बलरामपुर (कृष्ण मोहन कुमार) जिले में शिक्षकों पर नकेल कसने बायोमैट्रिक मशीन की कवायद फेल होती दिख रही है.. सात सौ से अधिक बायोमैट्रिक मशीने कबाड़ में तब्दील हो चुकी है.. तो वही दूसरी ओर प्रदेश सरकार इस बायोमैट्रिक मशीन के उपयोग को कारगर मान कर समूचे सूबे लागू करने की घोषणा भी कर दी थी.. वही अब कलेक्टर कह रहे कि मशीनों की गारंटी पीरियड ख़त्म हो चुकी है।
इस मामले में बलरामपुर जिला था मॉडल
गौरतलब है कि आज से ठीक दो साल पहले बलरामपुर जिले के तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन ने एक प्रयोग के तौर पर जिले के सरकारी स्कूलों में तैनात शिक्षकों पर नकेल कसने बायोमैट्रिक मशीन के माध्यम से शिक्षकों पर नजर रखने का पैतरा आजमाया था, और इस पैतरे की तारीफ खुद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने की थी, इसके लिए मुख्यमंत्री ने एक टीम गठित कर जिले में भेजी थी, और उस समय इस सम्बंध में सकारात्मक परिणाम आने पर सीएम साहब ने इस बायोमैट्रिक प्रणाली को पूरे प्रदेश में लागू करने की रणनीति बनाई थी।
जिले के अधिकांश सरकारी स्कूलों में लगी ये मशीन अब प्लास्टिक के डिब्बे ही साबित हो रही है, सरकारी स्कूलों के शिक्षको का कहना है की वे पहले भी समय पर स्कूल आते थे और अब भी लेकिन उनके स्कूल में लगा बायोमैट्रिक बॉक्स अब खराब हो गया है और उन्हें पहले की तरह ही रजिस्टर मेंटेन करने से पगार मिलती है।
वही कुछ सरकारी शिक्षको का मानना है की उन्हें इस बायोमैट्रिक मशीन से ना तो पहले कोई परेशानी थी और ना ही अब वे समय पर अपने पदस्थापना वाली स्कूल में पहुँच जाते है।दरसल तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन ने सरकारी स्कूलों में लेटलतीफ पहुचने वाले शिक्षकों और हमेशा स्कूलों से बगैर कारण के नदारद रहने वाले शिक्षकों पर नियंत्रण रखने इस बायोमैट्रिक प्रणाली का सहारा लिया था लेकिन मेनन साहब के जाते ही यह योजना ठंडे बस्ते चली गई।
सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारियों ने खरीदी थी मशीने
वही सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारी नरेश ठाकुर का कहना है कि एकीकृत परियोजना मद से 3 करोड़ की लागत से 1413 बायोमैट्रिक मशीने खरीदी गई थी, बायोमैट्रिक मशीनों की खरीदी के लिए सर्व शिक्षा अभियान को कार्य एजेंसी बनाया गया था और सरकारी स्कूलों में शिक्षको के आने और जाने के समय पर नियंत्रण रखने के लिए लगाया गया था, हर मशीन पर दो -दो साल की वारंटिया बायोमैट्रिक मशीन के निर्माता कंपनी ने दी थी और यह अवधि खत्म होने के बाद इन मशीनों के रख रखाव में सालाना 75 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया था, बावजूद इसके स्थानीय प्रशासन के पास अलग से फंड नही होने पर इन खराब मशीनों को बीईओ कार्यलयों में डम्प करवाया गया है।
डीएम ने मांगी है अलग से फंड
इस मसले पर कलेक्टर अवनीश कुमार शरण का कहना है कि उन्होंने इस सम्बंध में राज्य स्तर के अधिकारियों से चर्चा की है और खराब मशीनों के मरम्मत के लिए अलग से राशि आबंटित करने की मांग की है।
समूचे प्रदेश में लागू करने की थी सरकार ने पहल
इसके अलावा जिले में दो वर्ष पूर्व बतौर कलेक्टर के पद पर पदस्थ और वर्तमान में राज्य के चिप्स में सीईओ के पद पर आसीन आईएएस एलेक्स पाल मेनन की इस पहल को सरकार ने सराहा था,और बलरामपुर की तर्ज पर प्रदेश के हर सरकारी स्कूलों में बायोमैट्रिक मशीन के जरिये शिक्षको की उपस्थिति दर्ज करने के इस फार्मूले को लागू करने की घोषणा बीते वर्ष की थी,लेकिन मेनन साहब के जिले से विदा लेते ही अन्य सरकारी योजनाओं की तरह ही इस बायोमैट्रिक मशीन की योजना का बण्ठा धार हो गया और अब ये बायोमैट्रिक की मशीनें बीईओ दफ्तरों के सरकारी अलमारियों में कैद हो गई। बहरहाल कलेक्टर साहब अब इन मशीनों की मरम्मत कराने की बात तो कह रहे है,लेकिन यह कब तक सम्भव हो पायेगा यह कह पाना थोड़ा मुश्किल होगा।