लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी का वो मास्टरस्ट्रोक, जिसने भाजपा की दाल गलने नहीं दी

नई दिल्ली. बंगाल में विधानसभा चुनाव की तरह भाजपा ने लोकसभा चुनाव भी पूरी ताकत के साथ लड़ा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद एक इंटरव्यू में भरोसा जताया था कि बंगाल में पार्टी का सबसे शानदार प्रदर्शन होने वाला है। इतने कॉन्फिडेंस के बावजूद आखिर क्या वजह रही कि भाजपा पिछले चुनाव के आंकड़े से भी घट गई। जी हां, लोकसभा चुनाव 2024 में टीएमसी को 29, भाजपा को 12 और कांग्रेस को एक सीट मिली है।

आई-पीएसी के सह-संस्थापक और निदेशक प्रतीक जैन की मानें तो पश्चिम बंगाल में महिलाओं को नकद सहायता देने वाली योजना ‘लक्ष्मी भंडार’ इस चुनाव में ममता बनर्जी के लिए पासा पलटने वाली साबित हुई। I-PAC एक परामर्श एजेंसी है जो चुनाव और राजनीति में तृणमूल कांग्रेस को अपनी सेवाएं देती है। जैन ने कहा, ‘उम्मीदवारों का गलत चयन भी भाजपा के खराब प्रदर्शन का एक कारण हो सकता है जिसके कारण उसे राज्य की 42 लोकसभा सीट में से महज 12 पर सफलता मिली है।

जैन को उनके करीबी पीजे के तौर पर जानते हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने तृणमूल का साथ छोड़ा तो पीजे की संस्था ने अपनी सेवाएं देनी शुरू की। काउंटिंग से पहले प्रशांत किशोर के भविष्यवाणी के जिक्र पर जैन ने हंसते हुए कहा, ‘मैं पहले चुप रहा, हालांकि बंगाल के लिए मेरा आकलन किशोर की भविष्यवाणी से काफी अलग था। अगर मैं तब बोलता तो मुझे सीधे मेरे पूर्व बॉस के खिलाफ खड़ा कर दिया जाता।’ पीके ने कहा था कि भाजपा पश्चिम बंगाल में अपनी पिछली 18 सीट की संख्या में सुधार करेगी और संभव है कि वह 30 की संख्या तक भी जा सकती है।

50 प्रतिशत वोटरों को सीधा फायदा

जैन ने कहा कि ममता बनर्जी की महिला-केंद्रित लाभार्थी योजनाएं जैसे ‘लक्ष्मी भंडार’, ‘कन्याश्री’ और ‘सबुज साथी’ ने तृणमूल के पक्ष में हवा का रुख बदल दिया। विशेष रूप से बंगाल के ग्रामीण इलाकों में काफी असरदार रहा। उन्होंने कहा कि राज्य में लगभग 50 प्रतिशत मतदाता महिलाएं हैं और इनमें से करीब 2.3 करोड़ आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को अभी अकेले ‘लक्ष्मी भंडार’ से 1000 रुपये की मासिक सहायता मिलती है। जैन ने कहा, ‘इस धनराशि से न केवल उनकी वित्तीय समस्याएं दूर हुईं, बल्कि इससे राज्य की ग्रामीण महिलाओं का सशक्तीकरण भी हुआ।’

भाजपा क्यों फेल रही?

भाजपा का प्रचार महिला केंद्रित होने के बावजूद वोटरों को आकर्षित क्यों नहीं कर पाया? इस सवाल पर जैन ने कहा, ‘उनका प्रचार अभियान मोटे तौर पर नकारात्मक था और संदेशखाली के ईर्द-गिर्द सिमटा हुआ था। कुछ लोग ही उसपर विश्वास करते थे और जब स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो आया तो भाजपा के दावे की पोल खुल गई और यह उनके ताबूत में आखिरी कील साबित हुई। जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लखपति दीदी के दावे की बात है तो हमें बंगाल में इस योजना से एक लाभाथी नहीं मिल सकी।’

कैंडिडेट चुनने में हो गई गलती

जैन ने कहा कि भाजपा ने उम्मीदवारों के चयन में भी गलती की। उन्होंने कहा, ‘जब भाजपा ने अपनी सूची जारी की तो हम हैरान रह गए। दिलीप घोष को बर्धमान-दुर्गापुर में शिफ्ट करने से न केवल पार्टी को वह सीट गंवानी पड़ी, बल्कि दो अतिरिक्त सीटें भी गंवानी पड़ीं… मेदिनीपुर की, जहां से घोष सांसद थे और आसनसोल की, जहां मेदिनीपुर में घोष की जगह लेने वाली अग्निमित्रा पॉल के पास लड़ने का मौका था।’

हालांकि जैन ने माना कि वह एग्जिट पोल से घबरा गए थे, जिसमें राज्य में भाजपा की भारी जीत की भविष्यवाणी की गई थी। उन्होंने कहा, ‘हमने खुद से सवाल करना शुरू किया और सोचा कि हमने क्या गलती की है।’ उन्होंने कहा कि एजेंसी के आंतरिक आकलन के अनुसार तृणमूल के कम से कम 23 सीट पर जीतने की संभावना थी। जैन ने बताया कि इस साल जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद संगठन ने फिर से अपनी रणनीति पर काम करना शुरू किया था क्योंकि एक आंतरिक सर्वे में सामने आया कि इसकी वजह से बंगाल में भाजपा के पक्ष में पांच प्रतिशत और वोट जा सकते हैं।

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