नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तो अगले साल होने हैं लेकिन चार राज्यों में विधानसभा चुनाव खत्म होने के साथ ही अब बीजेपी ने यूपी चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है। इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी पर 2014 के लोकसभा चुनाव जैसा परफॉर्मेंस दोहराने का दबाव तो है ही साथ ही इस चुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भी काफी अहम माना जा रहा है। यही वजह है कि बीजेपी ने अति पिछड़ी जातियों के वोटरों के बीच पहुंच बढ़ाने की कोशिशें तेज कर दी हैं और मोर्चा एक बार फिर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने संभाला है। आइए जानते हैं क्या है यूपी चुनाव में अमित शाह का मास्टरप्लान…
पिछड़ी जातियों का समीकरण
उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ी जाति के वोटरों की संख्या 30 फीसदी है। ईबीसी के अंतर्गत कुर्मी, लोध और कोइरी वोटरो की संख्या ज्यादा है। अब तक के विधानसभा चुनावों में सपा और बसपा इन समुदायों का वोट हासिल करने के लिए क्षेत्रीय नेताओं पर दांव खेलती है, लेकिन बीजेपी की अच्छी खासी पकड़ लोध जाति के वोटरों पर है और इसका कारण कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे नेताओं का इस जाति से होना है। बीजेपी ने इस साल कोईरी को लुभाने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी है। जहां तक कुर्मी वोट का सवाल है तो 2014 के लोकसभा चुनाव में जरूर एकजुट होकर बीजेपी का समर्थन किया था लेकिन इससे पहले ऐसा कम ही देखा गया है।
जाहिर है इन समुदायों पर अब किसी एक पार्टी की मजबूत पकड़ नहीं है और ऐसे में सभी पार्टियां इन्हें अपनी तरफ खींचने में लगी है। यूपी में अगड़ी जातियों के वोटरों का हिस्सा करीब 24 फीसदी है। और राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि ये मतदाता बीजेपी की तरफ झुके हुए हैं। प्रदेश में 18 पर्सेंट मुस्लिम वोटर समाजवादी पार्टी के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं। लेकिन इन सबके बीच अगर कांग्रेस भी अपनी स्थिति में सुधार कर पाई तो इसमें कोई दो राय नहीं कि सेक्युलर वोट में बिखराव होगा और इससे सियासी गणित भी बिगड़ेंगे। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अपना वोट शेयर तो बढ़ा लेगी, लेकिन सीट नहीं बढ़ा पाएगी जो बीजेपी के लिए अच्छा होगा।
अमित शाह का मास्टर प्लान
अमित शाह हमेशा से चुनाव और संगठन की दृष्टि से एक अच्छे रणनीतिकार माने जाते रहे हैं। दलितों को अपने साथ जोड़ने की शुरुआत अमित शाह ने कर दी है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र में एक गांव में एक दलित परिवार के साथ जमीन पर बैठकर खाना खाया। यही नहीं इससे पहले दलित साधुओं के साथ स्नान करके भी अमित शाह ने एक सियासी दांव चला था।
अमित शाह ने सोशल इंजीनियरिंग के जरिए विपक्षी पार्टियों में सेंध लगाने के जिम्मा यूपी बीजेपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को सौंपा है। जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर ही मुख्तार अब्बास नकवी को यूपी से राज्यसभा न भेजकर झारखंड से भेजा जा रहा है और उनकी जगह एक पुराने ब्राह्मण चेहरे शिव प्रताप शुक्ला को लाया गया। जातिगत समीकरणो को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने इस बार 94 जिला अध्यक्षों और नगर अध्यक्षों में से 44 पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति से, 29 ब्राह्मण, 10 ठाकुर, 9 वैश्य और 4 दलित समाज से बनाए हैं ।
आपको बता दें कि पिछले 2 दशकों में जिला अध्यक्ष अधिकतर ब्राह्मण और ठाकुर ही बनाए जाते थे। यूपी में यादव, जाटव और मुस्लिम 35 फीसदी हैं और यह वोटबैंक बीजेपी के पक्ष में कभी नहीं रहा है। यही वजह है कि बीजेपी की नजर बाकी 65 फीसदी पर है और इसी समीकरण को साध कर बीजेपी यूपी में परचम लहराना चाहती है। बीजेपी ने बीएसपी से सीट ना मिलने से नाराज राम भरुहल निषाद को पार्टी में लाने की तैयारी शुरू कर मायावती के वोटबैंक में भी सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर ली है।
शाह ने कार्यकर्ताओं के लिए अटेंडेस कार्ड्स भी जारी किया है। इस कार्ड का फायदा अमित शाह लोकसभा चुनाव में भी देख चुके हैं। नए इलेक्ट्रॉनिक कार्ड्स से नेता और वर्कर्स के पास एक यूनीक नंबर आ जाएगा। इसके जरिए वो लाइब्रेरी, पॉलिसीस और डॉक्यूमेंट्स को देखने के साथ साथ मीटिंग्स की जानकारी भी सीधे बड़े नेताओं को भेज सकेंगे। इससे जमीन पर क्या काम हो रहा है, इसकी जानकारी सेंट्रल लीडरशिप को मिल सकेगी। ऑनलाइन कार्ड्स की ये व्यवस्था जुलाई में पूरी तरह शुरू हो जाएगा। इसके पहले फेज में करीब 1800 डिवीजनल ऑफिस इंचार्ज ऑनलाइन हो जाएंगे। इसके बाद 1.5 लाख वर्कर्स को इससे जोड़ा जाएगा जो बूथ लेवल पर काम करेंगे।
