कवर्धा… छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में तनावपूर्ण शांति है.. पुलिस ने 70 लोगों की पहचान की थी.. इन सभी को बुधवार देर रात तक गिरफ्तार कर लिया गया है… जबकि, अन्य उपद्रवियों की पहचान के लिए वीडियो फुटेज खंगाले जा रहे हैं… क्षेत्र में तनाव की स्थिति को देखते हुए जिला प्रशासन ने गुरुवार को कर्फ्यू में ढील देने से साफ मना कर दिया है.. आगे का निर्णय स्थिति को देखते हुए लिया जाएगा.. वहीं शहर में घुसने से रोकने पर पूर्व मंत्री सहित कई भाजपा नेता बाहर धरने पर बैठ गए हैं…
दूसरी ओर विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता उपद्रव के दौरान हुए लाठीचार्ज का विरोध कर रहे हैं.. इसके चलते कार्यकर्ता गुरुवार दोपहर गिरफ्तारियां देने निकले थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया.. शहर में धारा-144 के साथ-साथ कर्फ्यू का हवाला देते हुए उन्हें लौटा दिया गया है… पहले की स्थिति को देखते हुए प्रशासन कोई भी कोताही बरतने के मूड में नहीं है.. दूसरी ओर कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरोध में भाजपा नेता लामबंद होने लगे हैं…
वहीं कवर्धा में दो पक्षों के बीच हुई घटना के बाद सीएम भूपेश बघेल विपक्ष के निशाने पर हैं.. विपक्षी दल भाजपा के साथ-साथ सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ में इतनी बड़ी घटना हो गयी.. कर्फ़्यू जैसे हालात निर्मित हो गए.. लेकिन सीएम यूपी पहुंच गए, कवर्धा की घटना पर कोई ध्यान नहीं … इसके अलावा सीएम बघेल ने लखीमपुर खीरी में हुई घटना में मृतकों के परिजनों को 50-50 लाख मुआवजा देने की घोषणा की है.. जिसके बाद अब छत्तीसगढ़ के बस्तर के सिलगेर में प्रदर्शन के दौरान गोली लगने से हुई आदिवासियों की मौत का मामला भी तूल पकड़ने लगा है.. मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की मांग उठने लगी है…
“भिन्न-भिन्न बातें हैं.. उनको जवाबदारी मुख्य पर्यवेक्षक के रूप में यूपी की मिली है.. तो स्वाभाविक है कि यूपी में एक बहुत बड़ा हादसा हो जाता है.. तो उनकी भी उपस्थिति वहां पर आवश्यक होती है तो इस बाबत वो गए थे… इस बीच कवर्धा में कुछ ऐसी घटनाएं हुई.. चाहे मैं हूँ या मुख्यमंत्री.. लगातार प्रशासन से संपर्क में हैं.. और डायेक्शन भी दे रहे हैं.. स्थिति को नियंत्रित करने हर सम्भव प्रयास प्रशासन की ओर से हो रहा है… ये दुर्भाग्यपूर्ण रहता है कि ऐसे अवसरों में लाभ लेने के लिए लोग नहीं चूकते और राजनैतिक उद्देश्य से भी अस्थिरता या वातावरण को दूषित करने के प्रयास में या पहल में पीछे नहीं रहते.. और ये कारण होता है कि एक तुलनात्मक छोटी घटना जिसमे दो लोगों के बीच में जो झड़प हुई या धरापकडी हुई… उसको इतना बड़ा स्वरूप देने का एक योजनाबद्ध तरीके से प्रयास किया जा रहा है.. वरना शांति समिति की बैठक प्रशासन ने दो बार बुलाई थी.. और जो कारण बना इस विवाद का.. झंडा … दो समुदायों के त्यौहार एक साथ पड़ रहे थे और वो लोहारा चौक के पास में जहां झंडा लगता है… अपने-अपने त्यौहार के समय लोग लगाया करते थे.. शांति समिति की दो बैठक में.. दोनों समुदाय के बीच यह तय हो गया था कि.. किस तरीके से इसको करना है और कहीं कोई विवाद नहीं था.. फिर कुछ लोगों जाकर वहां पर.. एक समुदाय के लोगों ने वहां जाकर झंडा लगा दिया.. यहां से स्थिति बिगड़ी और वो झंडा लगाने के बाद फिर दूसरे समुदाय ने भी झंडा लगाया.. एक ने दूसरे का झंडा गिराया, दूसरे ने पहले का गिराया… ये स्थिति वहां बनी.. ये जरूर है कि प्रशासन और सजग रह सकता था.. जब वहां की ये स्थिति थी.. तो झंडा को सुरक्षित किया जा सकता था… किन्तु उसके बाद जिन लोगों ने माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया.. ये सारा दोष या जिम्मेदारी उन लोगों के ऊपर जाती है.. जो कि बात को बढ़ा के और लाभ किसी प्रकार का लेना चाहते है.. ये दुर्भाग्यपूर्ण हो जाता है…”
• टीएस सिंहदेव, स्वास्थ्य मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन