प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 80 साल के बुजुर्ग मुनेश कुमार गुप्ता द्वारा अपनी पत्नी के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा, “इस उम्र में गुजारा भत्ते की लड़ाई दर्शाती है कि मानो कलयुग आ गया है।”
फैमिली कोर्ट, अलीगढ़ ने मुनेश कुमार गुप्ता को आदेश दिया था कि वह अपनी 80 साल की पत्नी, गायत्री देवी को हर महीने ₹5000 का गुजारा भत्ता दें। इस फैसले को चुनौती देते हुए मुनेश कुमार गुप्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
मुनेश कुमार गुप्ता, जो चिकित्सा विभाग में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे, ने वर्ष 1981 में अपनी पत्नी गायत्री देवी के नाम पर मकान बनवाया था। उनके पांच संतानें हैं—तीन बेटियाँ और दो बेटे। हालांकि, वर्ष 2008 में गायत्री देवी ने अपना मकान छोटे बेटे को दान कर दिया, जिससे बड़े बेटे के अधिकार को लेकर विवाद शुरू हो गया।
इसके बाद, पति-पत्नी के बीच का तनाव बढ़ गया और दोनों अलग-अलग बेटों के साथ रहने लगे। गायत्री देवी ने फैमिली कोर्ट में पति के खिलाफ भरण-पोषण का दावा दायर किया, जिसके तहत कोर्ट ने मुनेश कुमार गुप्ता को हर महीने ₹5000 देने का आदेश दिया।
मुनेश कुमार का दावा है कि उन्होंने 2007 में अपनी पत्नी के नाम पर एक लाख रुपये की एफडी कराई थी और इसके बाद भी हर महीने ₹2000 देते थे। फिर भी, पत्नी ने उनके खिलाफ फैमिली कोर्ट में केस दर्ज कर दिया। उनका यह भी आरोप है कि पत्नी और छोटे बेटे ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया है, जबकि गायत्री देवी अब उसी मकान में परचून की दुकान चला रही हैं।
मुनेश कुमार गुप्ता का कहना है कि उनकी मासिक पेंशन ₹13,740 है, जिसमें से ₹5000 गुजारा भत्ता देना अवैधानिक है और वह इस फैसले को चुनौती दे रहे हैं।
जस्टिस सौरभ श्याम शमसेरी की सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए गायत्री देवी को नोटिस जारी किया और उम्मीद जताई कि दोनों पक्ष सकारात्मक समझौते के साथ अगली तारीख पर अदालत में पेश होंगे। फिलहाल, कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं की है, लेकिन अगले हफ्ते सुनवाई होने की संभावना है।