नई दिल्ली। देश के करोड़ों बिजली उपभोक्ताओं के लिए राहत भरी खबर सामने आ रही है। अगर केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) की योजना जमीन पर उतरती है, तो आने वाले समय में बिजली के दाम कम हो सकते हैं। दरअसल, CERC पावर ट्रेडिंग एक्सचेंजों पर लगने वाली ट्रांजैक्शन फीस को कम और तर्कसंगत बनाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। इसका सीधा असर बिजली की अंतिम कीमत पर पड़ेगा, जिससे आम उपभोक्ताओं को फायदा मिलने की उम्मीद है।
CERC की यह पहल बिजली बाजार को अधिक दक्ष, पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में अहम मानी जा रही है। आयोग का मानना है कि ट्रांजैक्शन फीस में सुधार से न केवल बिजली की खरीद-फरोख्त की लागत घटेगी, बल्कि अलग-अलग पावर एक्सचेंजों में कीमतों के अंतर को भी कम किया जा सकेगा। इससे बाजार में नकदी की स्थिति मजबूत होगी और मूल्य खोज की प्रक्रिया अधिक प्रभावी बनेगी।
जानकारी के मुताबिक, इस सुधार प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से लागू करने का प्रस्ताव है, जिसकी शुरुआत जनवरी 2026 से हो सकती है। इससे पहले जुलाई में CERC ने दो साल से अधिक समय तक चले विचार-विमर्श के बाद बाजार समेकन को मंजूरी दी थी। बाजार समेकन का उद्देश्य देश के विभिन्न बिजली एक्सचेंजों में हो रहे सौदों को एकीकृत व्यवस्था से जोड़ना है, ताकि पूरे बाजार में बिजली की एक समान कीमत तय हो सके।
सूत्रों के अनुसार, दिसंबर 2025 में CERC ने बिजली एक्सचेंजों द्वारा वसूली जा रही ट्रांजैक्शन फीस की समीक्षा से जुड़े एक विचार-पत्र को अंतिम रूप दिया है। इसमें यह परखा जा रहा है कि मौजूदा व्यवस्था, जिसमें प्रति यूनिट अधिकतम दो पैसे तक फीस ली जाती है, क्या उस तेजी से बढ़ते बाजार के लिए उपयुक्त है या नहीं, जो अब एकीकृत मूल्य निर्धारण प्रणाली की ओर बढ़ रहा है।
विचाराधीन प्रस्तावों में अधिकांश ट्रेडिंग सेगमेंट के लिए प्रति यूनिट 1.5 पैसे की फिक्स्ड ट्रांजैक्शन फीस तय करने का विकल्प शामिल है। फिलहाल पावर एक्सचेंज लगभग अधिकतम सीमा के आसपास ही शुल्क वसूल रहे हैं। इसके अलावा, टर्म-अहेड मार्केट (TAM) कॉन्ट्रैक्ट के लिए प्रति यूनिट 1.25 पैसे की कम फीस का प्रस्ताव भी रखा गया है, जो इनके लंबे समय और अपेक्षाकृत कम परिचालन लागत को दर्शाता है।
यदि CERC इन बदलावों को मंजूरी देता है, तो आने वाले वर्षों में बिजली खरीदने की कुल लागत घट सकती है, जिसका सीधा लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचेगा। ऐसे में यह कदम न सिर्फ बिजली बाजार में सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है, बल्कि आम लोगों की जेब पर पड़ने वाले बोझ को भी हल्का कर सकता है।
