आलेख- संतोष दास सरल, अम्बिकापुर (+919826165324)
भारत व चीन की सीमा एलएसी पर भारतीय व चीनी सेना के बीच गलवान घाटी सीमा विवाद जैसे जैसे समाधान की ओर बढ़ रहा है. वैसे वैसे प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के तेवर केन्द्र सरकार को लेकर आक्रामक होते जा रहे हैं. उनकी पार्टी के नेता राहुल गांधी का भारत चीन सीमा विवाद पर ट्वीट पे ट्वीट करना तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाने पर लेकर भारतीय सेना की तैयारियों पर ही सवाल खड़े करना कांग्रेस की उस अपरिपक्व राजनीतिक समझ को दर्शाती है. जिसने समय काल व परिस्थितियों के अनुसार प्रतिक्रिया देना अब तक नहीं सीखा. पिछले दो तीन हफ्तों के राहुल गांधी के ट्वीट्स व भारत-चीन विवाद पर कांग्रेस की प्रतिक्रियाओं पर यदि नजर डालें तो इनमे चीन पर जवाबी कार्यवाही करने वाला या सेना का मनोबल बढाने वाला एक भी ट्वीट या बयान शायद ही किसी विपक्षी नेता ने दिया हो.
विपक्ष के बेतरतीब बयानों पर जरा गौर करें…
क्या चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा किया है..? मोदीजी ने भारत के सैनिकों को एलएसी पर निहत्थे क्यों भेजा..? हमारे 20 जवान शहीद हो गए हैं मोदीजी कहाँ छिपे बैठे हैं, बाहर आईए डरिए मत..? चीन आपकी तारीफ क्यूं कर रहा है मोदीजी आप भारत की तरफ हैं या चीन के..? आप कह रहे हैं हमारी सीमा पर कोई नहीं घुसा तो हमारी सेना ने जान क्यों गंवाई..? और ऐसे कई सवाल हैं जिसका जवाब विपक्ष ने सीधे सीधे देश के प्रधानमंत्री से मांगे हैं. स्वस्थ्य लोकतंत्र में सत्तापक्ष से विपक्ष के सवाल जवाब जरूरी भी हैं और वाजिब भी पर सीमा पर तनाव की परिस्थितियों व सही तथ्यों की अनदेखी कर सीमा सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर सवाल करना विपक्ष की गंभीरता पर ही प्रश्न खड़े करता है. भारत चीन सीमा पर चीनी सैनिकों के हाथों 20 भारतीय जवानों की शहादत ने नि:संदेह देश को गहरी पीड़ा दी है जिसका दुःख आम नागरिकों के साथ साथ देश के प्रधानमंत्री को भी निश्चय ही होगा.. पर क्या विपक्ष द्वारा देश की सुरक्षा को ताक में रखकर सामरिक व कूटनीतिक महत्व के प्रश्नों का सरकार से या अप्रत्यक्ष रूप से देश की सेना से सार्वजनिक जवाब मांगना उचित है..??
क्या ऐसा करके वो भारतीय सेना के उस शौर्य जिसने निहत्थे ही अपनी वीरता से 53 चीनी जवानों को मौत के घाट उतार दिया को कम करने की कोशिश नहीं कर रहे..? क्या ऐसे समय में जब कि देश को एलएसी की गलवान घाटी में अपने 20 जवानों की शहादत को याद कर चीन की घटिया हरकत के सामने एकजुट रहने का संदेश देना था. तब देश के प्रधानमंत्री को विपक्ष द्वारा डर से छुपे हुए कहना करोडों भारतीयों का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री की गरिमा को ठेस पहुंचाना नहीं है..?
ऐसा नहीं है कि केन्द्र सरकार के प्रवक्ताओं, मंत्रियों व स्वयं प्रधानमंत्री जी की तरफ से इन सवालों के कोई जवाब न आयें हों, पर विपक्ष को शायद ये जवाब पसंद नहीं आये.. उन्होने सवाल पर फिर सवाल दागा तथा भारत सरकार व भारतीय सेना से चीन पर अपनी रणनीति स्पष्ट करने की मांग की जबकि सच्चाई ये है कि भारत और चीन के बीच 1993, 1996 और 2013 में हुए सैन्य समझौतों में कांग्रेसी सरकारों ने ही एल ए सी के 02 किलोमीटर दूरी तक हथियारों के साथ सेना के गश्त नहीं करने सहित कई अन्य शर्तों पर साईन किए थे. सभी सवालों के स्पष्ट जवाब आने के बावजूद कांग्रेस का इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को टारगेट कर लगातार हमला करते रहना न तो देश की वर्तमान परिस्थितियों में उचित कही जाऐगी और न ही भारत की सैन्य शक्ति का मनोबल बढाने की दृष्टि से..
