- यहां मरीजों को न देखने वाला न पूछने वाला
[highlight color=”black”]अम्बिकापुर[/highlight]
[highlight color=”red”]दीपक सराठे[/highlight]
मेडिकल काॅलेज में रिक्त सीटों के लिए आज काउंसिंग की गई। सितम्बर माह से मेडिकल काॅलेज की पढ़ाई भी शुरू करने की कवायद जोरों पर है। इन सत्र के लिए स्वास्थ्य विभाग व प्रशासनिक अमला पूरी ताकत से लगा हुआ है, परंतु जिला अस्पताल सह मेडिकल काॅलेज की यह तस्वीर इस मेडिकल काॅलेज में व्यवस्थाओं व अनदेखी की कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। बल्कि यह कहें कि माथे में ग्लूकोज की बाॅटल टिकाकर बैठी यह महिला पूरी व्यवस्थाओं की पोल खालने के लिए काफी है।
रविवार की शाम जिला अस्पताल सह मेडिकल काॅलेज में ली गई यह तस्वीर इस अस्पताल के लिए कुछ नयी नहीं थी। पूर्व में भी मानवता की शर्मसार व प्रबंधन सहित स्टाफ की अनदेखी की बड़ी तस्वीर यहां देखने को मिल चुकी है। रविवार की शाम कुर्सी में बैठी यह महिला ओपीड़ी में घंटों बाॅटल को माथे से लगाकर बैठी थी, परंतु वहां से आते-जाते कई चिकित्सक व स्टाफ ने ना सिर्फ उसे देखने की जहमत उठाई और न ही कुछ पूछा। कहा जाता है कि सूरत बदली पर सीरत नहीं। यह कहावत यहां के जिला अस्पताल के लिए बिलकुल सटीक बैठती है। मेडिकल काॅलेज की मान्यता मिलने के बाद कई सुविधाओं में इजाफा तो हुआ है, परंतु चिकित्सकों व स्टाफ का रवैया आज तक नहीं बदल सका है। यहां दाखिल मरीजों को तो चिकित्सक कई दिनों तक देखने तक नहीं आते और न ही व्यवहारिक रूप से साफ मरीजों की सही देखभाल करते दिखते है। अव्यवस्थाओं को लेकर सुर्खियों में बने रहने वाले इस अस्पताल में ऐसी सूरत में फिर घंटों लाचार बैठी इस महिला को देखने वाला आखिर कौन था। बाहर से रिफर होकर आई ग्रामीण महिला स्वयं हाथ में बाॅटल लिए कुर्सी में बैठी रही। ग्रामीण परिजनों को अस्पताल का कोई ज्ञान नहीं था। अंत में मिडिया ने यह दुष्य देखकर ग्रामीण परिजनों को रषीद कटवाकर चिकित्सक को दिखाकर महिला को भर्ती कराया।