मुंबई. महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए शिवसेना को दिया गया वक्त अब थम गया. लेकिन कांग्रेस और NCP ने अभी तक शिवसेना के समर्थन पर अपना रुख साफ नहीं किया है. वहीं राज्यपाल ने शिवसेना को सरकार बनाने के समय को आगे बढ़ाने से मना कर दिया है. ऐसे में सवाल उठना आम बात है कि, क्या महाराष्ट्र में सरकार बनाने के सारे रास्ते शिवसेना के लिए बंद हो गए हैं..
क्योंकि अब सरकार बनाने का न्योता राज्यपाल ने NCP को दे दिया है. जानकारों की माने तो आज शाम तक कांग्रेस नेताओं को बुलाया भी जा सकता है. शिवसेना को समर्थन के मामले में अब तक जो खबरें सामने आ रही हैं.. उसमें कांग्रेस नेतृत्व ने शीर्ष नेताओं की एक टीम दिल्ली से मुम्बई भेजने से इनकार करते हुए फैसला स्थानीय नेताओं पर छोड़ दिया है. इससे साफ है फैसला लेने में अभी और वक्त लगेगा.
महाराष्ट्र विधानसभा के राजनीतिक समीकरण से साफ है कि बिना कांग्रेस-NCP के समर्थन के शिवसेना की सरकार नहीं बन सकती है. लेकिन कांग्रेस और NCP शिवसेना को समर्थन देने के पहले अपने फायदे और नुकसान का आकलन लगाने में जूटे हैं.. और इस आकलन नें उन्हें कितना समय लगेगा ये साफ-साफ नहीं कहा जा सकता..
महाराष्ट्र के नेताओं के अब तक आ रहे बयानों को देखें तो शिवसेना और NCP जहां राज्य में सरकार बनाने को लेकर जल्दबाजी में हैं.. वहीं कांग्रेस इस मामले पर कुछ भी साफ-साफ बोलने से बच रही है. शिवसेना को समर्थन देने का मामला दिल्ली से मुम्बई बाया जयपुर घूम रहा है. दरअसल, शिवसेना का समर्थन के मामले पर NCP को जहां सिर्फ महाराष्ट्र के राजनीतिक समीकरण का आकलन करना है. जबकि कांग्रेस को पूरे देश के सियासी समीकरण का आकलन करना है, क्योंकि कांग्रेस के कुछ शीर्ष नेता मानते हैं कि शिवसेना को समर्थन से देश में ये साफ संदेश जाएगा कि कांग्रेस ने कट्टर हिंदूवादी पार्टी से हाथ मिला लिया है. ऐसे में समर्थन की चिट्ठी सौंपने से पहले कांग्रेस इस संदेश से पार्टी को होने वाले फायदे और नुकसान का आकलन कर लेना चाहती है.
सूत्रों की माने तो राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले चारों बड़ी राजनीतिक पार्टियों के सरकार बनाने के लिए जरुरी विधायकों की संख्या दिखाने को कह सकते हैं. जिनमें वो तीन पार्टियों को पहले ही बुला चुके हैं. दरअसल, राज्यपाल नहीं चाहते हैं कि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद कोई भी पार्टी राज्यपाल और केन्द्र सरकार पर लोकप्रिय सरकार बनाने की कोशिश न करने का आरोप लगाए. लेकिन राष्ट्रपति शासन लगने के बाद भी राज्य में लोकप्रिय सरकार के गठन की संभावना तब तक बनी रहेगी जब तक विधानसभा भंग कर दूसरा चुनाव कराने का ऐलान न कर दिया जाए.