कूप कटाई के नाम पर संरक्षित प्रजाति के सैकड़ों साल के वृक्षों की बलि

विशेष रिपोर्ट:- क्रान्ती कुमार रावत 
वन विभाग का नया कारनामा 
कूप कटाई के नाम पर संरक्षित प्रजाति के सैकड़ों साल के वृक्षों की बलि
उदयपुर (अम्बिकापुर)
सरगुजा जिले के अंतर्गत वन परिक्षेत्र उदयपुर में कूप कटाई के नाम पर संरक्षित प्रजाति के सैकड़ों साल के वृक्षों की बलि का सनसनी खेज मामला सामने आया है। सायर पश्चिम बीट में ग्रामीणों द्वारा मरघटी झरिहा जंगल के नाम से पहचाना जाने वाला जंगल धीरे धीरे ठुंठ में तब्दील होते जा रहा है। माह सितम्बर अक्टूबर 2015 में साल के विशालकाय वृक्षों को कूप कटाई के लिए वन विभाग के द्वारा मार्किंग  कराया गया था। मार्किंग के पन्द्रह दिनों बाद ही कूप कटाई नहीं कराये जाने का आदेश उच्च कार्यालय से वन परिक्षेत्राधिकारी कार्यालय उदयपुर में आ गया था। इसके बाद भी सायर पश्चिम जंगल के लगभग डेढ़ से दो किलोमीटर के दायरे में संरक्षित प्रजाति के साल के सैकड़ों पेंड़ों की कटाई अनवरत् जारी रहा। अभी बीते कुछ दिन पूर्व लगभग 15 से 20 दिनों पहले काम बंद हुआ है। पेड़ों की बेतहाशा कटाई के बाद छाल उतारने एवं जलाउ इकट्ठा करने का काम भी कराया गया है। इन कामों में सायर, बिच्छलघाटी, लक्ष्मणगढ़, महुआटिकरा समेत आसपास के गांवों के दर्जनों मजदूरों ने लगभग तीन माह तक काम किया है। कराये गये कार्य का मजूदरी भुगतान भी वन विभाग द्वारा नहीं किया गया है। मजदूरी भुगतान को लेकर भी ग्रामीण मजदूर काफी परेशान है। कूप कटाई के नाम पर बेजुबान पेंड़ों की कटाई वन विभाग के उच्चाधिकारियों के शह पर ही हुआ होगा इसका संदेह इसलिए भी उत्पन्न होता है क्योंकि मौंके पर लगभग सैकड़ों पेंड़ों पर वन विभाग का हैमर लगा हुआ है और नम्बर भी दर्ज है। और लगभग इससे दुगने इलाके में बगैर नम्बर के सैकड़ों पेड़ काटकर गिरा दिये गये है। जंगल में काटकर गिराये गये पेड़ों पर अब वन तस्करों की नजर गड़ने लगी है क्योंकि वन विभाग के द्वारा कटाई कराये गये लकड़ीे को ना तो बोंगी बनवाया गया है और ना ही जलाउ के लिए इकट्ठा लकड़ी का परिवहन कराया जा रहा है। आसपास के ग्रामीणों ने बताया जंगल में बिना सुरक्षा के पड़े लकडि़यों को लोग उठाकर ले जाते है पहले जलाउ का बड़ा बड़ा ढेर लगा था जो अब धीरे धीरे खत्म होते जा रहा है। वनों के संरक्षण की जिम्मेदारी वन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारियों की है परंतु यहां इसके विपरीत वनों के रक्षक ही वनों के भक्षक बन बैठे और प्रतिबंध के बावजूद सैकड़ों साल के पेड़ांे को असमय ही काटकर ठुंठ में तब्दील कर दिये। एक ओर जहां पूरा विश्व पर्यावरण बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है और पर्यावरण संरक्षण के लिए तरह तरह के उपाय किये जा रहे है वहीं हमारे उदयपुर वन परिक्षेत्र के अधिकारी कर्मचारी इस प्राकृतिक धरोहर को खत्म करने में अमादा है। जिस तरह से वन परिक्षेत्राधिकारी ने इस मामले में कटाई के संबंध में जानकारी नहीं है कहकर अपना पल्ला झाड़ा है उससे साबित होता है कि वन अमला अपने कर्तव्यों के प्रति कितना लापरवाह है।

इस बारे में पेंड़ों के कटाई में लगे ग्रामीण मोतीलाल ने बताया कि वन विभाग के अधिकारियों के देखरेख में पूरा काम हुआ है उनके मंुशी आकर हाजिरी भरते थे और कटाई का काम कराते थे। फिर कुछ दिनों पहले काम बंद करवा दिया गया मैं पन्द्रह दिन काम किया हूं मेरा मजदूरी भुगतान नहीं हुआ है।

एक अन्य ग्रामीण मोहर साय ने बताया कि 3 माह तक कटाई, छिलाई और लकड़ी इकट्ठा करने का काम चला है बोंगी बनाने का काम शेष बचा था तब अधिकारियों ने आकर काम बंद कराया और बताया कि कूप कटाई नहीं करना है। हम लोगों का तीन महीने का मजदूरी भुगतान भी नही हुआ है।

वन परिक्षेत्राधिकारी एस.बी.पाण्डेय ने इस मामले में पहले तो स्वीकार किये की कूप कटाई के लिए मार्किंग की स्वीकृति हुई थी और मार्किंग कराया भी गया इसके कुछ दिनों बाद ही कोल परियोजना क्षेत्र परसा केते एवं आसपास के क्षेत्र में चल रहे कटाई के कारण अन्य स्थानों पर स्वीकृत कूप कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मजदूरी भुगतान नहीं होने की जानकारी है जल्द ही भुगतान करा दिया जायेगा। इतने बड़े स्तर पर हुये पेड़ों की कटाई की जानकारी के संबंध में अपना पल्ला झाड़ते हुये बताया कि पन्द्रह पेड़ों के कटने की जानकारी मुझे है इससे ज्यादा पेड़ अगर काटे गये है तो दोषी कर्मचारियों पर कार्यवाही की जायेगी।
कूप के नाम पर अवैध कटाई की जांच के लिए वन अमला एसडीओ एम.डी.लहरे के नेतृत्व में सायर पश्चिम जंगल पहुंचा और पूरे जंगल का मुआयना किया। मुआयना पश्चात् चर्चा के दौरान एसडीओ फारेस्ट M D LAHRE ने बताया कि बगैर अनुमति के कटाई हुई है। जांच के लिए टीम का गठन कर दिया गया है, दोषी पाये जाने पर कार्यवाही की जायेगी। वन परिक्षेत्राधिकारी एस बी पाण्डेय ने बताया कि कुल 295 पेंड़ जिनकी मार्किंग की गई थी उन सभी पेंड़ों को बिना अनुमति के उच्चाधिकारियों को सूचना दिये बगैर काट दिया गया है।
सबसे बड़ा सवाल जिस तरह से वन अमले के उच्चाधिकारियों ने इतने बड़े स्तर पर हुये कटाई से बिलकुल अनभिज्ञता जाहिर की है इस पूरे प्रकरण में उच्च अधिकारियों की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता। और जिस तरह से जांच के बाद दोषी पर कार्यवाही का आश्वासन दिया जा रहा है उससे यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है इतने बड़े मामले में वन विभाग पूरी तरह से लीपा पोती की तैयारी शायद कर चुकी है। इस मामले में उच्चाधिकारियों द्वारा क्या कार्यवाही की जाती है यह भविष्य के गर्त में है।

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