Kolkata Rape Case, Kolkata Murder Case, