जिले में रीपा सेंटर का बुरा हाल…जिला पंचायत CEO कर्मचारियों के भरोसे…मुख्यमंत्री के महत्वकांक्षी योजनाए बेपटरी…

जांजगीर-चांपा...जिला पंचायत सीईओ अपने कर्मचारियों के भरोसे जिले में रीपा सेंटर संचालित कर रही हैं। जिसके चलते वहां काम कर रहे हैं। समूह की महिलाओं को किसी प्रकार से मदद नहीं मिल पा रहा हैं। नहीं कोई उन्हें गाइडलाइन दे पा रहा हैं। मार्केटिंग के अलावा प्रोडक्शन कैसे बढ़ाया जाए यह बताने वाला कोई नजर नहीं आ रहा हैं। मुख्यमंत्री के महत्वाकांक्षी योजनाए सिर्फ पेपर में ही दिख रहा हैं। जमीनी हकीकत कुछ और नजर आ रहा हैं। एक तरह से कहे तो मुख्यमंत्री के महत्वाकांक्षी योजनाएं बे-पटरी हो गया हैं। गौठान व रीपा सेंटर में अधिकांश समूह की महिलाएं काम से असंतुष्ट नजर नही आ रही हैं। जिस तरह सुबह से लेकर शाम तक रीपा सेंटर में मेहनत कर रहे हैं। उसका रिजल्ट उनको उस तरह नहीं मिल पा रहा हैं। गिने-चुने सेंटरों में ही गिनती के सहायता समूह को ही कुछ लाभ दिख रहा हैं। लेकिन, अधिकांश सेंटरों एवं आदर्श गोठनो का हाल बुरा हैं। अब महिला समूह कई जगहो में काम को छोड़ने के मूड में हैं। क्योंकि गौठानो में वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए उन्हें न तो पर्याप्त गोबर मिल रहा हैं और न हीं बनाने के लिए कछुआ मिल पा रहा हैं। स्व सहायता समूह की महिलाएं जो कुकुट पालन में है उनका तो और बुरा हाल हैं। किसी तरह से मार्केटिंग प्रोडक्शन की जानकारी उन्हें नहीं मिल पा रही हैं। मुख्यमंत्री की मनसा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार लाने की हैं। वही अपने स्तर में दर्जनों योजनाएं ग्रामीणों के लिए लेकर आइए। लेकिन, इस काम में जुड़े कर्मचारी एवं अधिकारी मुख्यमंत्री की योजनाओं को पलीता लगाने में लगे। सरकार तो अपनी ओर से इन योजनाओं में करोड़ों खर्च कर रही हैं। लेकिन, जिले के अधीनस्थ अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन सही ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। जिसका परिणाम रीपा सेंटर से मिलने वाला रिजल्ट नहीं देख पा रहा हैं।
सी-मार्ट तक नही पहुँच रहा रीपा से बना समान….
जांजगीर के कचहरी चौक में बने सी-मार्ट की बात करें तो यहां स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाएं समान कम दिखाई देता हैं। तो वही मार्केट का सामान ज्यादा दिखता हैं। जिससे कहा जा सकता हैं कि, यहां रीपा में बनाएं महिला समूह का सामान यहां तक नहीं पहुंच पा रहा हैं। उनके द्वारा बनाए सामानों का मार्केटिंग नहीं होने के कारण उसे आमदनी पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पा रही हैं। सी मार्ट के उपभोक्ता स्व सहायता समूह द्वारा बनाए वस्तुओं की डिमांड करती हैं। तो वहां के संचालक समान नहीं आने का बात कहते हुए मार्केट का सामान खरीदने पर मजबूर करता हैं।