
अम्बिकापुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का सुपलगा गांव… यहां शिक्षा व्यवस्था की जो हकीकत सामने आई है, वह सिस्टम की असली सूरत दिखाती है। आधुनिकता और डिजिटल इंडिया के नारों के बीच सुपलगा जरहाडीह के बच्चे आज भी एक किराए के कच्चे मकान में ज़मीन पर बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं। यह स्थिति एक-दो महीने पुरानी नहीं, साल 2018 से जारी है, और अब तक किसी ने इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया।
‘स्कूल आ पढ़े बर जिंनगी ल गढ़ेबर’ का नारा… लेकिन कंधे पर भवन का बोझ नहीं उठा सका सिस्टम
राज्य सरकार का नारा है “स्कूल आ पढ़े बर, जिंनगी ल गढ़ेबर”, यानी स्कूल आओ, ज़िंदगी बनाओ। लेकिन जब स्कूल ही न हो, और पढ़ाई कच्चे झोपड़े में हो, तो ये नारा खोखला नहीं तो और क्या है? जरहाडीह प्राथमिक शाला के पास अपना भवन नहीं है। कुल 13 बच्चे और दो शिक्षक हैं, और सभी गांव के एक छोटे से किराए के कच्चे मकान में स्कूल चला रहे हैं।
2018 से अब तक भवन निर्माण का कोई अता-पता नहीं, शिक्षक अपनी जेब से दे रहे किराया
स्कूल भवन की मांग सालों से की जा रही है, लेकिन शासन-प्रशासन की नींद अब तक नहीं टूटी। हालत ये है कि दोनों शिक्षक अपनी जेब से मकान मालिक को किराया दे रहे हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई किसी तरह जारी रह सके। बरसात के दिनों में हालात और भी बदतर हो जाते हैं, पानी कमरे के अंदर भर जाता है, बच्चे नहीं आ पाते।
न टॉयलेट, न पानी, न बेंच-डेस्क; क्या ऐसी होगी डिजिटल युग की तालीम?
इस स्कूल में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। न शौचालय है, न पेयजल की व्यवस्था, और न ही बैठने की सही व्यवस्था। बच्चों को ज़मीन पर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। ऐसे हालात में स्कूल जाने की प्रेरणा कहां से आएगी?
दीवारों पर लटकी तस्वीरें, लेकिन सवालों से घिरी है ये शिक्षा व्यवस्था
कमरे की दीवारों पर देश के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, राष्ट्रपति और विधायक की तस्वीरें लगी हैं, ताकि बच्चे पहचान सीख सकें। मगर असल सवाल यह है कि क्या इन तस्वीरों से बच्चों का भविष्य संवरेगा, या फिर एक पक्की छत, एक ठोस भवन और जरूरी सुविधाएं ही उनकी तालीम की नींव मजबूत करेंगी?
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा, पहाड़ों के बीच फंसी उम्मीदें
यह इलाका पहाड़ी और दुर्गम है, जहां तक सिस्टम की पहुंच केवल योजनाओं की फाइलों में दिखती है। हकीकत यह है कि यहां शिक्षक संघर्ष कर रहे हैं, और बच्चों का भविष्य अधर में है। क्या यही है ‘नई शिक्षा नीति’ का असली चेहरा?
यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, ग्राउंड रियलिटी है। आज भी भारत में ऐसे सैकड़ों स्कूल हैं जहां बच्चे शिक्षा पाने के लिए रोज़ जद्दोजहद करते हैं। सुपलगा जरहाडीह का यह स्कूल उसी पीड़ा का एक आईना है, जिसमें न विकास झलकता है, न संवेदना, सिर्फ और सिर्फ उपेक्षा।