अम्बिकापुर (उदयपुर से क्रांति रावत)
सरगुजा जिले के उदयपुर विकास खण्ड अंतर्गत ग्राम परसा में स्थित कोल परियोजना परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोल परियोजना में व्यापक अनियमितताओं का आरोप लगाते हुये गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 26 जून से परियोजना को अनिश्चित कालीन बंद कराने कलेक्टर सरगुजा के नाम का ज्ञापन अनुविभागीय अधिकारी उदयपुर को सौंपा है।
ज्ञापन में उल्लेख है कि छत्तीसगढ़ राज्य अंतर्गत पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी बाहुल्य जिला सरगुजा के उदयपुर जनपद के सुदूर वनांचल ग्राम साल्ही, परसा, केते, बासेन संरक्षित प्रजाति के साल सहित शीशम, महुआ, तिलसा, आम, तेंदू आदि पेड़ों से हरा भरा था। समृद्ध जैव विविधता वाला यह क्षेत्र प्रदेश में हरियाली और घने जंगलों के लिए जाना जाता था। वहां पिछले लगभग 3-4 वर्षों में 10 हजार से भी ज्यादा बड़े और हरे भरे सैकड़ों वर्ष से अधिक पुराने पेड़ थे और जिनसे सुदूर वनांचल क्षेत्र की पहचान होती थी। पूरा क्षेत्र हरा भरा रहता था उन सैकड़ों वर्ष पुराने साल सहित अन्य पेंड़ों को कोयला निकालने के लिए विधि विरूद्ध रूप से काट कर तबाह कर दिया गया। वहां की वन भूमि के अतिरिक्त कई पीढ़ियों से काबिज किसानों की पट्टे की भूमि को भी कोयला खदान के लिए शासन द्वारा निजी कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आबंटित कर दी गयी, यहां भी लोगों के साथ छल हुआ ग्रामीण समझते रहे की हमारी जमीन राजस्थान विद्युत निगम को आबंटित हुई है परंतु सुनियोजित तरीके से खनन, परिवहन, संचालन की जिम्मेदारी अदानी कंपनी को दे दी गई। आदिवासी सहित अन्य वर्ग के लोगों की बची हुयी भूमि पर अब बड़े पूंजीपतियों सहित कंपनी के लोगों की नजर गड़ी हुई है। लोगों की जमीनों को औने पौने दामों में छल बल से खरीद कर उन्हे जमीन से बेदखल करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। वनांचल क्षेत्र के सीधे साधे और भोले भाले ग्रामीण अपने बच्चों के सुन्दर भविष्य की आस में पीढ़ियों से निवासरत् और कृषि भूमि को कोयला खदान के लिए दे दिया। भूमि के बदले मुआवजा तो मिला लेकिन वह भी अधिकतर लोगों के लिए व्यर्थ ही साबित हुआ, करोंड़ों का मुआवजा पाये लोग आज गाय भैंसों के तबेले में रहने को मजबूर है। मुआवजे की रकम किस तरह और कहा गयी यह भी बता पाने में लोग असमर्थ है। पैसों के हेराफेरी के कुछ मामले सामने आये उनके प्रकरण अभी भी बस्तों के बोझ तले दबे है, यहां भी दलालों ने खदान प्रभावितों को जमकर लुटा किसी ने बीमा के नाम पर, किसी ने जमीन के नाम पर, किसी ने वाहन के नाम पर तो किसी ने मुआवजे की रकम को दुगुना करने के नाम पर। खदान प्रारंभ करने से पहले ग्रामीणों को बेहतर घर, अच्छी शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य के लिए उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधायें, नियमित और बेहतर नौकरी, चकाचक सड़के, चैबीसों घंटे बिजली की व्यवस्था का हसीन सपनें दिखाये गये थे। खदान प्रारंभ होते ही धीरे धीरे सच्चाई लोगों के सामने आने लगी तो उनके हसीन सपनें जमीन पर बिखरते नजर आये । आज खदान प्रभावित ग्रामों के लोग नौकरी, मुआवजा, घर एवं अन्य सुविधाओं के लिए आंदोलन को विवश हो रहे है। ग्रामीणों द्वारा लगातार दो तीन सप्ताह तक खदान का काम बंद कराने के बाद भी उनकी मांगें पूरी नहीं होती । मांग पूरी होने के बजाये आश्वासन का पिटारा उनके हाथ लगता है, कंपनी और प्रशासन के लोग हर बार ग्रामीणों को ठेंगा दिखाते ही नजर आते है। खदान प्रभावित ग्रामीणों की पीड़ा यही समाप्त नहीं होती है, ग्रामीण परिवेश में रहने वाली महिलायें जिनके आजिविका का साधन वन से जुड़ा था वह भी उनसे छीना जा चुका है। खदान प्रारंभ होने से पहले गांव की महिलायें सामुहिक रूप से एक दूसरे के घरों एवं खेतों में काम करके अपनी आजिविका चलाया करते थे। गर्मी के दिनों में अमूमन माह फरवरी से माह जुलाई के बीच में महुआ, तेंदू, आम, सालबीज, चार, चिरौंजी, करौंदा, जामून जैसे फलों का संग्रहण कर उंचे दामों में बेचकर मोटा मुनाफा कमाकर लोग अपनी दैनिक जरूरतों को पुरा करते थे। इसी बीच में आय का अन्य साधन माहूल पत्ता, तेंदू पत्ता से भी ग्रामीणजन अच्छी खासी रकम इक्ट्ठा कर लेते थे । बारिश के मौसम में धान, तिलहन, मक्का और दलहनों की खेती से इनके साल भर के खाने का इंतजाम हो जाता था। ठंड के मौसम में खेतों में सब्जियां उगाकर, गेंहू और चने की खेती कर अपना भरण पोषण बेहतर तरीके से करते आ रहे थे। वर्तमान स्थिति में ये सारी चीजें इनके लिये बीती हुई बात हो गयी है। पूरे क्षेत्र में जहां हरे भरे पेंड़ पौधे और हरियाली नजर आती थी अब उनकी जगह बड़े बड़े मिट्टी के ढेर, धुल और धुयें के गुब्बार ही नजर आते है। और औद्योगिक अपशिष्ट भी लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रही है। खदान प्रारंभ होने से पर्यावरण इस कदर बिगड़ा की क्षेत्र का जलस्तर काफी नीचे चला गया। कोयले की गर्मी से क्षेत्र के तापमान में दिनों दिन उबाल आ रहा है। लोगों के घरों की छतों और दीवारों में धुल की मोटी चादर जमी हुई नजर आती है। लोगों के साथ साथ मवेशियों के निस्तार की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। कोल खनन कंपनी द्वारा परिवार के कुछ सदस्यों को नौकरी तो दी गयी है परंतु मूल कंपनी में नौकरी ना देकर इनकी सहायक कंपनी या कहें ठेके बतौर इन्हे इन कंपनियों में रखा गया है जिन्हे भविष्य में मतलब निकलते ही दाल में से मक्खी की तरह निकाल फेंके जाने की आशंका प्रबल है। पुरूषों के लिये तो नौकरी के कुछ इंतजाम कर दिये गये परंतु महिलाओं के आय के साधन के लिए कुछ भी उपाय नहीं किये गये। आखिर इसमें महिलाओं की गलती क्या है? हमेशा काम में बंधे रहकर दिन दुनिया से बेखबर अपनी पारिवारिक जीवन में व्यस्त रहने वाली महिलायें आज अपनी बेरोजगारी पर आंसू बहा रही हैं। प्रभावित क्षेत्र की मां, बहन, बेटियां जो स्वतंत्र रूप से अपने गांवों में रहा करती थी, बाहरी लोगों के आने से अब छीटाकंशी का शिकार हो रही है उनका घर से निकलना दूभर हो रहा है। कोल खनन कंपनी