रायपुर – 28 सितम्बर को विश्व रेबीज दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन रेबिज के बचाव, प्रबंधन और टीकाकरण के प्रति जागरूकता के लिए पूरी दुनिया में मनाया जाता है । रेबिज दिवस के मौके पर स्वास्थ्य विभाग ने रेबीज से बचाव के लिए पालतू जानवरों के काटने पर घाव को तत्काल साबुन या एंटिसेप्टिक से 15 से 20 मिनट तक बहते पानी से धोने की सलाह दी है। विभाग ने रेबीज से बचने के लिए घर के पालतू जानवरों कुत्ता, बिल्ली या अन्य पशुओं को जरूरी टीका लगवाने की अपील की है। कुत्तों को तीन महीने की उम्र में टीका लगवाना चाहिए। टीके के प्रकार के अनुसार हर तीन वर्ष में इसकी एक अतिरिक्त डोज भी लगवानी चाहिए।
रेबीज से बचाव, इसके प्रबंधन और टीकाकरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए पूरी दुनिया में 28 सितम्बर को हर वर्ष विश्व रैबीज दिवस मनाया जाता है। स्वास्थ्य विभाग के पशु चिकित्सा कन्सल्टेंट डॉ. इंद्र कुमार पटेल ने बताया कि एक बार रेबीज होने के बाद इससे बचा नहीं जा सकता। रेबीज से ग्रसित मरीज के गले की नली चिपक जाती है जिसे हाइड्रोफोबिया कहा जाता है। मरीज को प्यास तो लगती है, लेकिन पानी नहीं पी सकता इसलिए वह पानी से दूर भागता है। डॉ. पटेल ने बताया कि रेबीज के दिमाग में फैलने का असर शरीर के किस अंग में होगा, यह जानवर के काटने पर निर्भर करता है। जख्म से पैर में घाव होने पर बीमारी का असर दिमाग पर देर से होता है। अगर चेहरे में जख्म लग जाए तो रेबीज का प्रभाव जल्दी दिखता है। समय पर रैबीज का इलाज नहीं कराया गया तो यह जानलेवा हो जाती है।
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में रेबीज से बचाव एवं प्रबंधन के बारे में डॉक्टरों द्वारा जानकारी दी जाती है। रेबीज जानलेवा बीमारी है। इसके बावजूद समय पर इलाज से जान बचाई जा सकती है। रेबीज के 97 प्रतिशत मामले संक्रमित कुत्ते के काटने के कारण होते हैं। संक्रमित कुत्ते के अलावा यह बीमारी खरगोश, बिल्ली, बंदर, नेवला, लोमड़ी, सियार या अन्य जंगली जानवरों के काटने या नाखून मारने से भी हो सकता है।
शासकीय अस्पतालों में जानवरों के काटने का सुरक्षित एवं प्रभावी उपचार उपलब्ध है। यदि कोई जानवर काट ले तो घाव को 15 से 20 मिनट तक साबुन, डिटॉल या अन्य एंटीसेप्टिक से बहते पानी में तुरंत धोना चाहिए एवं समय पर उपचार लेने के लिए तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर के परामर्श के अनुसार समय पर पूर्ण टीकाकरण कराएं। जानवरों के द्वारा चाटने, नाखून मारने या काटने के घाव को अनदेखा न करें। कटे हुए घाव पर मिर्ची पाउडर, सरसों का तेल, तेजाब या जलन करने वाले केमिकल न लगाएं। झाड़-फूंक, टोने-टोटके एवं अंधविश्वास से दूर रहें। घाव पर पट्टी बांधे। बच्चों को आवारा जानवरों से दूर रखें। ज्यादातर जानवर सताए जाने पर या आत्मरक्षा के लिए काटते हैं।
रैबीज नियंत्रण के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. धर्मेंद्र गहवई ने बताया कि भारत में रेबीज से प्रतिवर्ष करीब 20 हजार लोगों की मृत्यु हो जाती है। यह जानवरों से मनुष्यों में फैलता है। मनुष्य के शरीर में रेबीज का वायरस रेबीज से पीड़ित जानवर के काटने, उससे होने वाले घाव, खरोच एवं लार से प्रवेश करता है। कुत्ते के काटने के बाद रेबीज के लक्षण एक से तीन महीने में दिखाई देता है। लोगों में जागरूकता बढ़ने से कुत्ते या अन्य जानवरों के काटने पर अब लोग तत्काल अस्पताल पहुंच रहे हैं। इससे रेबीज से होने वाली मौतों में कमी आई है। सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में एंटी-रेबीज टीके उपलब्ध कराए हैं।