Krishna Leela, Bhagwan Krishna Guru, Krishna Guru sandipani, Lord Krishna Guru, Guru Dakshina :भगवान कृष्ण का जीवन भारतीय संस्कृति में एक महान योगदान है, जिन्होंने अपने गुरु संदीपनी को गुरु दक्षिणा देने के लिए एक अद्वितीय घटना को निभाया। गुरु दक्षिणा, जो गुरु को समर्पित किया जाता है, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण परंपरा है। इसे महाभारत में भी महत्वपूर्ण रूप से उजागर किया गया है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरु संदीपनी को एक अद्वितीय गुरु दक्षिणा प्रदान की।
कौन थे कृष्ण के गुरु
महर्षि संदीपनी एक विशिष्ट ऋषि और ज्ञानी थे, जिन्होंने उज्जैन में अपने आश्रम में बहुत से शिष्यों को शिक्षा दी। उनके गुरुकुल में वेद पुराण, न्याय शास्त्र, राजनीति शास्त्र, और अन्य विद्याओं की शिक्षा दी जाती थी। भगवान श्रीकृष्ण और उनके भाई बलराम ने भी उनके आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी।
श्रीकृष्ण ने 64 दिनों में अपनी शिक्षा पूरी की थी
भगवान श्रीकृष्ण ने 64 दिनों में अपनी शिक्षा पूरी की थी, जिसमें उन्होंने 18 दिनों में 18 पुराण, 4 दिन में चारों वेद, 16 दिनों में सभी 64 कलाएं और 20 दिन में गीता का ज्ञान हासिल किया था। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरु संदीपनी से पूछा, “गुरुदेव, मैं आपको गुरु दक्षिणा में क्या दूं?” इस पर महर्षि संदीपनी ने उन्हें कहा कि वे उनसे कोई दान न मांगें, क्योंकि उन्होंने उन्हें सब कुछ दे दिया था।
गुरुदक्षिणा में क्या मिला
तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरु दक्षिणा के रूप में उनसे आग्रह किया कि वे कुछ मांगें। तब महर्षि संदीपनी की पत्नी ने गुरुदक्षिणा के रूप में अपने पुत्र की जीवनदान मांगा। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरु के पुत्र को वापस लेने के लिए समुद्र के किनारे जाकर राक्षस पंचजन्य को मार दिया, जिससे उनके गुरु संदीपनी के पुत्र का जीवन बचा। इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी गुरु दक्षिणा पूरी की।
पंचजन्य नामक दैत्य का वध
भगवान कृष्ण ने अपने गुरु संदीपनी के पुत्र को वापस लाने के लिए एक अद्वितीय प्रयास किया। वे सीधे समुद्र के किनारे गए, जहां महर्षि संदीपनी का पुत्र पंचजन्य नामक दैत्य रहता था। भगवान ने समुद्र से आह्वान किया और उन्हें पुत्र को वापस देने के लिए अनुरोध किया। समुद्र ने बताया कि पंचजन्य ने उनके पुत्र को निगल लिया है। भगवान ने तुरंत उस दैत्य को मार दिया और उसके बाद भी गुरु संदीपनी के पुत्र को नहीं पा सके।
फिर भगवान श्रीकृष्ण ने यमराज से उनके वापस लाने का अनुरोध किया। यमराज ने उन्हें पहचान नहीं पाया और उनसे युद्ध करने लगा, परंतु जैसे ही उन्हें भगवान कृष्ण का पहचाना, वे तुरंत गुरु संदीपनी के पुत्र को वापस दे दिया। इसके बाद भगवान ने गुरु माता को उनके खोए हुए पुत्र को लौटा दिया और इस प्रकार अपनी गुरु दक्षिणा पूरी की।
यह घटना भगवान कृष्ण के गुरुभक्ति और गुरु दक्षिणा के महत्व को प्रकट करती है। गुरु दक्षिणा को लेकर उनका यह अद्वितीय प्रयास भारतीय संस्कृति में सराहा गया है और इसे एक प्रेरणास्पद कथा के रूप में स्मरण किया जाता है। इस परंपरा ने हमें सिखाया है कि गुरु की सेवा और उनकी प्रसन्नता से ही हमारे जीवन में सफलता मिलती है।