बस्तर ब्रेकिंग
बस्तर का दशहरा जो की विश्वप्रसिद्ध और काफी पुरानी परम्परा है। बस्तर दशहरा की छह सौ साल पुरानी परंपरा पर संकट की असंका जताई जा रही है । इसकी वजह है ककागलुर पंचायत की ग्रामसभा का निर्णय,ग्राम सभा की निर्णय में कहा गया है कि इस बार रथ के लिए लकड़ी नहीं दी जाएगी । ग्रामीणों ने इसकी जानकारी बस्तर सांसद और दशहरा समिति के अध्यक्ष दीपक बैज को दी। जबकि ग्रामसभा के अगले दिन आयोजित हुई बस्तर दशहरा समिति की बैठक में इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं की गई।
यहाँ के दसहरा का त्यौहार पूरे भारत के दशहरे के त्यौहार से जरा हट कर है यहां दशहरा में रावण को नहीं जलाया जाता बल्कि बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी के नाम पर यह त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार आदिवासी जनजाति द्वारा मनाया जाता है जो की दुनिया का प्रशिद्ध उत्सव है । इसमें नवरात्र में लकड़ी का विशाल रथ नगर परिक्रमा करता है। रथ के लिए लकड़ी ककागलुर से आती है। ग्रामसभा के लकड़ी देने से मना करने से गतिरोध की स्थिति बन गई है।
दशहरा की शुरुआत में लकड़ी का एक बड़ा टुकड़ा ककागलुर के ग्रामीण बैलगाड़ी में लादकर दंतेश्वरी मंदिर लाते हैं। इसे ठुरलू खोटला कहा जाता है। इसी लकड़ी से रथ निर्माण का काम शुरू होता है। इसके बाद दशहरा समिति वहां के घने जंगल से ढाई से तीन मीटर मोटाई वाले करीब 60-70 वृक्ष कटवाती है। मोटे तने वाले इन वृक्षों की आयु सौ साल तक होती है। छह सौ सालों से चल रही इस परंपरा की वजह से जंगल सिमटता जा रहा है।, प्रत्येक वर्ष वृक्षों की भारी मात्रा में कटाई हो जाती है। और नए जंगल के विकास की तो कोई उम्मीद ही नहीं दिखाई देती है । ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि रथ निर्माण के नाम पर लकड़ी की तस्करी भी की जाती है।इसलिए ग्रामीणो ने लकड़ी ले जाने से साफ़ मना कर दिया है , उनके द्वारा कई बार दशहरा समिति को इस बात से अवगत कराया गया , पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इससे नाराज ग्रामीणों ने एक सितंबर को ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित कर लकड़ी ले जाने पर पाबंदी लगा दी है। बस्तर के इस आदिवासी इलाके में संविधान की पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून लागू है इसलिए ग्रामसभा के प्रस्ताव का संवैधानिक महत्व है।