- हरियाली और राष्ट्रीय उद्यान के बीच हुआ बड़ा फासला
- सभी तरफ पेड़ पौधों में आने लगी हरियाली पर अभी भी उजाड़ है राष्ट्रीय उद्यान
फटाफट के लिए सोनहत से राजन पाण्डेय की विशेष रिपोर्ट
कोरिया
पतझड़ सामाप्त हो चुका है पेंडों पर नए पत्ते भी आ चुके है महुए का सीजन खत्म हंआ अब सरई के पेंडों पर फूल आ चुके है सोनहत क्षेत्र के जंगलों में हल्की बारिश होने के बाद अथवा शाम के समय पूरा जंगल सरई के पत्तों की भीनी भीनी प्राकृतिक खुशबू से भरा रहता है । लेकिन वही विकासखंड सोनहत स्थित गुरूघासीदास राष्ट्रीय उद्यान में स्थिती ठीक विपरीत है आलम है की एक से दो माह पुर्व से जंगलों में लग रही भीषण आग से पूरा राष्ट्रीय उद्यान वीरान एवं उजाड लग रहा है ऐसा लग रहा है मानों किसी ने उद्यान की सुदरता उससे छीन ली हो । वर्तमान समय में राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र के तुररी पानी आमा पानी कछाड़ी एवं अन्य परिक्षेत्र में भीषण आग के कारण पूरा जंगल जला हुआ दिखाई दे रहा है बस चारो तरफ जले हुए पौधों की काली राख ही बची है जिससे अभी तक जंगल हरा भरा नही हो पाया है ।
जानवरों ने भी किया पलायान
राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में भीषण आग के बाद यहां के जानवरों को यहां की आबो हवा राश नही आई अधिकांश जंगली जानवर भी पलायन कर चुके है । कुछ जानवर पानी के आभाव में पलायन कर गए और कुछ को आग की लपट एवं आग से जंगलों के विरानगी ने पलायन करने पर मजबूर कर दिया उल्लेखनीय है की सोनहत से रामगढ जाने वाले रास्ते पर हिरण नीलगाय खरगोश एवं अन्य छोटे बडे जानवरों का मिलना आम था लेकिन वर्तमान समय में चंद बंदरों के अलावा कुछ भी दिखाई नही देना राष्ट्रीय उद्यान के विकाश एवं वन्य प्राणी संरक्षण की दृष्टिी से बुरा संकेत माना जा सकता है ।
प्रति वर्ष आग, लेकिन नियंत्रण नही
एक तरफ राष्ट्रीय उद्यान की नियमावली कहती है की उद्यान के अंदर माचिस एवं अग्नि सामग्री लेकर जाना प्रतिबंधित है लेकिन बावजूद इसके यहां प्रति वर्ष भीषण आग लग जाती है अब सवाल यह उठता है की इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। प्रशासन स्तर पर विभाग द्वारा आग लगने के बाद जांच बैठाई जाती है जांच रिपोर्ट महज कागजों तक सिमित रह जाती है और किसी भी कर्मचारी के उपर कोई कार्रवाई नही होती और नुकसान सिर्फ राष्ट्रीय उद्यान एवं उसमें निवास करने वाले जानवरों को उठाना पडता है ।
लाखों का आबंटन
प्रति वर्ष शासन से विभाग को राष्ट्रीय उद्यान की आग से सुरक्षा एवं वन्य प्राणी संरक्षण हेतू लाखों रूपए की राशी प्राप्त होती है लेकिन बावजूद इसके राष्ट्रीय उद्यान के धरातल पर इसका असर नही दिख रहा है। आखिर इस राशी का उपयोग कहां होता है और यदि होता है तो इसके सकारात्मक परिणाम क्यूं नही आते यह तथ्य समझ से परे है ।
प्रतिदिन पशुचारण
उद्यान के अंदर जहां अनाधिकृत व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है वही उद्यान परिसर में ग्रामीणों द्वारा प्रतिदिन पशुचारण कराया जा रहा है । जिससे छोटे-छोटे पौधे खत्म होते जा रहे है, इसकी जानकारी विभाग को भी है परन्तु विभाग द्वारा अभी तक कोई कार्यवाही नही की गई है। इसके अतिरिक्त पार्क परिक्षेत्र कुछ अधिकारी दो स्थानों के प्रभार के कारण मुख्यालय नही रह पाते है। ऐसे मे उद्यान की सुरक्षा भगवान भरोसे रहती है ।
विकास कागजों तक
राष्ट्रीय उद्यान में वन्य प्राणीयों के पेय जल व्यवस्था हेतू कई स्टाफ डेम बनाए गए है साथ ही कुछ ग्राम एवं बसाहट जो राष्ट्रीय उद्यान सीमा से करीब है वहां पर एनीकट एवं बड़े स्टाफ डेमों का भी निर्माण किया गया है लेकिन यह निर्माण कार्य सिंर्फ कागजों में देखने लायक है क्यूकी इनमें से अधिकांश स्टाफ डेमों में रत्ती मात्र भी पानी नही है और जहां पर पानी की बाहुलता होनी थी वहां पर यह निर्माण कार्य ध्वस्त हो गए जिसके कारण पानी ठहराव मानक अनुसार नही हो पा रहा है।