अम्बिकापुर. सरगुजा जिले मे निवासरत पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोग संरक्षित जाति के कारण राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाते हैं. लेकिन इन दत्तक पुत्रो को अपने हक के लिए बार बार जिम्मेदारों की चौखट मे माथा टेकने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
दरअसल मामला पहाड़ी कोरवा जनजाति के 20 लोगों के मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने का है. जिसके लिए इन्हें बार बार भूखे पेट मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चक्कर लगाना पड़ रहा है..और जिम्मेदार अधिकारी, डाक्टरों की लापरवाही को उनकी व्यस्तता बताकर बचते – बचाते नजर आ रहें हैं.
पहाडो मे बगैर सुविधाओं के रहकर जीवन यापन करने वाले शासन और कुछ सामाजिक संगठनों के प्रयास से धीरे धीरे किसी तरह मुख्य धारा से जुड़ने का प्रयास कर रहें हैं. लेकिन दोनो पैरों से दिव्यांग एक मासूम बेटी के लडखडाते कदम और फिर मां के सहारे संभलते कदम के साथ ही मेडिकल कॉलेज अस्पताल के फर्श पर अपनी बारी का इंतजार कर करते हैं.
बता दे की पहाड़ी कोरवा जनजाति के 20 बच्चे ऐसे हैं. जिनमें से कोई बोल नहीं पाता है. कोई बोलने सुनने दोनों मे असमर्थ है. कई अपने पैरो पर चल नहीं पाते है .और ये सभी लोग अम्बिकापुर मेडिकल कॉलेज मे मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने तीसरी बार आए थे. लेकिन इन्हें सर्टिफिकेट बनाने वाले डाक्टरों की मनमानी की वजह से फिर बैरंग घर लौटना पड़ा.
गांव के सरपंच और अन्य लोगों के सहयोग से इन सभी पीडित लोगों को तीसरी बार इनके गांव आसनडीह से 50 किलोमीटर दूर अम्बिकापुर मेडिकल कॉलेज इसलिए लेकर लाया गया था..कि इन दिव्यांग बच्चों और युवाओं का मेडिकल सर्टिफिकेट बन जाए. लेकिन उनका तीसरा प्रयास भी जाया हो गया. इधर इन 20 पहाडी कोरवा मे नकलू, सकलू और कमलू ऐसे तीन भाई हैं, जिनको दोनो आंखो से दिखाई नही देता.. और जब वो तीसरी बार मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने पहुंचे. तो भी आंखो के डाक्टर ने इन्हे आगे की तारीख दे दी.
गौरतलब है कि जिस मेडिकल कॉलेज मे पहाडी कोरवा जनजाति के मासूम बच्चों को मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने के लिए डाक्टर बार बार बुलाकर अनदेखा कर रहें हैं. वो इलाका प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव का है. जो गाहे बगाहे अपने घर के अस्पताल की व्यवस्था दुरूस्त करने का दावा करते हैं. लेकिन मंत्री जी को शायद ये पता नहीं चलता है..कि उनकी पीठ पीछे उनके विभाग के अधिकारी ही उनको बदनाम करने की साजिश रच रहें हैं.
वही इस पूरे मसले को लेकर फ़टाफ़ट डॉट कॉम की टीम ने अस्पताल प्रबंधन का पक्ष जानने की कोशिश की, तो उन्होंने ऐसे डाक्टरों की लापरवाही पर पर्दा डालने का प्रयास किया और यह कहकर पलड़ा झाड़ लिया कि हो सकता है..मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने वाले डाक्टर कहीं दूसरे काम मे व्यस्त हों!.
बहरहाल मेडिकल कॉलेज के सबसे जिम्मेदार अधिकारी जिनको अपने, डाक्टरों का समय तो महत्वपूर्ण नज़र आता है. पर भूखे प्यासे रहकर सर्टिफिकेट बनाने वाले डाक्टर का इंतजार करने वाले से इनको कोई इत्तेफाक नहीं. वैसे अगर इन संरक्षित जाति के गरीब लोगों की दर्द भरी दांस्ता कोई इनसे बडा जिम्मेदार सुन रहा हो तो ये बताना जरूरी है कि ये तीन बार किसी के रहमो करम से अस्पताल पहुंचे हैं. पहली बार आकर ये आरोप लगाते तो मामला बड़ा नहीं था. बहरहाल स्वास्थ्य मंत्री के घर के समीप डाक्टरों की मनमानी पर कब ब्रेक लगेगा. ये तो वही बताएगें..