CG News: जेल में बंद कैदियों को सिखाते थे काष्ठ कला, पद्मश्री से नवाजे गए अजय मंडावी

बस्तर. बस्तर संभाग के कांकेर जिले का गौरव बढ़ाने वाले काष्ठ शिल्प कलाकर अजय मंडावी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्मश्री पुरुष्कार से नवाजा है। पद्मश्री पुरुष्कार मिलने के बाद अजय मंडावी कांकेर पहुंचे। जहां उनके मित्रों व परिजनों ने भव्य स्वागत किया। आपको बता दे कि पद्मश्री अजय मांडवी जेल में बंद कैदियों को काष्ठ शिल्प की कला सिखाते है। उन्होंने जेल में बंद नक्सलियों को भी मुख्यधारा से जोड़ने का कार्य किया है। साथ ही उन्होंने काष्ठ कला के माध्यम से वंदेमातरम का लेखन भी किया है। जो गिनीज बुक ऑफ वल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। इस दौरान उन्होंने पद्मश्री पुरष्कार मिलने पर खुशी भी जाहिर की।

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यह सम्मान उन्हें लकड़ी पर उकेरी गई कला को लेकर मिला है। अजय ने बचपन से ही विरासत में सीखी कला को आगे बढ़ाने का काम किया है। अपने पिता-माता से सीखी इस कला को जेल में बंद कैदियों तक पहुंचाया। इसके जरिए उन्होंने कैदियों को न केवल काष्ठ कला सिखाई, बल्कि जिंदगी जीने की राह भी दिखाई है। राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें सम्मान मिलने पर कांकेर में खुशी की लहर है।

बता दे कि सन 2005 से वह जेल में बंद कैदियों को काष्ठ कला सिखा रहे हैं। अभी तक 400 से अधिक कैदियों को उन्होंने काष्ठ कला सिखाकर आत्म निर्भर बनाया है। लकड़ी पर कलाकारी करते हुए उन्होंने बाइबल, भगवत गीता, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं को उकेरने का काम किया है। अजय मंडावी का पूरा परिवार आज किसी न किसी कला से जुड़ा हुआ है। परिवार के अन्य सदस्यों को भी कहीं न कहीं उन्हें यह कला विरासत में मिली है।

बताया जाता है कि अजय के पिता मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम करते थे, जबकि उनकी मां सरोज मंडावी पेंटिंग का काम किया करती थीं। उनके भाई विजय मंडावी एक राजनेता और मंच संचालक भी हैं। कांकेर के जेल में 200 से अधिक बंदी आज काष्ठ कला में काफी हद तक पारंगत हो चुके हैं, जो कि अजय मंडावी की मेहनत है। आज उस क्षेत्र के बंदी भी इस बात को मानते हैं कि यह कला नहीं बल्कि एक तपस्या है। काष्ठ कला ने बंदी नक्सलियों के विचारों को पूरी तरीके से बदल कर रख दिया है।