नई दिल्ली. केरल उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने एक आदेश में कहा कि पत्नी के नाम पर लॉकर में रखे गए सोने के गहनों को पति या पति के परिवार को नहीं दिया जा सकता है और इसीलिए तलाक की कार्रवाई के दौरान इसकी वसूली भी नहीं की जा सकती है।
केरल उच्च न्यायालय ने एक परिवार अदालत के आदेश के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया। जिसमें दहेज के पैसे और सोने के गहने वापस पाने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था, जो उसने दावा किया था कि उसने अपने पति को शादी के समय दिया था।
याचिकाकर्ता पत्नी ने बताया कि उसका विवाह 2002 में हुआ था। पत्नी ने कहा कि सगाई के दिन उसके पति को 5 लाख रुपये की नगद राशि भी विवाह के समय दी थी। शादी के दिन पति को 100 तोले सोने के आभूषण दिए गए। साथ ही, पत्नी के नाम पर लॉकर बुक करने के लिए पति को 1 लाख रुपये दिए गए जहां इन्हें रखा गया था। महिला ने दावा किया कि मेरे पिता ने पति को 2 लाख रुपये दिए ताकि वह मेरे नाम पर एक घर खरीद सकें।
केरल उच्च न्यायालय की एक पीठ जिसमें न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पी.जी अजित कुमार शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस बात के पर्याप्त सबूतों के अभाव में शादी के समय पत्नी को प्रदान किए गए सोने के गहने उसके पति या ससुराल वालों को सौंपे गए थे, तो इस कानून के तहत उन्हें दहेज रोकथाम अधिनियम 1961 के तहत वापस पाना मुमकिन नहीं होगा।
जानें क्या है दहेज निषेध अधिनियम की धारा 7
उच्च न्यायालय के सामने जो मुख्य सवाल आया वह यह था कि दहेज के पैसे और सोने के गहने वापस लिए जा सकते हैं या नहीं। ऐसा इसलिए था क्योंकि 1961 के दहेज निषेध अधिनियम की धारा 7 कहती है कि दहेज देना या प्राप्त करना अवैध है। अदालत ने पहले इस सवाल पर विचार किया कि क्या दहेज के रूप में दिए गए पैसे और सोने के गहने की वसूली के लिए डिक्री मांगी जा सकती है, क्योंकि कानून द्वारा निषिद्ध होने पर ऐसा लेनदेन शून्य होगा । दहेज निषेध अधिनियम की धारा 7 के तहत दहेज लेना या देना प्रतिबंधित है। अधिनियम की धारा 6 के तहत, दहेज लेने वाले का दायित्व है कि वह इसे लाभार्थी को लौटा दे। न्यायालय ने पाया कि अधिनियम की धारा 6 का विधायी उद्देश्य महिला को दहेज में संबंधित व्यक्ति को सौंपे गए धन या आभूषणों की वसूली के लिए सक्षम बनाना था।