भारतीय न्यूज़ टेलीविजन की नई उम्मीद!



FatafatNews Desk: भारतीय टेलीविजन न्यूज़ इंडस्ट्री अपनी मसालेदार खबरों, उसके प्रजेन्टेशन को लेकर कई बार निशाने पर आई है। आरुषि तलवार केस और सुशांत सिंह आत्महत्या मामले में गलत तथ्यों और रिपोर्टिंग पर भी टीवी न्यूज़ चैनल्स को कई बार निशाने पर लिया गया। लेकिन इस बीच टीवी न्यूज़ इंडस्ट्री में कुछ अच्छे बदलाव भी हो रहे हैं। भारत में पहली बार फारेन्सिक जर्नलिज़म की शुरुआत हो रही है। फारेन्सिक जर्नलिज़म यानी फारेन्सिक साइंस पर आधारित तथ्यात्मक क्राइम रिपोर्टिंग। पहली बार फारेन्सिक साइंटिस्ट और क्रिमिनोलोजिस्ट इंद्रजीत राय भारत में किसी भी न्यूज चैनल के साथ जुड़ने वाले पहले विशेषज्ञ पत्रकार बन गए हैं।

इंद्रजीत राय फारेन्सिक साइंस और क्रिमिनोलोजी दोनों विषयों में पोस्ट ग्रेजुएट और फारेन्सिक साइंस के रिसर्चर भी हैं। इंटरनेशनल फारेन्सिक इंस्टीट्यूट और यूनाईटेड नेशन्स आफिस आफ ड्रग्स एंड क्राइम से इन्होंने क्राइम इन्वेस्टिगेशन की अगल-अलग विशेषज्ञताओं में कई दूसरी पढ़ाईयां भी की हैं। जांच-पड़ताल की उच्च शिक्षा लेने के बाद मीडिया में आने के बाद इंद्रजीत भारत के पहले फारेन्सिक पत्रकार बन गए हैं। एबीपी न्यूज़ की रिपोर्टिंग टीम को हेड करने वाले इंद्रजीत भारत के पहले फारेन्सिक शो को होस्ट भी कर चुके हैं।

इन्द्रजीत से जब ये पूछा गया कि आखिर इतनी उच्च शिक्षा के बाद वो मीडिया में क्यों आए तो उन्होंने कहा, असल में उच्च शिक्षा की सबसे ज्यादा ज़रुरत मीडिया में ही है। यहां रह कर आप समाज में बदलाव ला सकते हैं। यहां कुछ नया करने का विकल्प आपके पास हमेशा होता है। मीडिया में आपकी कही गई बात से देश और समाज पर बड़ा असर होता है। मेरी कोशिश मीडिया की साख को बचाना और तथ्यों और वैज्ञानिक जांच पर आधारित रिपोर्टिंग बढ़ावा देना है। मौजूदा रिपोर्टरों के साथ खड़े होकर उन्हें आने वाले वक्त के लिए तैयार करना है। क्योंकि यही रिपोर्टर्स बेहतर समाज बनाने में अपना योगदान दे सकते हैं।
इन्द्रजीत मीडिया के अलावा पुलिस संगठनों को फारेन्सिक साइंस की ट्रेनिंग भी देते हैं। कई विश्वविद्यालयों और पुलिस प्रशिक्षण कालेजों में फारेन्सिक साइंस के लेक्चर के अलावा ये इंटरनेशनल कांफ्रेन्स में फारेन्सिक साइंस के अलग-अलग पहलुओं पर कई रिसर्च पेपर भी लिख चुके हैं।

भारत में पत्रकारिता के भविष्य के बारे में पूछने पर इन्द्रजीत नें कहा कि भारत में पत्रकारिता कभी खत्म नहीं हो सकती क्योंकि यहां की आबादी और सिस्टम के बीच की ज़रुरत को टीवी और अखबार ही पूरा करते हैं। आज भारत में न्यूज़ रिपोर्ट्स की विश्वसनीयता इसलिए सवालों के धेरे में है, क्योंकि अब तथ्यों के साथ विश्लेषण की जगह मीडिया केवल विश्लेषण का सहारा ले रही है। ज़रुरत इस बात की है कि राजनीति, स्वास्थ्य, लीगल, क्राइम और दूसरे क्षेत्रों की रिपोर्टिंग के लिए उस क्षेत्र के विशेषज्ञों को मीडिया में लाया जाए। क्योंकि उनकी कही बात और उनका विश्लेषण एक सामान्य व्यक्ति के विश्लेषण से ज्यादा भरोसेमंद और समाज के लिए अहम होगा।