द्वारा प्रभावितों को बनाकर दिया जा रहा मकान भी मानक स्तर का नहीं है। बनवाये जा रहे मकानों में एक में भी बीम का प्रयोग नहीं किया गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कंपनी किस कदर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहा है। कंपनी का सौतेला व्यवहार इससे भी समझ में आता है कि कई पीढ़ियों से काबिज भू-स्वामियों को दड़बे नुमा बीस फीट बाई बीस फीट का मकान बगैर बीम के बनाकर दिया जा रहा है। वहीं कंपनी में आकर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए ग्राम गुमगा में वन बीएचके से थ्री बीएचके तक के एसी कमरों के फ्लैट तीन तीन मंजिला तक बनाकर दिये जा रहे है। क्या ऐसा सौतेला व्यवहार इन भू-स्वामियों के साथ होना चाहिए? जिनकी जमीनें गयी वो बद से बदतर स्थिति में रह रहे है और उन्ही की जमीन में आकर काम करने वाले कर्मचारी एसी कमरों में रहे है। कंपनी द्वारा प्रदत्त एसी गाड़ियों में आना जाना कर रहे है क्या यह व्यवहार उचित है? इससे कंपनी का सौतेला व्यवहार स्पष्ट परिलक्षित होता है। कानून में जहाँ एक पेड़ काटने की सजा जेल है। वहां अब तक दस हजार से अधिक पेड़ों को काटकर तबाह किया जा चुका है इनके लिये कोई सजा नही है। पेड़ों को काटकर नष्ट किये जाने की इतनी जल्दबाजी समझ से परे है। एक ओर जहां पूरे विश्व के लोग,पर्यावरणीय संस्था और वैज्ञानिक पर्यावरण को बचाने के लिए चिंतित है, और इनके द्वारा करोंड़ों रूपये इस पर्यावरणीय समस्या से निपटने के लिए खर्च की जा रही है । वहीं हमारे वनांचल क्षेत्र में उपलब्ध प्राकृतिक छटाओं एवं संसाधनों को नष्ट किया जा रहा है इस ओर किसी का ध्यान नहीं है सभी लोग आंख बंदकर अपनी मौन सहमति प्रदान किये हुये है। कोयले की खुदाई और सैकड़ों बेलगाम ट्रालाओं से सड़क मार्ग से इसके परिवहन से सैकड़ों ग्रामीण सहित आमजन काल के गाल में समा चुके है। धुल और धुंए से वातावरण प्रदूषित हो रहा है, लोग त्वचा और श्वास संबंधी बीमारियों के चपेट में आने लगे है। अंधी विकास की कीमत लोग अपनी जान देकर चुका रहे है। कोल खनन कंपनी द्वारा प्रभावितों के लिए किये जा रहे विकास कार्य और प्रयास वास्तविकता से कोसो दूर है सड़कों की हालत खस्ता है, रोड लाईट का कहीं अता-पता नहीं है। लोगों का जीवन बद से बदत्र हो रही है। प्रभावित क्षेत्र का ज्यादातर व्यक्ति अब यही सोचता है क्या यही विकास है? क्या ऐसे ही जीवन की आशा हमने की थी? पांचवी अनुसूची में शामिल क्षेत्र में कोल खनन के नाम पर आदवासियों पर किये जा रहे अत्याचार को लेकर विरोध स्वरूप गोण्डवाना गणतंत्र पार्टी द्वारा अपने सम्बद्ध संगठनों के साथ कोल उत्पादन के साथ-साथ परसा केते से कमलपुर रेलवे साईडिंग, रामानुजनगर रेलवे साईडिंग तक कोल परिवहन अनिश्चित काल के लिए दिनांक 26 जून 2016 से रोका जायेगा। आंदोलन को कुचलने या जबरन कोल उत्खनन और परिवहन करने पर जंगी प्रदर्शन किये जाने की बात ज्ञापन में कही गयी है।
शेर के साथ सेल्फी लेने पर जेडजा के खिलाफ मामला दर्ज
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