
अम्बिकापुर/दिव्यांश रॉय. छत्तीसगढ़ के उत्तरी इलाके सरगुजा और जशपुर जिले के कई गांव के लोग आज हाथियों के डर के साए में जी रहे हैं. जशपुर के पतरापाली गांव में हाल ही में 21 जंगली हाथियों ने खेत कुचले, घर तोड़े और इन जंगली हाथियों के आतंक से दहशत ऐसी फैली कि लोगों ने रात खुले में बिताई.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ. हाथी अक्सर एक ही रास्ते से वापस आते हैं. उनके चलने का तरीका बदलता नहीं, जैसे उन्हें हर मोड़ याद हो. हर साल छत्तीसगढ़ में 200 से ज़्यादा हाथी गांव/बस्तियों में घुसते हैं, और औसतन 50 लोगों की जान चली जाती है.
हाथी कुछ नहीं भूलते
हाथी किसी भी जगह बिना सोचे नहीं जाते. उन्हें रास्ते याद रहते हैं. पानी कहाँ मिला था, कहाँ खाना मिला था, किस घर से आवाज़ या मार मिली थी. सब याद रहता है. जो रास्ते उनके बुजुर्ग हाथी चलते थे, आज भी वही रास्ते ये नए झुंड को फॉलो करते हैं. चाहे आज वहां मकान बन गया हो या खेती हो रही हो, हाथी अपना रास्ता नहीं भूलते.
सुनने और महसूस करने की शक्ति बहुत तेज़
हाथी दूर से ज़मीन के हल्के-हल्के कांपने को महसूस कर लेते हैं. वो बहुत कम आवाज़ों को भी सुन सकते हैं. जैसे बिजली गिरने की आहट, दूर की गाड़ियों की गूँज या किसी घर में महुआ बनने की महक. इसी वजह से वो कुछ खास घरों या खेतों में बार-बार घुस जाते हैं. जहां उनको पिछली बार खाना मिला, हां कोई खतरा नहीं था, वहां वापस जाते हैं. जहां से उन्हें डर लगा, वहां से दूर रहना सीख लेते हैं.
जंगल गया, रास्ता भी गया
पहले हाथी जंगल के रास्ते से गुज़रते थे. आज वहां सड़क, मकान और खनिज खुदाई हो रही है. उनका रास्ता बंद हो गया है, और अब वो गांव के रास्ते से ही गुजरते हैं. हमने पेड़ काट दिया, ज़मीन ले ली और जंगल छोटा कर दिया. अब हाथियों के पास और कोई रास्ता नहीं है. इसी वजह से ये टकराव बढ़ रहा है, और नुकसान भी.
गांव वाले अब तैयार हो रहे हैं
कुछ जगह पर गांव के लोगों को हाथियों की निगरानी और दूसरो को बताने के लिए तैयार किया गया है. उनके पास धूनी, मशाल और ढोल होते हैं, जिनसे वो दूसरे लोगों को हाथी के आने की जानकारी दे सकते हैं.
कुछ जगह पर नए उपाय लगाए जा रहे हैं, जिसमें रात के समय हाथी के चलने की जानकारी मिल जाए, ताकि लोग पहले से सावधान हो जाएं. पर सब से ज्यादा जरूरी है, हाथियों के रास्ते और जंगल को दोबारा संभालना. जब तक उनको खुद का रास्ता और खाना नहीं मिलेगा, टकराव होता रहेगा.
नतीजा
हाथी घुस नहीं रहे, वो वही रास्ते ले रहे हैं जो उनके लिए हमेशा थे. फर्क सिर्फ इतना है कि हमने वो रास्ते बदल दिये. आज हाथी याद रखते हैं कि कहां जाना है. सवाल ये है, क्या हम भी कुछ याद रखेंगे?