आपको याद हो इससे पहले भी विपक्ष द्वारा देश की सेना पर सवाल खड़े कर उनकी सैन्य कार्यवाहियों के सबूत मांगे गए थे और तब भी विपक्षी दलों की पूरे देश में फजीहत हुई थी. पाकिस्तान पर भारतीय सेना द्वारा किए गए सर्जिकल स्ट्राइक व ऐयर स्ट्राइक के सबूत मांगते हुए विपक्षी नेताओं ने तो जंगल में गड्ढे दिखाकर सेना का मजाक भी उडाया था और कहा था कि इंडियन एयर फोर्स ने बालाकोट में आतंकी नहीं पेड़ मारे हैं. वैसे देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस द्वारा अपनी ही भारतीय सेना का अपमान करने का सिलसिला बहुत पुराना है. जम्मू कश्मीर में एक बडे कांग्रेसी नेता का अलगाववादियों के सामने सेना का मजाक बनाने का मामला कौन भूल सकता है. जम्मू कश्मीर में सेना पर हमले करने वाले पत्थरबाजों को बचाने की विपक्षी पार्टियों की मुहिम किसे याद नहीं.. पाकिस्तान जाकर पाकिस्तानी सेना के जनरल से गले मिलकर उसे खुदा का नेक बंदा बताने की कांग्रेसी नेता की हरकत को पूरा देश देख चुका है.
ओसामाजी और हाफ़िज साहब जैसे संबोधन से आतंकवादियों को दिए जाने वाले कांग्रेसी सम्मान व समर्थन को देश भूला नहीं है. तेरे कातिल जिंदा हैं अफजल हम शर्मिंदा हैं, का नारा लगाने वालों के साथ कांग्रेस सहित विपक्षियों का खड़ा होना लोगों को आज भी सोंचने पर मजबूर करता है. उरी की आतंकवादी घटना में शहीद हुए जवानों पर प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री मोदी को खून का सौदागर कहने वाले विपक्ष को कौन भूल सकता है. सत्ता के विरोध में सेना का विरोध कर पिछले लोकसभा चुनाव में अपना सब कुछ गंवाने वाली विपक्षी पार्टियों को सद्बुद्धि कब आयेगी यह कोई नहीं जानता पर देश के सामने वर्तमान सत्ता का विकल्प बनने के लिए उसे अपनी सैन्य व राष्ट्र विरोधी छवि सुधारकर राष्ट्रवाद व सामरिक मुद्दों पर भविष्य में सोंच समझकर ही प्रतिक्रिया देनी होगी. राष्ट्रवाद देश का प्राण है, यह भारत के हर नागरिक को अपनी अंतर्निहित देशभक्ति की तीव्र भावनाओं से जोडता है तभी तो जब भी सीमा पर तनाव या युद्ध का माहौल होता है प्रत्येक भारतवासी की रगों में देशप्रेम का लहू उबाल मारने लगता है.. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी यह भलिभांति जानती व समझती है यथा देशभक्ति व राष्ट्रवाद उसके आचरण में भी परिलक्षित होता है.
परंतु कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों को सत्ता के विरोध में कुछ भी बोलने की फ़ितरत के कारण उन्हें अक्सर सेना पर सवाल खड़े कर विरोध करना भारी पड़ जाता है.. बहरहाल वर्तमान परिस्थतियों में विपक्ष की बेतुकी बयानबाजी व दिशाहीन राजनीति विपक्ष द्वारा तात्कालिक राजनीतिक लाभ लेने के लिए बुनी भ्रमजाल ही कही जायेगी जिसमें वो स्वयं ऐसा फंस चुके हैं कि उनका बाहर आ पाना अब मुश्किल लगता है..