रूस के बाद चीन ने भी अपनी कोरोना वायरस वैक्सीन लॉन्च कर दी है। वैक्सीन को चीनी कम्पनी सिनोवेक ने तैयार किया गया है। हालांकि कहा जा रहा है कि रूस और चीन दोनों ने ही वैक्सीन तैयार करने में जरूरी मापदंड पूरे नहीं किये हैं। इधर अमेरिका भी अगले दो से तीन महीनों में वैक्सीन लाने का दावा कर रहा है। भारत की वैक्सीन भी ट्रायल के आखिरी चरण में है। तो क्या इसका मतलब ये है कि 2020 खत्म होने से पहले बाजार में कई तरह की कोरोना वैक्सीन होंगी! जानिए, साल के अंत तक किन देशों के वैक्सीन आ सकते हैं.
सबसे पहले रूस ने इस महामारी की वैक्सीन बनाने का दावा किया था। अगस्त में खुद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसका एलान किया था। उन्होंने अपनी वैक्सीन को ‘स्पुतनिक-वी’ नाम दिया। जो कि रूस के एक उपग्रह का भी नाम है। दावा है कि इस टीके से COVID-19 के खिलाफ इम्युनिटी पैदा होती है, जो कम से कम दो साल तो प्रभावी रहेगी ही। राष्ट्रपति ने अपनी एक बेटी को भी ये वैक्सीन दिलाए जाने की बात कही। हालांकि पश्चिमी देशों से लेकर दुनिया के दूसरे देशों ने भी इस टीके को लेकर खास उत्साह नहीं दिखाया। इसकी वजह ये मानी जा रही है कि रूस ने टीका तैयार करते हुए कई अहम नियमों की अनदेखी की।
यहां तक कि तीसरा ट्रायल पूरा किए बिना ही वैक्सीन लगाई जाने लगी. बहरहाल जो भी हो, फिलहाल इसी वैक्सीन को दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन का दर्जा मिला है. अब स्पूतनिक टीका वहां सिविल सर्कुलेशन में आ चुका है, यानी वहां के नागरिकों को टीका दिया जाने लगा है.
दूसरी वैक्सीन लाने में चीन ने बाजी मार ली. चीन की सिनोवेक बायोटेक ने ये वैक्सीन बनाई है, जिसे कोरोनावेक नाम दिया गया. पेइचिंग ट्रेड फेयर में ये आम लोगों के सामने प्रदर्शन के लिए रखा गया. कंपनी का कहना है कि साल के अंत तक तीसरा ट्रायल पूरा हो जाएगा और ये आम लोगों के लिए आ सकेगी. यहां तक कि सिनोवेक ने वैक्सीन के लिए डोज तैयार करने के लिए फैक्ट्री भी खड़ी कर दी है. वैसे चीन पर आरोप है कि उसने न सिर्फ वैक्सीन बनाने में हड़बड़ी की, बल्कि क्लिनिकल ट्रायल से पहले से ही लोगों को इसके डोज देने लगा. खुद चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने शनिवार को खुलासा किया था कि वह 22 जुलाई से ही अपने लोगों को वैक्सीन की डोज दे रहा है.
वैसे इस साल के आखिर तक कई देश अपनी-अपनी वैक्सीन के आने की उम्मीद जता रहे हैं. इसमें सबसे आगे फिलहाल अमेरिका दिख रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने कहा है कि अक्टूबर के आखिर या नवंबर की शुरुआत में उनके यहां वैक्सिनेशन शुरू हो सकता है. हालांकि विशेषज्ञों का इसे लेकर विरोध भी है. उनका मानना है कि वहां नवंबर में होने जा रहे चुनावों को देखते हुए ट्रंप प्रशासन ऐसा कह रहा है. वहीं CDC के मुताबिक अगर वैक्सीन के इमरजेंसी अप्रूवल को अनुमति मिलती भी है तो ये जरूरत को देखते हुए ली जाएगी.
ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड वैक्सीन के शुरुआती दो ट्रायल सकारात्मक रहे हैं और इसके तीसरे चरण का ट्रायल दुनिया के कई देशों में किए जा रहे हैं. इसे लेकर डब्ल्यूएचओ तक ने उम्मीद जताई है. इसी तरह से ऑस्ट्रलिया के मर्डोक चिल्ड्रंस रिसर्च इंस्टीट्यूट की कोरोना वैक्सीन भी उन वैक्सीन में शुमार है, जो क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे चरण में है. ब्रिटेन की कोविशील्ड नाम की वैक्सीन भी तीसरे चरण के ट्रायल में जा चुकी है. इसे यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर बनाया है. इस वैक्सीन को काफी उम्मीद से देखा जा रहा है. फिलहाल अलग-अलग देशों में 10000 लोगों पर इसका ट्रायल हो रहा है.
भारत में Covaxin को हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (Bharat Biotech International Limited) द्वारा ICMR और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (National Institute of Virology) के सहयोग से बनाया जा रहा है. हालांकि इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक ये अभी फेज 2 ट्रायल में ही है. 3 सितंबर से 380 लोगों पर इसका ट्रायल शुरू हुआ है. इसके साथ ही सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी दूसरे चरण के ट्रायल में है. ये कोविशील्ड नाम से वैक्सीन बना रहा है, जिसका दूसरा और तीसरा चरण लगभग साथ-साथ चल रहा है. इसके तहत 1600 लोगों पर ट्रायल हो रहा है.
कहां और किसे पहले मिलेगी वैक्सीन
इसपर लगातार बात हो रही है. अगर पूरी दुनिया में वैक्सीन के लिए हर्ड इम्युनिटी लानी है तो लगभग 4.7 बिलियन डोज की जरूरत होगी. अब एक बार में इतनी वैक्सीन तो बन नहीं सकतीं लिहाजा वैक्सीन के लिए प्राथमिकता तय होगी. लेकिन सबसे पहले ये उस देश को मिलेगी जो दवा निर्माताओं से करार कर पाता है. यानी जो सबसे बड़ी कीमत देकर डोज बुक करा सके, दवा के नियत डोज उसके पास पहुंचेंगे.
अमेरिका और यूके की सरकार ने ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका के साथ पहले ही करार कर लिया है. वैक्सीन बनाने पर इन देशों की सरकारों ने भारी पैसे दिए हैं. खासकर ब्रिटेन ने जितनी फंडिंग की है, उसके साथ सितंबर में अगर वैक्सीन लॉन्च हो जाए तो सबसे पहले ब्रिटेन को 30 मिलियन डोज दिए जाएंगे. बाकी वैक्सीन डोज इनक्यूजिव वैक्सीन अलायंस के तहत आने वाले देशों, फ्रांस, जर्मनी, इटली और नीदरलैंड्स को दिए जाएंगे. यूके सरकार ने ही Pfizer के साथ ही 30 मिलियन डोज के लिए करार किया है. एक फ्रेंच कंपनी Valneva के साथ ये 60 मिलियन डोज पा सकेगी.
कितनी वैक्सीन तैयार होती है हर साल
पूरी दुनिया में हर साल लगभग 8 बिलियन वैक्सीन डोज बनाए जाते हैं. ये अलग-अलग तरह की वैक्सीन्स होतीं हैं, जैसे बच्चों को लगने वाली अनिवार्य वैक्सीन से लेकर फ्लू तक की वैक्सीन. इन वैक्सीन का बनना कम नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये हर साल लाखों जानें बचाती हैं. जैसे WHO के मुताबिक साल 2010 से लेकर 2015 के बीच इनके कारण 10 मिलियन से ज्यादा जानें बचीं. यानी इनका बनना तो जरूरी है ही, साथ ही अब कोरोना का टीका भी तैयार किया जाएगा. इसके लिए दवा निर्माता कंपनियों को अतिरिक्त काम करना होगा. वैसे भारत ही अकेला हर साल लगभग 3 बिलियन डोज बनाता है. माना जा रहा है कि दुनिया के लिए कोरोना का टीका तैयार करने में इसका भी बड़ा योगदान रहेगा.