अम्बिकापुर जिला अस्पताल को मेडिकल कालेज का दर्जा मिलने की लाख कवायद के बाद आखिर क्या वजह है की इस अस्पताल को मेडिकल कालेज किये जाने के रास्ते में बार बार रोड़े आ जाते है.. केन्द्रीय टीम ने अस्पताल में कमियाँ गिनाई थी और उन कमियों को पूरा करने कवायद भी की जा रही थी.. लेकिन फिर भी मामला अधर में लटका हुआ है.. बहरहाल ये सब बाते तो कागजी आंकड़ो की है लेकिन इस अस्पताल की जमीनी हकीकत क्या है..? संभाग मुख्यालय के इस बड़े सरकारी अस्पताल की हालत ये है की रात में यहाँ आपातकालीन चिकित्सा कक्ष या कहे पूरे अस्पताल में एक अदद “आला” भी नहीं होता है..
हमारी टीम देर रात अस्पताल पहुची तो पता लगा की वहाँ डाक्टर के पास आला नहीं है अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में ब्लडप्रेशर चेक करने की मशीन नहीं है.. रात में मरीज तो आ रहे थे लेकिन मरीजो को स्ट्रेचर से वार्ड तक लेजाने वाला वार्ड ब्वाय सो रहा था.. बच्चा वार्ड में स्टाफ नर्से कमरा बंद कर सो रही थी.. और मरीज के परिजन यहाँ से वहां भटक रहे थे.. छोटे से मासूम की हालत नाजुक हो चुकी थी लेकिन कोई उसे देखने वाला नहीं था.. बहरहाल देर रात मीडिया की पहल के बाद स्टाफ ने बच्चे को इंजेक्सन और आक्सीजन लगाया जिससे उसकी हालत में सुधार हुआ..
गौरतलब है की हालही में सरगुजा कलेक्टर ने मेडिकल कालेज अस्पताल में चौबीस घंटे चिकित्सा सुविधा उपलब्ध रहने के निर्देश दिए है लेकिन कलेक्टर के आदेश के बाद भी इनका रवैया जस का तस है.. जाहिर है जिस अस्पताल में मरीजो की जाँच के लिए आला और ब्लड प्रेशर चेक करने की मशीन भी उपलब्ध ना हो उसे मेडिकल कालेज का दर्जा कैसे मिल सकेगा..
दरअसल इन अस्पतालों में पदस्थ जिम्मेदारो को तो अस्पताल की चिकित्सकीय सुविधा से कोई सरोकार होता नहीं है ये अपने परिवार या अपने बच्चो का इलाज तो यहाँ कराते नहीं है फिर भला अस्पताल की व्यवस्था से इन्हें क्या लेना देना.. रहा सवाल नौकरी करने का तो स्वस्थ विभाग के लोग टाइम पास के सिवा और कुछ नहीं करते क्योकी रिटायर होने या नौकरी छोड़ने के बाद उन्हें अपना निजी स्वास्थ केंद्र ही चलाना है..और क्यों ना हो कमाई भी इतनी है..
अब मेडिकल कालेज के जिम्मेदारो का एक और कारनामा बताते है आपको.. इस सम्बन्ध में जब हमने मेडिकल कालेज के अधीक्षक को फोन लगा कर जानकारी लेनी चाही तो महोदय ने आदतानुसार फोन रिसीव नहीं किया.. बहरहाल यह कोई आश्चर्य वाली बात नहीं इस मेडिकल कालेज के जिम्मेदार लोग तो विधायक और नेता प्रतिपक्ष का फोन भी नहीं उठाते है…