रायगढ़ हिन्दू शास्त्रों में ऋषि मुनियों की 15-20 साल जंगलो,पहाड़ों और कंदराओं में कठोर तपस्या का वर्णन मिलता है। साधारण तौर पर इसे लोग इसे काल्पनिक कथा कहानियां ही समझते है पर छतीसगढ़ के लोग नही। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय में 16 फरवरी 1998 से तपस्या में लीन बाबा सत्यनारायण को यह हठ योग करते 19 वर्ष बीत गए। रायगढ़ में गर्मी के मौषम में तापमान 49 डिग्री तक पहुँचता है। ऐसे गर्म मौषम सहित भीषण ठंड और भरी बरसात में बिना छत के हठ योग में विराजे बाबाजी का दर्शन कर लेना ही अपने आप मे सम्पूर्ण तीर्थ है।
बाबा कब क्या खाते हैं कब समाधि से उठते हैं किसी को पता नहीं। भोजन करते किसी ने नहीं देखा। जीवन किसी काल्पनिक कथा सा लगता है। कोसमनारा से 19 किलोमीटर दूर देवरी, डूमरपाली में एक साधारण किसान दयानिधि साहू एवं हँसमती साहू के परिवार में 12 जुलाई 1984 को अवतरित हुए बाबाजी बचपन से ही आध्यात्मिक बालक थे। एक बार गांव के ही तालाब के बगल में स्थित शिव मंदिर में वो लगातार 7 दिनों तक तपस्या करते रहे। मॉ बाप और गांव वालों की समझाइश पर वो घर लौटे तो जरूर मगर एक तरह से स्वयम शिव उनके भीतर विराज चुके थे।
14 साल की उम्र में एक दिन वे स्कूल के लिए बस्ता ले कर निकले मगर स्कूल नही गए। बाबाजी सफेद शर्ट और खाकी हाफ पैंट के स्कूल ड्रेस में ही रायगढ़ की ओर रवाना हो गए। अपने गांव से 19 किलोमीटर दूर और रायगढ़ से सट कर स्थित कोसमनारा वो पैदल ही पहुचे। कोसमनारा गांव से कुछ दूर पर एक बंजर जमीन में उन्होंने कुछ पत्थरो को इकट्ठा कर शिवलिंग का रूप दिया और अपनी जीभ काट कर समर्पित कर दी। कुछ दिन तक तो किसी को पता नही चला मगर फिर जंगल मे आग की तरह खबर फैलती चली गई और लोगो का हुजूम वहां पहुचने लगा।
कुछ लोगो ने बालक बाबा की निगरानी भी की मगर बाबा जी तपस्या में जो लीन हुए तो आज तक उसी जगह पर हठ योग में लीन है। मां बाप ने बचपन मे नाम दिया था हलधर… पिता प्यार से सत्यम कह कर बुलाते थे। उनके हठयोग को देख लोगो ने नाम दिया बाबा सत्य नारायण..। बाबा बात नही करते .. मगर जब ध्यान तोड़ते हैं तो भक्तों से इशारे में ही संवाद कर लेते है। रायगढ़ की धरा को तीर्थ स्थल बनाने वाले बाबा सत्यनारायण के दर्शन करने वाले भक्तों के लिए अब कोसमनारा में लगभग हर व्यवस्था है किंतु बाबा ने खुद के सर पर छांव करने से भी मना किया हुआ है। आज भी बाबा जी का कठोर तप जारी है…