
नई दिल्ली। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित एक पत्र में स्वास्थ्य कारणों और चिकित्सकीय सलाह का हवाला देते हुए संविधान के अनुच्छेद 67(a) के तहत तत्काल प्रभाव से अपने पद से त्यागपत्र देने की घोषणा की। अपने पत्र में उन्होंने लिखा, “स्वास्थ्य की प्राथमिकता और चिकित्सकीय सलाह का पालन करते हुए, मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से त्यागपत्र दे रहा हूं।” उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और संसद के सभी माननीय सदस्यों के सहयोग और स्नेह के लिए आभार जताया। धनखड़ ने कहा कि उपराष्ट्रपति के रूप में उन्हें जो अनुभव, दृष्टिकोण और सम्मान मिला, वह उनके लिए जीवन भर की पूंजी रहेगा। उन्होंने भारत के अभूतपूर्व आर्थिक विकास और वैश्विक मंच पर बढ़ते प्रभाव को देखकर संतोष जताया और देश के उज्ज्वल भविष्य पर अटूट विश्वास जताया।
धनखड़ भारत के ऐसे तीसरे उपराष्ट्रपति बने हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। इससे पहले वराहगिरि वेंकट गिरि ने 1969 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया था, जबकि कृष्ण कांत का 2002 में कार्यकाल के दौरान निधन हो गया था। जगदीप धनखड़ ने 6 अगस्त 2022 को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराकर देश के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। उन्हें कुल 528 वोट मिले थे जबकि अल्वा को 182 वोट प्राप्त हुए थे। उपराष्ट्रपति बनने से पहले वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में कार्यरत थे।
धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा गांव के स्कूल से प्राप्त की और फिर चित्तौड़गढ़ सैनिक स्कूल में स्कॉलरशिप के माध्यम से दाखिला लिया। उनका चयन नेशनल डिफेंस एकेडमी में भी हुआ था, लेकिन उन्होंने वहां नहीं जाने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने जयपुर के महाराजा कॉलेज से बीएससी (ऑनर्स) और राजस्थान यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की। वकालत के क्षेत्र में उन्होंने जयपुर में रहते हुए राजस्थान हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस की। 1979 में उन्होंने राजस्थान बार काउंसिल की सदस्यता ली और 1990 में राजस्थान हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बने। वह 1987 में राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी चुने गए।
जगदीप धनखड़ की राजनीति में प्रवेश की कहानी भी दिलचस्प रही है। वे पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की राजनीति से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हीं के माध्यम से सक्रिय राजनीति में आए। वर्ष 1989 में देवीलाल के 75वें जन्मदिवस के अवसर पर धनखड़ राजस्थान से 75 गाड़ियों का काफिला लेकर दिल्ली पहुंचे थे। उसी वर्ष के अंत में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें जनता दल से झुंझुनू सीट से टिकट मिला और वे संसद पहुंचे। वीपी सिंह की सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।
जगदीप धनखड़ का राजनीतिक और संवैधानिक जीवन बहुआयामी रहा है। एक किसान परिवार से निकलकर देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचना उनके संघर्ष और मेहनत का प्रतीक है। उपराष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल को संसदीय गरिमा, शालीनता और प्रभावी संवाद के लिए याद किया जाएगा। अब जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, तो राजनीतिक हलकों में उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं।