रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राज्य गीत अरपा पैरी के धार से राज्योत्सव 2022 के जश्न की शुरुआत हो चुकी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दीप प्रज्वलित कर राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भी शुभारंभ किया। सीएम बघेल को संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने जनजातीय समूह का प्रतीक चिह्न मांदर भेंट किया।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने आदिवासी नगाड़ा बजाकर इसका औपचारिक उद्घाटन किया। इससे पहले दोनों नेताओं का स्वागत करते हुए गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने गौर मुकुट पहनाया। मांदर की थाप पर मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष थिरक उठे। साइंस कॉलेज मैदान पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सबसे पहले राजकीय गमछा ओढ़ाकर स्वागत किया गया। बाद में उन्होंने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। राज्यगीत गाया गया उसके बाद नगाड़ा बज उठा।
एक साथ दर्शक दीर्घा में बैठे विभिन्न राज्यों से आये कलाकारों ने अपने नगाड़े, तुरही, मांदर, झांझ, चंग आदि को एक साथ बजाया। पूरा माहौल आदिम वाद्य यंत्रों की विविध ध्वनियों से गूंज उठा। इस बीच मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के पोस्टल स्टैम्प का विमोचन किया। वहीं राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव-2021 पर केंद्रित एक कॉफी टेबल बुक का भी विमोचन किया गया। मंचीय औपचारिकता पूरी होते ही देशी-विदेशी नर्तक दलों का मार्चपास्ट शुरू हुआ। मुख्य मंच और दर्शकों के बीच बने एक रैंप से विभिन्न दलों के कलाकार अपनी नृत्य शैलियों की झलक लेकर गुजरे। बैंड ने सारे जहां से अच्छा की धुन बजाई और सबसे पहले मिस्र के लोक कलाकारों ने मार्चपास्ट शुरू किया।
उसके बाद इंडोनेशिया, मालदीव, मोजाम्बिक, मंगोलिया, न्यूजीलैंड, रुस, रवांडा, सर्बिया और टोंगो गणराज्य के नर्तक दल मंच के सामने से गुजरे। उनके बाद भारतीय राज्यों से आये लोक कलाकारों ने अपनी विशिष्ट संस्कृति को पेश करती झलकियां पेश की। शुरुआत आंध्र प्रदेश से हुआ। उसके बाद अरुणाचल प्रदेश, असम, जम्मू कश्मीर, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, लद्दाख सहित विभिन्न राज्यों के कलाकारों ने मार्च पास्ट किया।
मुख्यमंत्री बोले, प्रकृति पर पूरी मनुष्यता का एक जैसा अधिकार
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, मनुष्य का इतिहास जितना पुराना है उतना ही पुराना नृत्य का इतिहास है। दुनियाभर के आदिवासियों की नृत्य शैली, वाद्ययंत्र में समानता है। आदिम नृत्य की यह परंपरा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आई है, इस तरह से हम आज यहां पहुंचे हैं।
इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों की परंपरा को बचाए रखने और पूरी दुनिया की आदिम संस्कृति आगे बढ़ाने और उनका संवर्धन करने से है। उन्होंने कहा, प्रकृति पर पूरी मनुष्यता का एक जैसा अधिकार हो, सभी प्रकृति का संरक्षण करें। विकास की गलत अवधारणा के कारण आज प्रकृति ही खतरे में पड़ गयी है। छत्तीसगढ़ आदिवासियों और किसानों का प्रदेश है। राज्य के आंदोलन में जिन मूल्यों को लेकर आंदोलन हुआ, हमारी सरकार उस सोच को लेकर आगे बढ़ रही है।