
(विशेष टिप्पणी : संजय पराते)
छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग ने बिजली की दरों में भारी वृद्धि की घोषणा की है। बिजली की बढ़ी हुई दरें जुलाई माह से ही लागू कर दी गई है और अगस्त माह के बिल में प्रदेश के गरीब उपभोक्ताओं को बिजली का झटका लगना तय है। इन बढ़ी हुई दरों के जरिए भाजपा राज्य सरकार आम जनता से 523.43 करोड़ रुपए अतिरिक्त वसूलेगी।
हालांकि राज्य सरकार इस वृद्धि को मामूली बताने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह कथित मामूली वृद्धि भी गरीब जनता की जेब पर कितनी भारी पड़ने जा रही है, सरकारी आंकड़ों के सरसरी विश्लेषण से ही साफ दिखता है।
इस समय छत्तीसगढ़ में कुल बिजली खपत लगभग 40264 मिलियन यूनिट है, जिसमें घरेलू उपभोक्ता लगभग 22000 मिलियन यूनिट बिजली का उपभोग करते हैं। घरेलू उपभोक्ताओं के लिए दरों में बढ़ोतरी औसतन 15 पैसे प्रति यूनिट है। इसका अर्थ है कि नियामक आयोग द्वारा कुल 523.43 करोड़ रुपयों के स्वीकृत घाटे में से लगभग 330 करोड़ रुपए घरेलू उपभोक्ताओं से ही वसूल किए जाएंगे।
घरेलू उपभोक्ताओं में भी ज्यादा भार उन लोगों पर डाला गया है, जो गरीब होने के नाते बिजली का कम उपभोग करते हैं। 100 यूनिट तक उपभोग करने वाले लोगों पर, जिनमें से एकल बत्ती कनेक्शन धारी और गरीबी रेखा के नीचे और कम आय वर्ग के लोग शामिल हैं, उन पर 20 पैसे प्रति यूनिट का अतिरिक्त भार डाला गया है, जबकि इससे ज्यादा खपत पर केवल 10 पैसे। इस प्रकार, घरेलू उपभोक्ताओं में भी ऊंचे आय वर्ग को ही राहत दी गई है। इससे इस ऊंचे आय वर्ग को अनाप-शनाप बिजली खर्च करने के लिए ही प्रोत्साहन मिलेगा।
इसी प्रकार, उच्च दाब उपभोक्ताओं (उद्योगपतियों) से केवल 193 करोड़ रूपये ही अतिरिक्त वसूले जा रहे हैं। इसलिए इस वर्ग के लिए बिजली दरों में प्रति यूनिट वृद्धि मात्र 10 पैसे ही है। भाजपा सरकार का यह दावा कि इस तबके पर प्रति यूनिट औसतन 25 पैसे का भार डाला गया है, सरासर गलत है।
कृषि क्षेत्र के लिए प्रति यूनिट 50 पैसे वृद्धि की गई है। इससे प्रदेश में कृषि संकट और बढ़ेगा, क्योंकि उत्पादन लागत में भारी वृद्धि होगी। इस साल किसान पहले से ही डीएपी की कमी और इसकी कालाबाजारी से जूझ रहे हैं और खाद के मद में उनकी लागत दुगुनी हो चुकी है। लेकिन यह बताया जा रहा है कि कृषि क्षेत्र के लिए बिजली दरों में बढ़े दरों का किसानों पर बोझ नहीं पड़ेगा, क्योंकि सरकार सब्सिडी के जरिए इसका भुगतान करेगी। चूंकि यह भुगतान आम जनता से वसूले गए करों से ही किया जा रहा है, इसलिए यह आम जनता पर ही डाला जाने वाला बोझ है।
भाजपा सरकार का दावा है कि बिजली की दरों में प्रति यूनिट औसत वृद्धि केवल 13 पैसे है। इस 13 पैसे को वसूलने के लिए यदि आम जनता पर औसतन 15 पैसे प्रति यूनिट भार डाला जाएं और अमीरों पर औसतन केवल 10 पैसे प्रति यूनिट, तो इससे बिजली दरों में वृद्धि का वर्गीय चरित्र उजागर हो जाता है – अमीरों को राहत और गरीबों पर भार। इससे साफ है कि क्रॉस सब्सिडी की अवधारणा को ही खत्म किया जा रहा है। कॉर्पोरेट आम जनता को क्रॉस सब्सिडी के जरिए सस्ती बिजली देने की अवधारणा के ही खिलाफ है, क्योंकि वे अपने मुनाफे से किसी भी तरह समझौता नहीं करना चाहते।
छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार प्री-पैड स्मार्ट मीटर परियोजना के जरिए बिजली क्षेत्र का पूरी तरह निजीकरण करना चाहती है। बिजली दरों में यह बढ़ोतरी इसी दिशा में बढ़ा हुआ एक कदम है।
(टिप्पणीकार अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क: 94242-31650)