धमतरी/बिलासपुर. बिलासपुर में आदिवासी समाज की उपेक्षा को लेकर सर्व आदिवासी समाज ने 8 स्थानीय समेत 26 मांगों को कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा हैं। आदिवासी समाज के जिलाध्यक्ष रमेश चंद्र श्याम का कहना हैं कि, छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से राज्य के आदिवासी समुदाय में यह उम्मीद जगी थी, कि अपने राज्य में समस्याओं की सुनवाई और त्वरित निपटारा होगा। लेकिन 22 वर्षो से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी आदिवासी समाज अपने नैसर्गिक व संवैधानिक हक से वंचित हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासी समुदाय जनसंख्या में 32 % एवं क्षेत्रफल में लगभग 65% भू-भाग में निवासरत हैं। भारतीय संविधान से उनकी भाषा, भूमि, रिवाज और आस्था को संरक्षण हैं। लेकिन इस पर सुनियोजित ढंग से हमला हो रहा हैं। जिससे क्षुब्ध होकर आदिवासी समुदाय विगत तीन वर्षो से आंदोलनरत हैं। शासन प्रशासन के रवैये से यह लगता हैं कि, आदिवासी समाज के समस्याओं के प्रति शासन गंभीर एवं संवेदनशील नहीं हैं।
वही, धमतरी में सर्व आदिवासी समाज ने अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और समस्याओं को लेकर रैली निकालकर कलेक्ट्रोरेट कार्यालय का घेराव किया। वही अपनी मांगों जमकर प्रदर्शन किया। आदिवासी समाज ने 24 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन दिया। जिसमें कई स्थानीय मुद्दे भी शामिल है। इस दौरान सैकड़ो की संख्या में आदिवासी समाज के पुरुष और युवा शामिल हुए। इधर सुरक्षा के मद्देनजर बड़ी संख्या में पुलिस के जवान तैनात रहे।
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीएस रावटे का कहना हैं कि, हम पिछले कई वर्षों से शासन-प्रशासन से निवेदन कर रहे हैं। लेकिन, कोई सकारात्मक पहल सरकार या स्थानीय स्तर पर नहीं होने के कारण अपनी बात रखने के लिए उनके द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से 19 जुलाई 2011 को जिला ब्लॉक स्तरीय धरना, प्रदर्शन और माह सितम्बर 2021 में बंद एवं चक्काजाम किया गया। इसके बाद 14 मार्च 2022 को हुंकार रैली एवं विधानसभा घेराव सहित 32 प्रतिशत के लिए जिला, ब्लाॅक में धरना किया गया। वही 15 नवम्बर को संभाग स्तरीय धरना किया गया था। आदिवासियों का कहना है कि आज भी इस प्रदेश के बहुसंख्यक आदिवासी समाज अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित हैं।
समाज प्रमुखों का कहना हैं कि, सर्वआदिवासी समाज के संवैधानिक एवं विभिन्न मांगों के 21 सूत्रीय मांग पत्र पर सभी समाज प्रमुख और वर्तमान सरकार के अधिकतर विधायक और मंत्रियों का भी हस्ताक्षर हैं। पूर्व के सरकार और वर्तमान के सरकार में बहुसंख्यक आदिवासी विधायक हैं। इसके बावजूद आदिवासी समाज के किसी भी प्रावधानित संवैधानिक अधिकार मांग एवं प्रताड़ना में कोई भी निराकरण आज तक नहीं हुआ हैं।