अम्बिकापुर
गांधी जी के जीवन में गीता के प्रभाव विषय पर संगोष्ठि का आयोजन महामना मालवीय मिशन द्वारा श्री रणविजय सिंह तोमर के निवास पर किया गया। जिसमें श्रीमद् भागवत के 15वें अध्याय का सामुहिक वाचन एवं परिचर्चा संपन्न हुआ। कार्यक्रम में नगर के प्रबुद्ध एवं विद्यवत जनों ने भाग लेकर गीता के उपदेशों के व्यवहारिकता में सामाहित एवं गांधी जी के जीवन दर्शन से प्रेरणा लेने की बात कही। इस अवसर पर ललित मोहन तिवारी ने कहा कि इस संसार का जैसा स्वरूप शास्त्रो मंे वर्णन किया गया है तथा जैसा हम देखते है और सुनते है वैसा तत्व ज्ञान के पश्चात् ही पाया जाता है अर्थात जिस प्रकार आंख खुलने के पश्चात् स्वप्न का संचार नहीं पाया जाता है। ब्रम्हा शंकर सिंह ने कहा कि गांधी जी जब बैरिस्ट्री का शिक्षा लेने इग्लैण्ड गये तो वहां के विद्यवत जनो ने कहा कि आज हमलोग गांधी जी से गीता का श्लोक सुनेंगे। परन्तु गांधी जी को संस्कृत नहीं आता था इस पर वहां के लोगो ने इनका मजाक उड़ाया। तबसे गांधी जी ने निश्चर्य किया कि भारतीयता की पहचान गीता है हम गीता का अध्ययन करेंगे और वे अंततः पांच अध्याय तक कंठस्थ कर लिये थे। देवेन्द्र दुबे ने गांधी जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गीता का प्रभाव गांधी जी के जीवन में पग-पग पर देखा गया हैै। गीता में धर्म का अर्धम पर विजय बताया गया है और गांधी जी के जीवन में असत्य पर सत्य की विजय के लिये संघर्ष किया है जिसका परिणाम यह हुआ कि अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजो को भारत छोड़कर जाना पड़ा। मणिभूषण पाण्डेय ने कहा कि मनुष्य को शरणागत होकर ईश्वर का आराधना करना चाहिए। अहम भाव का त्याग करना चाहिए। आत्म का कभी नाश नहीं होता इसलिए आत्मा में ही परमात्मा का वास है। सुदर्शन पाण्डेय ने कहा कि गांधी जी के हाथो में हमेशा गीता का पुस्तक देखने को मिलता है। मालवीय जी के जैसा उनका भी प्रिय ग्रंथ गीता रहा है। मदन मोहन मेहता ने कहा कि जिस प्रकार वायु को न गंध से मतलब होता है न सुगंध से। वायु जिस मार्ग से गुजरती है वैसे ही तत्व को अपने साथ ले जाती है। इसी प्रकार आत्मा भी वही कार्य करती है। माधव शर्मा ने कहा कि मनुष्य ईश्वर को अपने ज्ञान से रहित होकर देखे। ईश्वर को भक्ति और सम्र्पण से भजे वह समझे कि मैं कुछ नही कर रहा हू ये तो सब ईश्वर के द्वारा करवाया जा रहा है।
कार्यक्र्रम का संचालन करते हुए पं.राजनारायण द्विवेदी ने कहा कि गांधी जी का जीवन उदारता पूर्ण है। उनके जीवन में गीता एवं वर्तमान परिस्थितियों का समन्वय झलकता है। आभार प्रकट करते हुए रणविजय सिंह तोमर ने कहा कि गीता एक राष्ट्रीय गं्रथ है इसका अध्ययन करन ेसे मनुष्य का सभी समस्याओं का समधान हो जाता है जो भी व्यक्ति गीता का अनुशरण किया है वह जगत के लिये आदरणीय है।