जांजगीर-चांपा। निकाय चुनाव अब पैसे वालो के लिए रह गया है. क्योंकि शहर में ना कोई मुद्दे थे, न हीं मतदाताओं ने अपनी समस्या प्रत्याशियों को बताई. अब चुनाव सिर्फ पैसे, दारू, मुर्गा, मिठाई के बल पर लड़े जाएंगे। जिसके पास यह जितना ज्यादा संसाधन होगा वह चुनाव आसानी लड़ पाएगा, प्रत्याशियों के व्यक्तित्व एवं काम का कोई महत्व नहीं रह गया है. प्रत्याशी की छवि एवं मोहल्ले में उसकी पकड़ से मतदाता को भी कोई मतलब नहीं है.
मतदाता के पास सिर्फ चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के मिठाई, दारू, मुर्गा पहुंचने चाहिए. इसी में मतदाता ज्यादा संतुष्ट नजर आ रहे थे. नगरी निकाय चुनाव संपन्न होने के बाद अब प्रत्याशी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. सभी अपने-अपने आंकड़े के हिसाब से जीत रहे हैं. वार्डों में जाति समीकरण बिठा कर सभी प्रत्याशी अपने-अपने जीत के लिए अस्वस्थ हैं। आने वाले समय में चुनाव और भी खर्चीला हो जाएगा. क्योंकि मतदाता के पास ना कोई मुद्दे है, न हीं किसी प्रकार की समस्या, मतदाता मुद्दे से ज्यादा धन बल को महत्व देते हैं। प्रत्याशी जितना ज्यादा खर्च किया मतदाता भी उतना ही उस प्रत्याशी को समर्थन दिया।
मतदाता अपने मोहल्ले की समस्या एवं मुद्दे भूल गए. बड़े नेताओं ने भी कई वार्डो में ऐसे प्रत्याशी उतारे जिनको मतदाता से कोई सरोकार नहीं रहा. वे प्रत्याशी को पहचानने से भी इंकार कर रहे थे. लेकिन धन बल की वजह से धीरे-धीरे मतदाता भी प्रत्याशी को एडजस्ट करते देखा गया. वार्डों में प्रत्याशियों ने पैसे को पानी की तरह बहाया. मतदाता भी मौके का फायदा उठाकर प्रत्याशियों से खूब खर्च कराया. कई वार्डों में तो टीवी, अलमारी के अलावा मोबाइल भी देने की बात सुनाई पड़ी. लेकिन इन सब लुभावने संसाधन के बावजूद चुनाव में मतदाता ठगे गए। मतदाता वार्ड में किसी प्रकार की समस्याओं से प्रत्याशियों को अवगत कराया, न हीं कोई मुद्दे नजर आए. चुनाव में सिर्फ पैसे, दारू, मिठाई, मुर्गा का ही बोलबाला रहा।