रायपुर. छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रविन्द्र चौबे पहले कभी राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे. तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद रविन्द्र चौबे को कैबिनेट मंत्री बनने का गौरव भी प्राप्त है. रविन्द्र चौबे छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे. श्री चौबे 6 बार दुर्ग सम्भाग के साजा सीट से विधायक रहने के बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में चुनाव हार गए .लेकिन 2018 मे हुए विधानसभा चुनाव मे चौबे ने पुरानी हार का बदला लिया और वर्तमान समय मे चौबे 7 वी बार विधायक बनकर विधानसभा पहुँचे है. और उन्हें भूपेश मंत्रीमंडल मे संसदीय कार्य मंत्री समेत कई महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री बनाया गया है.
रविन्द्र चौबे का जन्म 28 मई 1957 को बेमेतरा जिले के साजा तहसील के ग्राम मौहाभाठा में हुआ. स्वर्गीय श्री देवी प्रसाद चौबे के घर मे जन्मे रविन्द्र चौबे की प्रारम्भिक शिक्षा गांव में पूरी हुई. जिसके बाद उन्होने रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्व विद्यालय से बीएससी की डिग्री प्राप्त करके. एलएलबी की उपाधि ली.
रविन्द्र चौबे छात्र जीवन से ही राजनीति में है. वे 1977-78 मे आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज के छात्र संघ अध्यक्ष रहे. इधर क्षेत्र में धीरे धीरे बढ़ती लोकप्रियता के बाद उन्होंने वर्ष 1985 में कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा. और फिर श्री चौबे लगातार 1990, 1993, 1998, 2003,और 2008 तक साजा सीट से विधायक रहे.. लेकिन 6 बार लगातार विधायक रहने के बाद श्री चौबे 2013 में भी कांग्रेस की ही टिकट पर साजा सीट से चुनाव लड़ा..पर इस बार वो भाजपा के लाभचंद बाफना से 5000 वोटो से चुनाव हार गए थे. लेकिन 2018 के चुनाव में रविन्द्र ने राजनैतिक बदला लेते हुए भाजपा के लाभचंद बाफना को 9620 वोट से हराते हुए. सातवी बार साजा विधानसभा से छत्तीसगढ विधानसभा तक पहुंचे.
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चौबे की खास बात यह रही कि वे चुनाव हारने के बाद भी क्षेत्र की जनता के बीच रहे. उन्होंने पांच साल विपक्ष की भूमिका में रहते हुए भी अपना जनसंपर्क अभियान लगातार जारी रखा. जिसका नतीजा आज ये है कि उन्होने चौबे परिवार की परंपरागत सीट को फिर से हासिल करने मे कामयाबी पा ली.
वैसे साजा सीट चौबे परिवार की वजह से कांग्रेस का गढ़ रही है. सातवी बार विधायक बने रविन्द्र चौबे को राजनीति विरासत में मिली है. गौरतलब है कि चौबे के पिता स्वर्गीय श्री देवी प्रसाद 1972 में विधायक बने. और उनके निधन के बाद चुनावी मैदान में उनके बड़े भाई प्रदीप चौबे चुनावी पारी खेलने को उतरे..1977 में प्रदीप चौबे भी विधायक चुने गए. जिसके बाद अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने मे उनकी माँ स्वर्गीय कुमारी देवी ने 1980 मे चुनाव लड़ा और वह भी चुनाव जीत गई. अपनी माँ के बाद रविन्द्र चौबे चुनावी पारी खेलने के लिए मैदान मे उतरे और फिर 1985 मे कांग्रेस पार्टी से चुनाव लडकर जीतने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नही देखा.
रविन्द्र चौबे 2008 में राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे. उन्होनें विपक्ष में रहते हुए. विधानसभा में तत्कालीन रमन सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोला. इतना ही नही चौबे एक सफल रणनीति कार साबित हुए. और कई खेमो से घिरी कांग्रेस के अलग अलग कुनबे को सम्हालने और एकजुट करने में सार्थक प्रयास किया. नतीजा ये हुआ कि 2018 मे कांग्रेस ने रिकार्ड सीटो से छत्तीसगढ मे सरकार बनाई. लेकिन चौबे परिवार के लिए 2013 विधानसभा का नतीजा अप्रत्याशित रहा क्योकि उस साल भाजपा के लाभचंद्र बाफना ने रविन्द्र चौबे को चुनाव हराकर क्षेत्र के 40 साल के इतिहास को पलट दिया. मगर बदले इतिहास के बाद भी रविन्द्र उसी गति पर निरंतर आगे बढ़ते रहे. और 2019 मे बनी कांग्रेस की भूपेश सरकार में संसदीय कार्य के तजुर्बेकार विधायक रविन्द्र चौबे को संसदीय कार्य मंत्री समेत अन्य विभागो का मंत्री बनाया गया.