय सुबह का ही चुनें क्योंकि कई रोगी इस बात की शिकायत करते हैं कि सोने के कुछ समय पहले एक्सरसाइज करने से लक्षणों में सुधार होने की बजाय वे बिगड़ जाते हैं।
दिमाग को दिशा दें
कई बार एंग्जाइटी जैसी समस्या भी रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षणों को बढ़ाने का काम करती है। अपने दिमाग को व्यस्त रखने का काम करें। क्रॉसवर्ड पजल्स, पढ़ना, कार्ड गेम्स, बुनाई या किसी से सकारात्मक बातचीत इस समस्या से बचने में काफी हद तक मददगार हो सकते हैं।
बिस्तर जमाने का तरीका भी डालता है प्रभाव
शोध में भी यह बात सामने आई है कि बिस्तर को किस तरह से जमाया गया है यह बात भी रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षणों पर प्रभाव डालता है। यदि चादरों को बहुत ही कसकर मैट्रेस के नीचे दबाकर बिछाया गया हो तो उसका उससे काफ मसल्स पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इसलिए बैडिंग को लूज ही रखें, ताकि आपके पैर सामान्य स्थिति में आराम कर सके। कई रोगियों का कहना है कि पैरों को कमर से थोड़ा ऊपर उठाकर रखने से राहत महसूस होती है।