बिलासपुर.Contract Employee: छत्तीसगढ़ के संविदा और अनियमित कर्मचारियों के लिए खुशखबरी हैं। बता दें कि, छत्तीसगढ़ में पिछले एक दशक से संविदा और अनियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण का मुद्दा राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा हैं। नियमितीकरण की मांग को लेकर लाखों कर्मचारी कई बार धरना आंदोलन कर चुके हैं। ये भी बता दें कि, 2018 से पहले भूपेश सरकार की वादा था कि, सरकार में आते ही संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जाएगा। लेकिन, संविदा कर्मचारियों को 5 साल बीत जाने के बाद यदि कुछ मिला तो वो केवल आश्वासन हैं। लेकिन, इसी बीच सुप्रीम कोर्ट का संविदा कर्मचारियों को लेकर अच्छी खबर हैं। यानी की संविदा कर्मचारियों की हित में बड़ी फैसला आया हैं।
इसे भी पढ़िए – Video: कन्हैया कुमार को थप्पड़ मारने वाला शख्स कौन है? हमलावर ने वीडियो जारी कर कहा- सिखा दिया उसे सबक
दरअसल, गुरु घसीदास यूनिवर्सिटी बिलासपुर में विजय कुमार गुप्ता समेत 98 संविदा कर्मचारी दैनिक भोगी के तौर पर सदस्य थे। बता दें कि, वे सभी संविदा कर्मचारी विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद से तकरीबन 10 साल या उसे अधिक के समय से नौकरी कर रहे थे। इतना ही नहीं, वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से इन सभी कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश जारी किया था। जारी आदेश के मुताबिक,10 साल या उससे ज्यादा समय तक सेवा चुके कर्मचारियों को नियमित किया जाना था। इस आदेश के परिपालन में उच्च शिक्षा संचालक ने भी 26 अगस्त 2008 को विभाग में कार्यरत ऐसे कर्मियों को स्ववित्तीय योजना के तहत् नियमितीकरण और नियमित वेतनमान देने का आदेश दिया। मार्च 2009 तक इन्हें नियमित वेतन भी दिया गया। इसके बाद बिना किसी जानकारी या सूचना दिए यूनिवर्सिटी ने नियमित वेतन देना बंद कर दिया था। कर्मचारियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उन्हें कलेक्टर दर पर वेतनमान देने का आदेश जारी कर दिया।
इसके साथ ही, 10 फरवरी 2010 को तत्कालीन रजिस्ट्रार ने 22 सितंबर 2008 को जारी शासन के नियमितीकरण को भी निरस्त कर दिया। रजिस्ट्रार के इस आदेश को चुनौती देते हुए कर्मचारियों ने अधिवक्ता दीपाली पाण्डेय के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि, गुरु घासीदास विवि को राज्य सरकार से केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्वीकार किया गया हैं। लिहाजा, राज्य शासन के अधीन कार्यरत सभी कर्मचारियों को उसी स्थिति में केंद्रीय विश्वविद्यालय में शामिल करना चाहिए, जिस स्थिति में कर्मचारी राज्य विश्वविद्यालय में कार्यरत थे। लेकिन, यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया।
इसे भी पढ़िए – मात्र ₹8,999 में Redmi का धांसू 5G स्मार्टफोन, 8GB रैम और 256GB स्टोरेज के साथ, जानिए इस मॉडल की खूबियां
इस मामले की लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने बीते 22 नवंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिस पर 6 मार्च को कोर्ट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया। साथ ही याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने उन्हें पूर्व की तरह नियमितीकरण की तिथि से नियमित कर्मचारी के रूप में सभी लाभ का हकदार घोषित किया। दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी अपने हक की लड़ाई को लेकर पिछले 11 साल से संघर्षरत हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यूनिवर्सिटी ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दिया। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत मिश्रा की बेंच हुई। सभी पक्षों को सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने कहा कि, दो दशकों से अधिक समय से काम कर रहे दैनिक वेतनभोगियों को नियमित करने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई मजबूत आधार नहीं हैं। इसलिए याचिका खारिज की जाती हैं।
इन्हें भी पढ़िए –स्वाति मालीवाल का एक और वीडियो आया सामने, देखिए CCTV कैमरा फुटेज
चुनाव प्रचार के दौरान कन्हैया पर हमला, माला पहनाने आए युवक ने जड़ा थप्पड़