हिन्दी दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन

अम्बिकापुर 

हिन्दी दिवस के पावन अवसर पर महामना मालवीय मिशन द्वारा संगोष्ठि का आयोजन सुरेन्द्र गुप्ता के नवास स्थान पर किया गया, जिसमें हिन्दी साहित्य के विकास में मालवीय जी एवं राष्ट्रीय साहित्यकार, रचनाकार कवि एवं विचारको के प्रेरक प्रसंगो पर चर्चा तथा उनकी योगदान पर नगर के प्रबुद्ध एवं विद्यवतजनों ने अपना-अपना विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारंभ मदनमोहन मालवीय एवं भगवान श्रीकृष्ण के छायाचित्र पर दीप प्रज्वलन एवं गीला के 12वें अध्याय के पाठ से किया गया। इस अवसर पर मिशन के संचालक एवं केन्द्रीय समिति सदस्य हरिशंकर त्रिपाठी ने कहा कि मालवीय जी हिन्दी को मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा हेतु अथक प्रयास किया। जब वे 1891 में वकालत प्रारंभ किया तो उस समय उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, बंगाल आदि राज्यों के जिला न्यायालयों में उर्दु और भारषी शब्दो का प्रयोग होता था। मालवीय जी ब्रिटिश हुकुमत को लगातार हिन्दी के लिये प्रेषित किया। परिणामतः 1900ई. में देवनागरी लिपि के प्रयोग एवं आवेदन करने की सहमति मिली। राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी को 1949 में मान्यता मिली।
रणविजय सिंह तोमर ने कहा कि श्री वेदव्यास जी ने महाभारत में गीता का वर्णन करते हुए कहा कि गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात गीता को भलिभांती पढ़ कर अर्थ और भाव सहित अंतःकरण में धारण कर लेना ही मुख्य कर्तब्य है।
सुरेन्द्र गुप्ता ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि निराकार ब्रम्ह के उपासक भी हमे प्राप्त करते है।
ब्रम्हाशंकर सिंह ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी के द्वारा गीता को उपहार स्वरूप जापान में जो भेंट किये वह सराहनीय है। सचमुच ही गीता से बढ़ कर इससे बड़ा उपहार हो ही नहीं सकता। गीता भेंट करने से भारतीय सांस्कृतिक को अंतराष्ट्रीय जगत में एक पहचान बना है जिसे अन्य देशो के लोग भी गीता पर चर्चा करने लगे है।
माधव शर्मा ने हिन्दी साहित्य के प्रेरणा स्त्रोत कवि मदन मोहन मालवीय जी प्रेरक प्रसंगो पर चर्चा करते हुए कहा कि काशी हिन्दु विश्वविद्यालय की स्थापना से पूरे विश्व को संदेश जाता है कि भारतीय सांस्कृतिक में कितनी सजगता है।
रामजतन सिन्हा ने कहा कि मालवीय जी के गुरू आदित्य नाथ भटठाचार्य थे जो मालवीय जी के विषय में कहा था कि यह शिष्य एक दिन भारत के महान पुरूष बनेगा। कारण की इसके कार्य एवं लक्ष्य में संसय नही है। मदन मोहन मेहता ने बताया कि हिन्दी साहित्य का विकास गाथा में राष्ट्रीय साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद, जय शंकर प्रसाद, सूर्य प्रकाश निराला, रामधारी सिंह दिनकर आदि का अमूल्य योगदान है। रामलखन सोनी ने बताया कि मदन मोहन मालवीय मिशन द्वारा हिन्दी दिवस पर एक प्रस्ताव पारित करती है कि अगले सत्र से महाविद्यालय की स्थापना महामना मालवीय मिशन द्वारा किया जायेगा जिसके लिये स्थान का चयन आदिवासी अंचल लुण्ड्रा ब्लाक के धौरपुर को किया गया है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए पं. राजनारायण द्विवेदी ने कहा कि हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है जिसकी स्वीकारोक्ति 1949 में देश स्वतंत्र होने के बाद हुई। ब्रिटिश काल में हिन्दी की मान्यता अधूरी थी। भारतीय भाषाओं के साथ अरबी, भारसी, उर्दू आदि भाषाओं का प्रयोग होता था जिससे लोगो को काफी परेशानी होती थी जब हिन्दी राष्ट्र भाषा बनी तो सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र में बांधने का काम हिन्दी ने किया है।