घटिया शौचालय-इंजीनियरों को बलि का बकरा बनाने की तैयारी
सुुुरजपुर जिले में शौचालय सही होने का स्टाम्प में मांगा शपथ पत्र
जिला पंचायत सीईओ के फरमान से इंजीनियरों में हड़कंप
सूरजपुर- पूरे सूरजपुर जिले में शौचालयों की धज्जियां उड़ने के बाद अपनी और अधिकारियों की गर्दन बचाने जिला पंचायत सूरजपुर के सीईओ ने इंजीनियरों को बलि का बकरा बनाने की तैयारी कर ली है। व्हाट्सअप ग्रुप में डाले एक फरमान में उन्होंने आरईएस के ईई,समस्त एसडीओ, सब इंजीनियर और तकनीकी सहायकों को एक सप्ताह में जिले के समस्त शौचालयों को सुधार, तकनीकी रूप से सही होने का शपथ पत्र एक जून को स्टाम्प में देने कहा है। सीईओ के इस फरमान के बाद इंजीनियरों में हड़कम्प मचा है क्योंकि शौचालयों को सुधारना असम्भव है।
उल्लेखनीय है कि स्वच्छता अभियान के तहत सूरजपुर जिले में शौचालय निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार किया गया है, कमीशनखोरी की भेंट चढ़ चुके शौचालयों का निर्माण इतना घटिया हुआ है कि वे किसी काम के नहीं हैं। घटिया और अधूरे शौचालयों को पूर्ण और अच्छा बता कई ग्राम पंचायतों को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है।पंचायतों ने उच्च अधिकारियों की सह और कमीशन के दम पर जनहित को दरकिनार कर शौचालयों की धज्जियां उड़ा दी हैं,अधिकारियों ने जमकर झूठी वाहवाही भी लूटी किन्तु अब घटिया शौचालयों और फर्जी ओडीएफ की बातें सामने आने लगी हैं तो अधिकारी मामले में अपनी गर्दन बचाने के जुगाड़ में लग गए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ओडीएफ से संबंधित एक व्हाट्सअप ग्रुप सूरजपुर जिले में संचालित है जिसमें सीईओ जिला पंचायत संजीव झा ने एक पोस्ट के माध्यम से फरमान जारी किया है,फरमान के अनुसार उन्होंने सूरजपुर जिले के आरईएस के ईई,समस्त एसडीओ, सब इंजीनियर और तकनीकी सहायकों को एक सप्ताह में जिले के समस्त शौचालयों को सुधारवाने निर्देशित किया है,इतना ही नहीं उन्होंने सभी से शौचालयों के तकनीकी रूप से सही होने का शपथ पत्र एक जून को स्टाम्प में मांगा है ताकि इंजीनियर ऐसा शपथ पत्र दे देंगे तो शौचालयों में अनियमितता की पूरी जवाबदारी इंजीनियरों की हो जाये और उनकी और अन्य दोषी अधिकारियों की गर्दन बच जाए। चूंकि इंजीनियर तकनीकी व्यक्ति हैं और वे गलत को सही लिख कर दे रहे हैं तो भ्रष्टाचार के लिए दोषी उन्हें ही माना जायेगा न कि संबंधित दोषी अधिकारियों और पंचायतों को,कुल मिलाकर इंजीनियरों को पूरे मामले में बलि का बकरा बनाने की तैयारी चल रही है। जिला पंचायत सीईओ के इस फरमान के बाद जिले के इंजीनियरों में हड़कम्प मचा हुआ है क्योंकि घटिया निर्माण के लिए दोषी न होते हुए भी उन्हें बलि का बकरा बनाने की तैयारी चल रही है तथा एकदम घटिया शौचालय जिन्हें सुधारना संभव ही नहीं उन्हें एक सप्ताह में सुधारने निर्देशित किया जा रहा है।पहले घटिया निर्माण और फिर उन्हें सही न कर पाने की स्थिति में खुद की गर्दन फंसती देख अधिकारियों ने एक नया तरीका यो ढूंढा है लेकिन इससे उनको कितना फायदा होता है समय ही बताएगा। बरहाल जिस योजना को सफल बनाने प्रधानमंत्री ने पूरी ताकत लगा दी है वहीं उन्ही के अधिकारी और नेता योजना की धज्जियां उड़ाने में लगे हैं जिससे सबसे ज्यादा नुकसान यदि किसी का हो रहा है तो वे हैं गाँव के ग्रामीण।
एक हप्ते में क्या क्या सुधारेंगे साहब
व्हाट्सअप के जरिये जिला पंचायत सीईओ ने एक हप्ते में शौचालय सुधारने का निर्देश दिया है किंतु सवाल है कि जब पूरा का पूरा शौचालय ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है तो एक हप्ते में कितना सुधार किया जा सकता है। पानी टँकी के लिए दो हजार का प्रावधान है जबकि बीस ईंट जोड़ छोटा सा टँकी बना दी गयी है,दरवाजे हवा लगते ही टूट जा रहे हैं,दीवाल खड़ा करने नींव नहीं के बराबर है,प्लास्टर,पुताई सब् भगवान भरोसे है और सीईओ ने इन्हें सुधारने का निर्देश दिया है जबकि इन्हें तोड़ फिर से बनाने के अलावा कोई चारा नई है। पूरे जिले में लाखों शौचालय हैं और आरईएस मे इंजीनियर मुट्ठी भर ऐसे में सीईओ का यह आदेश बचकाना सा भी लगता है,यदि शुरू से ही मामले में गम्भीरता दिखाते तो शायद यह स्थिति न होती।
उच्च अधिकारी कर रहे दरवाजों की सप्लाई
शौचालयों के घटिया निर्माण और पैसों के बंदरबांट में पंचायत या निचले कर्मचारी तो मोहरा मात्र हैं जबकि पूरा खेल जिले में बैठे अधिकारी कर रहे हैं। सुनने में तो अटपटा लगेगा लेकिन सच्चाई है कि शौचालयों के लिए दरवाजों की सप्लाई जिले के अधिकारी कर रहे हैं वह भी निहायत ही घटिया। इन शौचालयों के लिए करीब पंद्रह किलो का दरवाजा लगाया जाना है किंतु जो दरवाजे सप्लाई हो रहे उनका वजन पांच किलो से भी कम है साथ ही दरवाजा इतना घटिया है कि हल्की हवा भी बर्दाश्त नईकर पाता है और उखड़ कर गिर जाता है। अब जब अधिकारी ही घटिया सामग्री की सप्लाई धौंस दिखाकर कर रहे तो निर्माण उच्च स्तर के होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
को-ऑर्डिनेटर की भूमिका पर भी प्रश्न चिन्ह
योजना के क्रियान्वयन के लिए केंद्र सरकार ने जिलों में डिस्टिक को-ऑर्डिनेटर और प्रत्येक ब्लॉक में ब्लॉक को-ऑर्डिनेटर की नियुक्ति की है उनका काम शौचालय निर्माण कार्यों का सतत निरीक्षण करें,कार्य गुणवत्ता युक्त कराएं और सही सही रिपोर्टिंग शासन को करें लेकिन वे अपनी भूमिका किस तरह अदा कर रहे हैं शौचालयों की स्थिति से समझ आने लगा है। वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन केंद्र सरकार के प्रति पूरी तरह से करना चाहिए किन्तु वे पूरी तरह से जिले और जनपदों के अधिकारियों के आश्रित नजर आ रहे हैं काम के बदले सिर्फ मेहमान नवाजी कराते नजर आते हैं।पूरे जिले में शौचालयों की दुर्दशा ने को-ऑर्डिनेटर की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है ।