यही नहीं मायावती के कोर वोट बौद्ध भिक्षुओं में भी सेंध लगाने की पूरी तैयारी बीजेपी ने कर ली है। कुछ अन्य छोटी जातियां जिनका प्रभाव कुछ विधानसभा क्षेत्रों तक सीमित है, बीजेपी उन्हे अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। उदाहरण के लिए राजभर जाति का देवरिया, बलिया, आजमगढ़, सलेमपुर और गाजीपुर समेत कई अन्य जिलों में प्रभाव है और बीजेपी इन्हे अपने साथ लाने के फिराक में है। दूसरी तरफ यूपी की एक और पिछड़ी जाति की पार्टी अपना दल के साथ बीजेपी का पहले से ही गठबंधन हैं जिसका प्रभाव प्रतापगढ़, जौनपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और मिर्जापुर में आने वाली लगभग 30 विधानसभा सीटों पर है। जाहिर है इन गठबंधनों के सहारे बीजेपी पूर्वांचल और इससे सटे जिलों की 100 से अधिक सीटों पर काफी मजबूत बनकर उभरेगी।
अखिलेश के सामने कल्याण सिंह
यूपी चुनाव में रैलियों का मोर्चा भी अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह संभालेंगे। अमित शाह अपनी रणनीति के तहत यूपी में स्थानीय नेताओं को तवज्जो देने पर काम कर रही है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने जिला अध्यक्षों की घोषणा में भी इस बात का पूरा ध्यान रखा है। हर ज़िले में जाति के आधार पर ऐसे नेताओं को चुना गया जो पार्टी के काम में बरसों से लगे हैं। यही नहीं, वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के करीबियों को भी जगह दी गई ताकि गुटबाजी पर लगाम कसी जा सके। कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश के सामने कल्याण सिंह को ही मैदान में उतारा जाए।
माना जा रहा है कि अगले एक महीने में अमित शाह और राजानाथ सिह अलग-अलग 6-6 रैलियों को संबोधित करेंगे। शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ‘बड़ी बैठकों’ की योजना भी बनाई है। इन बैठकों में 10,000 पार्टी कार्यकर्ता शामिल होंगे। जाहिर है शाह की रणनीति 2014 के कैंपेन की तरह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की है और यही कारण है कि पीएम मोदी के भरोसेमंद ओम माथुर यूपी में इलेक्शन मैनेजमेंट संभालेंगे। यूपी को BJP के चुनाव प्रचारकों के लिए छह जोन में बांटा जाएगा और सभी जोनल हेड माथुर को रिपोर्ट करेंगे। यही नहीं इस चुनाव में अमित शाह ने किसी भी पीआर एजेंसी के सहयोग से भी इंकार कर दिया है। हालांकि लोकसभा चुनाव में भी अमित शाह ने यूपी में एजेंसी की मदद नहीं ली थी।
आरएसएस का सहारा:
यूपी चुनाव के लिए अमित शाह आरएसएस का भी भरपूर साथ लेंगे। इसी को देखते हुए आरएसएस और अमित शाह ने लखनऊ में केशव प्रसाद मौर्य, ओम माथुर, सुनील बंसल और शिव प्रकाश जैसे नेताओं को सक्रिय कर रखा है, जो पार्टी को जीत दिलाने में रणनीतियां बना रहे हैं। यही नहीं बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता चन्द्रमोहन का भी संबंध संघ से ही है। इस टीम से साफ लग रहा है कि 2014 की तरह की चुनाव कैम्पेन चलाया जाएगा। इससे पहले गुजरात चुनाव में भी इसी तरह का मॉडल अपनाया गया था।
पार्टी ने साफ किया है कि चुनाव में मुख्य मुद्दा विकास विकास का मुद्दा फिर होगा लेकिन जरूरत पड़ने पर पार्ची अक्रामक हिंदुत्व के एजेंडे पर भी आ सकती है। जाहिर है अमित शाह दोनों मुददों को साथ लेकर चलना चाह रहे हैं। अमित शाह के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुटबाजी को रोकना होगा। खासकर सीएम पद की दावेदारी में कई नाम उछाले जाएंगे और इससे गुटबाजी बढ़ने की संभावना लगातार बनी रहेगी।
पिछले आंकडो का हिसाब
यूपी के विधानसभा चुनावों का ट्रेंड पिछले तीन चुनावों में बीजेपी के खिलाफ ही रहा है। 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला सपा और बसपा के बीच रहा है। इन चुनावों में बीजेपी तीसरे स्थान पर रही है। 1991 में पार्टी ने किसी को सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया था और उसे 415 में से 221 सीटें मिली थीं। यह उसका श्रेष्ठ प्रदर्शन था। 2012 के चुनाव में बीजेपी को 15 फीसदी वोट मिले थे जो बसपा के करीब आधे थे। 2012 के यूपी विधान सभा चुनाव में बीजेपी को 15 फीसदी वोट मिले थे और 2014 के लोकसभा चुनाव में उसका वोट शेयर बढ़कर 42.63 फीसदी हो गया। बीजेपी को यहां तक पहुंचाने में राज्य की अति पिछड़ी जातियों के वोटरों की अहम भूमिका रही। परंपरागत रूप से पहले ये मतदाता मायावती के साथ थे और कुछ संख्यां में ये समाजवादी पार्टी के साथ भी