मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर। जब देश आजादी के 77वें वर्ष का जश्न मनाने की तैयारियों में जुटा है, तब छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ में एक परिवार अपने पूर्वज के अधिकारों के लिए संघर्षरत है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय मौजीलाल जैन के परिवार को वह सम्मान नहीं मिल पाया, जो उन्हें 50 साल पहले सरकार ने प्रदान किया था।
मनेन्द्रगढ़ के जय स्तम्भ के पास स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के वारिसों ने प्रशासन की उदासीनता से तंग आकर आमरण अनशन शुरू कर दिया है। दया जैन और उनके बेटे, विशाल जैन, इस उम्मीद में जय स्तम्भ के समीप बैठे हैं कि उनकी आवाज़ अंततः शासन तक पहुंचेगी।
क्या है पूरा मामला?
स्वर्गीय मौजीलाल जैन, जिन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया था, को 1974-75 में सरकार द्वारा ग्राम पंचायत लाई में 2.023 हेक्टेयर भूमि दी गई थी। यह भूमि उनके बलिदान और सेवा के प्रतीक के रूप में प्रदान की गई थी। लेकिन दुर्भाग्य से, 50 साल बाद भी उनके वारिसों को इस जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल सका है।
दया जैन, जो स्वर्गीय मौजीलाल जैन की विधवा बहू हैं, ने बताया कि गांव के कुछ दबंगों ने इस जमीन पर कब्जा कर लिया है। उनके परिवार को लगातार धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, और जब भी उनके बेटे वहां जाने की कोशिश करते हैं, उन्हें जान से मारने की धमकी दी जाती है।
अनशन पर क्यों बैठा परिवार?
बीते 12 अगस्त 2024 को कलेक्टर डी राहुल वेंकट को ज्ञापन सौंपने के बावजूद भी जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो मजबूर होकर दया जैन और उनके बेटे अनशन पर बैठ गए। इससे पहले, 29 जुलाई 2024 को भी एसडीएम मनेन्द्रगढ़ को ज्ञापन सौंपा गया था, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं निकला।
दया जैन ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा कि उनके ससुर के निधन के बाद से ही उनके परिवार को इस भूमि का लाभ नहीं मिल पाया है। उनके पति कैलाश चन्द्र जैन का भी निधन हो चुका है, और अब उनकी मानसिक रूप से बीमार बेटे अमित जैन और परिवार के अन्य सदस्यों की देखभाल की जिम्मेदारी उनके ऊपर है।
क्या होगा आगे?
अनशन पर बैठे इस परिवार की न्याय की मांग अब प्रशासन के सामने एक चुनौती बन गई है। क्या प्रशासन नैतिकता के आधार पर उनकी जायज मांगों को पूरा करेगा, या फिर उन्हें और लंबा संघर्ष करना पड़ेगा?
मनेन्द्रगढ़ के जय स्तम्भ पर बैठा यह परिवार न केवल अपने पूर्वज के सम्मान की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल बन गया है कि कैसे आज भी कुछ परिवार अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने को मजबूर हैं।