आदिमानव से जुडे रहस्य से भरा पडा है ये पहाड …….

  • सोनहत ब्लाक के पहाडि़यों में मौजूद है आदीमानव के जमाने की कलाकृतियां
  • संरक्षण के आभाव में दरकती जा रहे प्रचीनतम अवशेष 
  • चटटानों पर कुरेद कर एवं अलग अलग रंगों से चित्रित है शैलाश्रय
 
[highlight color=”red”]कोरिया[/highlight]
[highlight color=”black”]सोनहत से राजन पाण्डेय की विशेष रिपोर्ट [/highlight]
छत्तीसगढ़ राज्य पुरातत्व तथा सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न राज्य है. साथ ही चित्रित शिलाश्रयों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है. राज्य के कोरिया जिले में प्राचीन के काल के अत्यंत पुराने पुरातात्विक अवशेष देखने का मिलते है कोरिया जिले के सोनहत विकासखंड के  घोड़सार बदरा क्षेत्र में बदरा की पहाडि़यों में चित्रित शैलाश्रय घोड़ासार नाम से जाने जाते है, इनमें पशुआकृतियाँ, मानवाकृतियाँ, दैनंदिनी जीवन के कुछ दृश्य मुख्यतः सफेद रंग से चित्रित किये गये है।  हालाकी यहां तक पहुचना आसान नही है यहां पर पहुचने के लिए भीषण पहाड़ चढ़ना पड़ता है इसी तरह कोहबउर जनकपुर क्षेत्र में मुंगेरगढ़ की पहाड़ी पर कोहबउर चित्रित शैलाश्रय स्थित है । यहाँ विभिन्न रंगों से ज्यामितिय आकृतियाँ, मानवाकृतियाँ और आखेट दृश्यों का चित्रण अंकित है ।
इसके अतिरिक्त सोनहत क्षेत्र के गुरूघासीदास राष्ट्रीय उद्यान अंर्तगत स्थित बालमगढ़ी पहांड़ों पर भी कई प्रकार की शौल्याकृतियां बनी हुई है। इन पहाड़ों और गुफाओं  मे आदी मानव के जमाने के अवशेष समेत पुराने शैल चित्रों एवं पाडू लिपी में कई बातों को बताने का प्रयास किया गया है लेकिन आज तक इन चित्रों के रहस्य को ज्यादा नही समझा जा सका है। इन चित्रों के अध्ययन से प्रागैतिहासिक काल के आदि मानवों की जीवन शैली, उस काल के पर्यावरण तथा प्रकृति की जानकारी प्राप्त होती है. यहाँ मध्यमीय काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के शैलचित्र प्राप्त होते है. आदिमानवों द्वारा उकेरे गये इन शैलचित्रों के आधार पर तत्कालीन रहन-सहन, पशु और संस्कृति के साथ-साथ प्राकृतिक अवस्था का भी पता चलता है। कुछ एक शैलचित्रों में शुतुरमुर्ग, डायनासोर और जिराफ से मिलते-जुलते जानवरों को उकेरा गया है, जो इस क्षेत्र में बहुत वर्ष पूर्व इनकी मौजूदगी की ओर संकेत करता है। साथ ही प्राकृतिक कारणों से आये बदलाव को भी ये शैलचित्र रेखांकित करते है।यहां के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किए गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है। शैलाश्रयों की अंदरूनी सतहों में उत्कीर्ण प्यालेनुमा निशान एक लाख वर्ष पुराने हैं। इन कृतियों में दैनिक जीवन की घटनाओं से लिए गए विषय चित्रित हैं। ये हजारों वर्ष पहले का जीवन दर्शाते हैं। यहाँ बनाए गए चित्र मुख्यतः नृत्य, संगीत, आखेट, घोड़ों और हाथियों की सवारी, आभूषणों को सजाने तथा शहद जमा करने के बारे में हैं। इनके अलावा बाघ, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है। यहाँ की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है, जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे।
[highlight color=”black”]संरक्षण की आवश्यकता[/highlight]
इन पुरातात्विक स्थलों को संरक्षण आवश्यकता है क्यूकी पहाड़ों के दरकने एवं अन्य कारणों से अब यह शौल्याकृतियां विलुप्त होती जा रही है। उल्लेखनीय है की कोरिया जिले के पुर्व कलेक्टर अविनाश चंपावत ने पुरातात्विक स्थलों को संरक्षण देने के ग्राम धरोहर समितियों का गठन करने की बात पुर्व में कहा था बावजूद इसके इन स्थानों का सरक्षण नही हो पा रहा है। पुरातत्व अवशेषों के संरक्षण के लिए बैकुण्ठपुर में पुरातत्व संग्रहालय का भवन भी स्थित है। लेकिन इस दिशा में ज्यादा प्रयास नही हो पा रहे है।
[highlight color=”black”]ये है जिले के पुरातात्विक स्थल[/highlight]
कोरिया जिले जिन स्थानों को पुरातात्विक स्थल के रूप में जाना जाता है उनमें हरचैका व घाघरा मंदिर, भंवरखोह, कोटेश्वर, धवलपुर, सती मंदिर, जोगीमठ, नानभान देवगढ़ छिपछिपी, सुखरी तालाब, झापर पहरी, हसदो व हसिया नदी के संगम में मौजूद जीवाश्म, राककाट गुफाएं में हरचैका, घाघरा, गांगीरानी, कछार की शिवगुफा, जटाशंकर की गुफाएं और सीतामढ़ी शामिल है।
इसी तरह राक पेंटिंग में घुड़सार बदरा व कोहवउर, प्राचीनगढ़ में कोरियागढ़ मुरैलगढ़ सेंदरीगढ़ देवगढ़ शिवगढ़ प्राकृतिक स्थलों में अमृतधारा, रमदहा व गौरघाट जलप्रपात, गुरुधासीदास राष्ट्रीय उद्यान, हसदो कछार, चंदन-नर्सरी, गेज, झुमका व बरदर जलाशय, धार्मिक स्थलों में चागदेवी भगवानपुर, कैलाश मंदिर भरतपुर, महामाया मंदिर चनवारीडांड, बाबा भोलनसाह की मजार, गांगीरानी, महामाया मंदिर सोनहत, नीलकण्ठ दसेर, प्रेमाबाग शिव मंदिर, बाजारपारा हनुमान मंदिर, राम मंदिर पैलेस के पास, जगन्ननाथ मंदिर, सती मंदिर, जोगीमठ केशगंवा, ओमकारेश्वर धाम कैलाशपुर और प्रसिद्ध मेलो में गांगीरानी, सिरौली, अमृतधारा, चांगदेवी, कैलाश मंदिर गाय घाट और उर्स मेला को माना जाता है।
[highlight color=”black”]पहाड़ की चोटी से विहंगम दृष्य का नजारा[/highlight]
बदरा के घुड़सरा पहाड़ से विहंगम दृष्य का नजारा बहुत ही अदभुद है आज भी इस पहाड़ की गुफाओं नर बने कलाकृति एवं ग्रामीण अंचल के इस विहंगम दृष्य का नजरा देखने लोग आते रहते है।
इस समाचार के जुडी फोटोग्राफ देखिए…