 
        मनोरंजन डेस्क। कंगना रनौत अब तक 4 बार नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी हैं और थलाइवी उनको 5वीं बार नेशनल अवॉर्ड जरूर दिलाएगी। उनके फिल्मी करियर की सबसे बेहतरीन फिल्म है थलाइवी। जे जयललिता के किरदार को कंगना ने शानदार तरीके से निभाया है। पूरे दिल से जयललिता के किरदार को जीया है। थलाइवी को भारतीय सिनेमा की बेस्ट बायोपिक कह सकते हैं। ये फिल्म अजयन बाला की किताब ‘थलाइवी’ पर आधारित है। थलाइवी तमिल, तेलुगु और हिंदी में बनी है। फिल्म में जयललिता के फिल्मी और पॉलिटिकल करियर को जबरदस्त तरीके से दिखाया गया है। हालांकि फिल्म में जयललिता की जिंदगी के वहीं किस्से हैं जो उनका एक मजबूत और जुझारू महिला के तौर पर दिखाते हैं, उनपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और फिर जेल जाने की घटनाओं को नहीं दिखाया गया है। पूरी तरह से जय ललिता का महिमा मंडन आपको फिल्म में दिखता है।
कहानी-
थलाइवी की कहानी तमिलनाडु विधान सभा से शुरू होती है जहां जयललिता (कंगना रनौत) का अपमान किया जाता है। भरी सभा में उनका चीरहरण होता है और फिर अपने विरोधियों को सबक सिखाने का संकल्प लेकर वो नागिन की तरह फुंफकारती हुई विधानसभा से निकलती हैं। इसके बाद कहानी फ्लैशबैक में जाती है। 16 साल की जया अपनी मां संध्या (भाग्यश्री) की तरह फिल्मों में हीरोइन नहीं बनना चाहती लेकिन मां के समझाने और आर्थिक रूप से सबल होने के लिए वो मान जाती है। बहुत जल्द उसे फिल्मों में काम भी मिल जाता है । जया को तमिल सिनेमा के सुपर स्टार एमजेआर (अरविंद स्वामी) की हीरोइन बनने का चांस मिलता है। एमजेआर को जया का बिंदास और निडर व्यक्तित्व पसंद आता है तो वहीं फिल्म दर फिल्म जया के मन में भी एमजेआर के लिए प्यार उभरने लगता है। फिल्मी पर्दे पर दोनों की जोड़ी बहुत लोकप्रिय हो जाती है और इस दौैरान एमजीआर और जया के बीच गहरा रिश्ता बन जाता है लेकिन जब वो राजनीति में उतरते हैं तब उनके सलाहकार इस एक्ट्रा मैरैटिल अफेयर से पीछा छुड़ाने को कहते हैं। एमजीआर और जया का ऱिश्ता खत्म हो जाता है लेकिन 10 साल बाद एक डांस शो के दौरान दोनों की फिर मुलाकात होती है। एमजीआर उसे राजनीति में आने को कहते हैं लेकिन तब जया नहीं मानती लेकिन बाद में कुछ ऐसा होता है कि वो पॉलिटिक्स से दूर नहीं रह पाती । सक्रिय राजनीति में वो उतर जाती है लेकिन जया के लिए असली मुश्किल उस वक्त शुरू होती है जब एमजीआर का निधन होता है। वहीं जया भी महाभारत का दूसरा नाम है। विरोधियों के खिलाफ वो संघर्ष छेड़ देती है और धीरे धीरे तमिलनाडु की जनता भरोसा जीतती है । जया अपने आत्मसम्मान की लड़ाई मजबूती से लड़ती है और राजनीतिक दुनिया में ‘अम्मा’ का दर्जा पाती है । एक फिल्म स्टार से राजनीति की दुनिया का सुपर स्टार बनती है और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेती है।
कलाकारों की एक्टिंग-
कंगना रनौत ने इस फिल्म के लिए बहुत मेहनत की है। फिल्म में 16 साल की लड़की से मिडिल एज तक की जया का किरदार बहुत लगन से निभाया है। उनकी बॉडी एज के साथ पर्दे पर बदलती है, आमतौर पर ऐसा हिंदी फिल्मों में ऐसा कम ही होता है। कंगना ने प्रोथेस्टिक मेकअप करवाया, 20 किलो वजन बढ़ाया और जय ललिता के चाल ढाल और अंदाज को बखूबी उतारा। इसमें कोई शक नहीं कि इस दौर की कंगना सबसे दिग्गज एक्ट्रेस है। कंगना के बाद फिल्म में सबसे ज्यादा ध्यान खींचते हैं अरविंद स्वामी। एमजी रामचंद्रन का किरदार उनसे बेहतर कोई और नहीं निभा सकता था। कंगना के सामने वो डटकर खड़े रहे। राज अर्जुन ने भी एमजीआर के सेक्रेटरी के रोल में जान भर दी। वहीं नासिर भी एम करूणानिधि के रोल में बहुत प्रभावित करते हैं। जयललिता की मां संध्या के रोल में भाग्यश्री भी सटीक हैं। मधु ने एम जी रामचंद्रन की पत्नी का रोल किया है, उनके खाते में ज्यादा सीन नहीं आए हैं।
कैसी है फिल्म-
2 घंटे 33 मिनट की फिल्म में जयललिता की जिंदगी को दिखाना आसान नहीं है लेकिन थलाइवी जयललिता के फिल्म स्टार से मुख्यमंत्री बनने के सफर के साथ पूरा न्याय करती है। ए एल विजय का निर्देशन अव्वल दर्जे का है। फिल्म को उन्होंने इतने सरल तरीके से बनाया कि हर वर्ग के दर्शकों की रूचि थलाइवी में बनी रहेगी। जयललिता की कहानी सब जानते हैं, आपको पता होता है कि फिल्म में आगे क्या होने वाला है लेकिन फिल्म देखते वक्त आप एक भी सीन मिस करना नहीं चाहते है। फिल्म का पहला हाफ जय ललिता के फिल्मी करियर और एमजीआर से उनके निजी रिश्ते पर है फिल्म में असली रोमांच इंटरवल के बाद आता है जब जया अपने राजनीतिक विरोधियों को धूल चटाती जाती है। इस फिल्म की कहानी को बाहुबली फेम लेखक थलाइवी के डॉयलॉग्स आपको सिनेमा हॉल के बाहर भी याद रहते हैं। रजत अरोड़ा ने गजब के संवाद लिखे है जिससे कंगना का कद फिल्म में और बढ़ता चला गया है। वहीं 60-70 के दशक को फिल्म बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है। कलाकारो और सहयोगी कलाकारो के लिबास और लुक पर कमाल का काम किया गया है। स्क्रीन प्ले लिखने के दौरान खास ख्याल रखा गया। फिल्म का संगीत पक्ष बहुत मजबूत नहीं है। ‘चली-चली’ के अलावा कोई ऐसा गाना नहीं जो आपको लंबे समय तक याद रहे। ओवर ऑल थलाइवी कलाकारो की अवॉर्ड विनिंग एक्टिंग और बेहतरीन तरीके से लिखी गई पॉलिटिकल ड्रामा है। इस फिल्म को जरूर देखिए।

 
         
         
         
         
         
        