अम्बिकापुर..(उदयपुर/क्रांति रावत)..जिले के उदयपुर ब्लॉक के अंतर्गत परसा कोल ब्लॉक और हसदेव अरण्य क्षेत्र में स्वीकृत कोल खदानों के विरोध में 03 जिले कोरबा, सरगुजा, सूरजपुर के ग्रामीण जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए.. पिछले 43 दिनों से अनिश्चित कालीन धरना प्रदर्शन पर ग्राम फत्तेहपुर में बैठे हुए है. 14 अक्टूबर से जारी धरना सोमवार को 44वें दिन भी लगातार जारी रहा. धान कटाई का सीजन होने के बावजूद ग्रामीण पूरी तन्मयता के साथ आज भी डटे हुए हैं. प्रदर्शनकारियों की मांग है फर्जी ग्राम सभा के प्रस्ताव से स्वीकृत परसा कोल खदान को रद्द किया जाए.
गौरतलब है कि, पिछले सोमवार को सैकड़ों ग्रामीणों के साथ प्रदेश के विभिन्न सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों ने धरना स्थल पहुंचकर आंदोलन को अपना समर्थन दिया था तथा मंच पर आकर ग्रामीणों के समक्ष जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण को किस तरह बचाया जाए इस पर अपनी बात रखे थे.
गांधीवादी तरीके से शांतिपूर्ण ढंग से जारी धरना प्रदर्शन को तोड़े जाने के लिए. प्रशासन और कोल खनन कंपनी के अपनाए जा रहे. तमाम हथकंडों के बाद भी हसदेव अरण्य में खनन परियोजनाओं के खिलाफ ग्रामीणों का संघर्ष आज 44वें दिन भी जारी है. ग्रामीणों ने कहा कि आदिवासियों की आजीविका व संस्कृति की सुरक्षा और सुशासन के लिए संविधान की पांचवी अनुसूची में प्रावधान हैं. यहां पेसा कानून 1996 लागू है. इनका पालन राज्य सरकार को करना हैं परंतु निजी कंपनियों के मुनाफे के लिए राज्य सरकार इन प्रावधानों का उल्लंघन कर रही हैं.
यहां तक कि इसका लोकतांत्रिक विरोध भी राज्य सरकार को बर्दाश्त नही हैं. इसीलिए प्रशासन के माध्यम से गांव वालों पर दवाब बनाया जा रहा हैं, धरने की जगह को खाली करवाने की कोशिश हुई. जिससे विवश होकर ग्राम फत्तेपुर में अपना आंदोलन जारी रखे हुए है.
ग्रामीणों ने कहा कि हसदेव अरण्य में अब किसी भी खनन परियोजना को एक इंच जमीन नही दी जाएगी. फर्जी ग्रामसभा की जांच, जबरन भूमि अधिग्रहण को रद्द करने एवं खनन परियोजनों को निरस्त करने की मांगो पर ग्रामीणों का आंदोलन जारी रहेगा.
सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आपकी लड़ाई सिर्फ एक दो गांव बचाने की नही हैं. बल्कि छत्तीसगढ़ को बचाने की हैं. हसदेव के जंगल जिस दिन उजड़ गए सरगुजा, सूरजपुर, जांजगीर, कोरबा और बिलासपुर जिला पानी के लिए तरस जाएगा. उन्होंने कहा कि जिस दिन आदिवासियो ने तय कर लिया. उस दिन कोई कंपनी एक इंच जमीन नही ले सकेगी.
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने बनाये गए वनाधिकर कानून को सरकार खत्म करना चाहती हैं. और अंग्रेज जमाने के वन अधिनियम को संशोधित कर और अधिक जन विरोधी बना रही हैं. यह सिर्फ इसलिए हो रहा ताकि हमारे जंगलो को आसानी से कारपोरेट को सौंपा जा सके.
सरगुजा का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या जिस लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र में लोग धरना प्रदर्शन में बैठे है. वहाँ के कद्दावर विधायक और कैबिनेट मंत्री टी एस सिंहदेव है. परंतु मंत्री महोदय ने एक दिन भी यह जानने की कोशिश नही की आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि ग्रामीण इतने दिनों से आंदोलन कर रहे है, धरने पर बैठे है.
सरगुजा सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह को भी लोगों ने अपनी वोट के ताकत से सांसद बनाया परंतु सांसद महोदया ने भी एक दिन भी इनकी सुध लेना उचित नही समझा. सरगुजा संभाग से इतने मंत्री और विधायक है फिर भी लोग आंदोलन को विवश है. मीडिया सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी होने का बाद भी इस बारे में किसी भी सांसद मंत्री विधायक के द्वारा कुछ भी नही कहा जाना समझ से परे है.