चुनाव आते ही मक्खी की तरह भिनभनाते लगते है नेता…

संपादकीय
बरसात आते ही मेढक टरटराने लगते है। गंदगी होते ही मक्खी भिनभिनाने लगती है। फूल खिलते ही भंवरे मंडराने लगते है। रात होते है तारे टिमटिमाने लगते है। तो भला चुनाव आते ही अगर नेता भी मचमचाने लगते है तो कौन सी अचरज की बात है। चुनाव कोई भी नेता या तो अपनी टिकट के लिए या टिकट दिलाने के लिए मखमल की सेज से उतर कर वास्तविक धरातल मे आ जाते है। और पहले अपने आकाओ के महलो की चौखट पर टिकट के लिए माथा टेकते हैए और उसके बाद जनता को कथित जनार्दन की संज्ञा देकर उनकी झोपडी मे माथा टेंकने का प्रपोगंडा रचते है।
विधानसभा चुनाव के बाद ऐसा सब कुछ आगमी लोकसभा चुनाव के लिए भी शुरु हो गया है। नेता घर से कुर्तो की क्रीच बना कर निकल रहे है। और अपने अपने तरीके से अपने नेताओ या खुद की टिकट के लिए मौखिक माहौल बनाने की कवायद मे जुट गए है। नाहे बगाहे ये नेता कभी होटलो मे एकभी चाय दुकान मे या तो कभी पान ठेलो मे अपने दिमाग की उपज जनता के बीच बोने लगे है। अपने अपने स्वार्थ के हिसाब से अपने नेता की उम्मीदवारी के लिए जनता के बीच नब्ज टटोलने के बाद अगर बात नही बनती हैए तो ये नेता अपने चलित फोन मोबाईल से टिकट के लिए चल रही उठक पटक की जानकारी राजधानी मे बैठे लोगो से लेने मे भी कोई कसर नही छोडते है।
इधर उम्मीदवारी तय होने के बाद शुरु होता है असल खेलए वैसे तो इस खेल मे कोई फेल तो कोई पास होता जरुर हैए लेकिन कोशिश करने मे क्या जाता हैए और जब इस कोशिश मे कोई स्वार्थ जुडा होतो फिर कोशिश करने मे क्या जाता है। बस ऐसी ही बातो को आधार बनाकर कुछ नेता अपने प्रत्याशी के प्रचार मे लग जाते है। पर कुछ इसमे अपने फायदे का आभाव देखकर या भीतरघात करने लगते है। या फिर उसको हराने मे अपनी ताकत झोंकने लगते है। वैसे अपनी पार्टी के प्रत्याशी के लिए काम करने वाले बडे नेता तो अपना व्यवसायिक लाभ देकर प्रचार प्रसार मे अपने कुर्ते की क्रीच खराब करते हैए लेकिन कुछ छुटभैया नेता अपने आगामी गुजर बसर के लिहाज से प्रत्याशियो के खास बनकरए जितना बन सके उतना माल खिंचते है। और नेता जी को जिताने से ज्यादा अपनी जेबे किस तरह भरी जाए इस काम मे ज्यादा व्यस्त रहते है।
इस चुनावी लीला मे प्रत्याशी के हार के बाद चापलूसो की फौज नदारद हो जाती है। और हारा हुआ नेता हार की समीक्षा के लिए अपनी परछाई के सहारे हो जाता है। और फिर शुरु होता है जीते हुए दल के नेता को अपने अपने तरीके से अपना बताने का सिलसिला। जिसमे कभी उस नेता की चापलूसी मे दावत की बात होए या फिर उसके सम्मान मे सामारोह करने की बात हो। वैसे राजनिती इसी को कहते हैएए लेकिन इस बीच सबसे अधिक शोषित होती है तो वो जनता जो अपने छोटे छोट स्वार्थ के लिए एक वोट देकर कभी कभी गलती कर बैठती है।

इस दौरान चुनाव प्रचार मे नेता या तो जनता के अशिक्षित और असहाय होने का फायदा उठाकर वोट के बदले नोट देते है या फिर उनकी सुख सुविधाओ मे इजाफा करने के कई झूठे वादे करके वोट मांगते है। ज्यादातर बार लोकतांत्रिक व्यवस्था मे बंधे वोटर जाने अनजाने मे गलत नेता का चुनाव कर बैठती है। तो कभी नेता के प्रलोभन उनके वोट को प्रभावित कर देते है।