टोल वसूलने में माहिर, जिम्मेदारी निभाने में नाकाम: NHAI और जिला प्रशासन की अनदेखी से छत्तीसगढ़ की सड़कों पर बिखरी गायों की लाशें

कोरबा। देशभर में हिंदुत्व और गायों को लेकर चल रही राजनीति के बीच, छत्तीसगढ़ में गौ माता की स्थिति दयनीय बनी हुई है। राम के ननिहाल कहे जाने वाले इस राज्य में सड़कों पर गायों की मौत का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। जहां हिंदुत्व के ठेकेदार संगठन इस मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठे हैं, वहीं प्रशासन और नेशनल हाईवे अथॉरिटी की लापरवाही खुलकर सामने आ रही है। हाल ही में, अम्बिकापुर-बिलासपुर मार्ग पर एक दर्दनाक घटना हुई, जिसमें सात गायें किसी अज्ञात वाहन के नीचे कुचल दी गईं।

सड़क पर बिखरी लाशें, प्रशासन की निष्क्रियता

कोरबा जिले के कटघोरा से अम्बिकापुर की ओर जाने वाले नेशनल हाईवे 130 पर यह घटना घटी। सुबह के समय सड़क पर करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर एक साथ सात गायें मृत पाई गईं। स्थानीय लोगों द्वारा सूचना दिए जाने के बाद भी हाईवे पेट्रोलिंग वाहन सिर्फ मौके पर खड़ा नजर आया, लेकिन कई घंटों तक मृत गायों को हटाने की कोई पहल नहीं की गई। इस तरह के हादसे छत्तीसगढ़ में आम हो गए हैं, जहां पहले भी कई गायें सड़क पर कुचलकर मारी जा चुकी हैं। यह घटना प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस की लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है, जो इन सड़कों से गुजरने के बावजूद इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं देते।

टोल वसूली तक सीमित हाईवे अथॉरिटी का काम?

राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 130 पर इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) पर सवाल उठ रहे हैं। टोल टैक्स के रूप में मोटी रकम वसूलने वाली इस अथॉरिटी की जिम्मेदारी सड़कों की देखरेख के साथ-साथ मवेशियों को सड़क से हटाने की भी होती है। हालांकि, इस विभाग का ध्यान सिर्फ टोल वसूली तक सीमित दिखाई देता है। अगर NHAI अपने नियमों के अनुसार कार्य करती, तो न सिर्फ सड़कों पर मवेशियों की मौत रोकी जा सकती थी, बल्कि इंसानों की भी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती थी।

हादसों का अड्डा बनती छत्तीसगढ़ की सड़कें

छत्तीसगढ़ की सड़कों पर मवेशियों के कारण हादसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। तेज रफ्तार वाहनों के टकराने से कभी मवेशियों की जान जाती है तो कभी छोटे वाहन इनसे टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं, जिसमें इंसानों की जान चली जाती है। इन हादसों को रोकने के लिए न सिर्फ NHAI को बल्कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस को भी सख्ती बरतने की जरूरत है। यदि समय रहते कदम उठाए जाएं, तो न केवल जान-माल की रक्षा की जा सकती है, बल्कि ऐसी दर्दनाक घटनाओं से भी बचा जा सकता है। यह घटना प्रशासनिक उदासीनता और कर्तव्य में लापरवाही का जीवंत उदाहरण है, जो छत्तीसगढ़ के नागरिकों की सुरक्षा और गौ माता की रक्षा दोनों पर गंभीर सवाल खड़ा करती है।