अम्बिकापुर
- आदिवासी समाज मे शामिल ना किए जाने के विरोध
- नगेशिया, अगरिया,पनिका और कोरवा जाति प्रमुखो ने किया मतदान बहिष्कार का एलान
- चारो ने सामूहिक बैठक आयोजित कर लिया निर्णय
- वर्षो से उपेक्षा और झूठा आश्वासन देने का आरोप…
- राजनैतिक और प्रशासनिक हलको मे हडकंप
छत्तीसगढ मे एक दल जंहा 11 मे से 11 सीटे जीतने का दावा कर रही है, वही दूसरा दल कम से कम 7 सीट जीतने की बात कर रही है। लेकिन जिस सीट को लेकर सीट बंटवारे से लेकर प्रत्याशी की जीत के लिए तरह तरह की चर्चाएं है, उस सीट मे चुनाव से पहले ही एक बडा मसला और पुराना जख्म नासूर बन कर उभर गया है। दरअसल चार बडे समाज के लोगो ने लोकसभा चुनाव मे मतदान का बहिष्कार कर दिया है। उनका कहना है कि आदिवासी समाज की चार प्रमुख जातियो को आदिवासी समाज मे शामिल करने के लिए जब तक कोई ठोस पहल नही होगी, तब तक वो मतदान मे हिस्सा नही लेंगे।
सरगुजा लोकसभा के लिए राजनैतिक दलो को आरोप प्रत्यारोप के जोर पकडने के पहले ही संभाग के चार प्रमुख दलो ने मतदान का बहिष्कार करने का एलान कर ना केवल प्रशासनिक अमले को हिला कर रख दिया है, बल्कि इस एलान से राजनैतिक दल भी कोमा मे प्रवेश कर सकते है। संभाग मे एक बडे वोट बैंक के रुप मे निवासरत पनिका, नगेशिया, अगरिया और कोरवा जाति के संभागीय अध्यक्षो ने पिछले दिनो एक बैठकर आयोजित कर मतदान ना करने का मन बना लिया है। इन जाति प्रमुखो के मुताबिक चार जातियो मे की समस्या एक जैसी है क्योकि ये सभी जाति पिछले दो तीन दशक पहले तक आदिवासी समाज का हिस्सा हुआ करती थी, लेकिन अब ना ही वो आदिवासी है और ना ही आदिवासियो जैसी सुविधाए उनको मिल रही है, जिससे समाज का विकास पूरी तरह रुक गया है।
पनिका जाति के प्रमुख “श्री सी.पी सिंह ” के मुताबिक चारो जाति के लोगो ने कोई ठोस पहल ना होने तक चुनाव का बहिष्कार कर दिया है। क्योकि इन जातियो को शामिल करने के प्रस्ताव के बारे मे केन्द्र सरकार और राज्य सरकार हम लोगो को गेंद की तरह घुमा रही है, केन्द्र सरकार कहती है कि राज्य सरकार के प्रस्ताव भेजे बिना इन जातियो को आदिवासी वर्ग मे शामिल किया जाना मुश्किल है, तो राज्य सरकार का कहना है कि प्रस्ताव 2006 मे ही भेजा जा चुका है। इतना ही नही समाज मे अपनी पैठ रखने वाले समाज प्रमुख श्री सिंह के मुताबिक पनिका समाज 1970 तक आदिवासी समाज का हिस्सा था, लेकिन फिर उसको बाहर निकाल दिया गया। और कोरवा जाति के एक समाज क्षत्रिय कोरवा को आज तक आदिवासी समाज मे शामिल नही किया गया है।
इन तमाम बातो के बीच हर समाज के लोगो ने लगभग इसी तरह के विचार रखे है, और उनके मुताबिक वर्षो से अपनी मांग को लेकरप उपेक्षित समाज के लोग इस बार मतदान का बहिष्कार करेगें। जब तक कि कोई ठोस पहल नही हो जाती है।
बहरहाल एक तरफ जंहा प्रशासनिक अमला जंहा चुनाव मे सत् प्रतिशत मतदान के लिए नए नए तरीके इख्तयार कर रहा है, वही इन चार जाति के लोगो द्वारा चुनाव के बहिष्कार के एलान से प्रशासनिक अमले का जागो मतदाता अभियान कही सो ना जाए……. पर सवाल तो ये है कि इन जाति के बलबूते अपनी जीत की डींग हांकने वाले नेताओ और राजनैतिक पार्टियो का क्या होगा।