गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरु!!! एक ऐसा शब्द जिसे भगवान के समतुल्य बताया गया है। “गुरु” शब्द गु और रु शब्दों से मिलकर बना है। गु का अर्थ है अन्धकार और रु का अर्थ है मिटाने वाला। इस प्रकार गुरु को अन्धकार मिटाने वाला या अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाला कहा जाता है।
“अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः”
अर्थात जिस तरह देवताओ की पूजा की जाती है उसी तरह से गुरु की पूजा भी करनी चाहिये क्यूंकि उसने ही ईश्वर से मिलवाया है। सही गुरु के न होने पर व्यक्ति जीवन में भटक जाता है। स्कूलों में हमारे गुरु (शिक्षक) ही पढ़ना, लिखना, सही आचरण करना सिखाते है। गुरु और सड़क को एक समान माना जाता है, क्योंकि वे दोनो रहते अपनी ही जगह हैं और लोगों को उनकी मंज़िल तक पहुंचा देते हैं।
महान संत कबीरदास ने गुरु के महत्व को इस तरह बताया है-
गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव,
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।
अर्थात यदि भगवान और गुरु दोनों सामने खड़े हो तो मुझे गुरु के चरण पहले छूना चाहिये क्यूंकि उसने ही ईश्वर का बोध करवाया है। गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा है। प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य को अपना गुरु बनाकर ही राजा का पद पाया था। इतिहास में हर महान राजा का कोई न कोई गुरु जरुर था। गुरु और शिष्य का रिश्ता बहुत मधुर होता है।
गुरु ही अपनी शिक्षा देकर हमारा स्वयं से आत्मसाक्षात्कार करवाता है। इसलिए गुरु की महत्वता आजीवन बनी रहती है। देवताओं के गुरु देवगुरु बृहस्पति थे तो अशुरो के गुरु शुक्राचार्य थे। इस तरह समाज के सभी वर्गो को गुरु की आवश्यकता पड़ी। सिख धर्म में गुरु का विशेष महत्व होता है। सिख धर्म के लोग अपने 10 गुरुओ की पूजा करते है और उनके बताये मार्ग पर चलते है।
प्राचीन भारत में आज की तरह स्कूल, कॉलेज न थे। उस समय गुरुकुल प्रणाली द्वारा शिक्षा दी जाती थी। समाज के सभी वर्गों के बालक गुरुकुल जाकर शिक्षा प्राप्त करते थे। वो गुरुकुल (आश्रम) में ही रहते थे, वही रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। ये व्यवस्था आज के ज़माने की आवासीय स्कूल योजना के समान थी। शिष्य ही भिक्षा मांगने का काम करते थे। भिक्षा में जो भी प्राप्त होता था उसे सबसे पहले गुरु को लाकर देते थे। शिक्षा की ऐसी प्रणाली बहुत श्रेष्ठ मानी जाती थी। अनेक राजा महाराजा की संताने भी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करते थे।
वर्तमान परिवेश में निश्चय ही शिक्षा का परिवेश एवं गुरु शब्द के मायने बदल गए हों, मगर गुरु के प्रति श्रद्धा आज भी लोगो में विद्यमान है। आज के भागदौड़ भरे भौतिकतावादी समाज में हमे गुरु की जरूरत बहुत अधिक है। गुरु का महत्व सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में ही नही, बल्कि व्यापक अर्थ में देखने को मिलता है। अब तो आध्यात्मिक शांति के लिए अनेक लोग किसी न किसी गुरु की शरण में चले जाते है। श्री श्री रविशंकर, ओशो, जयगुरुदेव, बाबा रामदेव ऐसे अनेक गुरु है जो अपने व्याख्यानों, भाषणों के द्वारा लोगो को तनाव मुक्त कर रहे है। घर, मकान, धन, सम्पत्ति और भौतिक साधन जुटाने में आज का व्यक्ति अँधा हो गया है। यही वजह है की भारत में आत्महत्या के मामले हर दिन देखने को मिल रहे है। लोगो की जिन्दगी में तनाव भर गया है। छोटी छोटी बातो पर लोग एक दूसरे को जान से मारने को तैयार हो जाते है, लोगो के जीवन में आध्यात्मिक शांति नही है।
गुरु एवं शिक्षक ही वो हैं जो हममें उचित आदर्शों की स्थापना करतें हैं और सही मार्ग दर्शाते हैं. हमें अपने शिक्षक के प्रति सदा आदर और कृतज्ञता दर्शाना चाहिए।
आलेख- प्रभाकर उपाध्याय, शिक्षक
अम्बिकापुर, सरगुजा (छत्तीसगढ़)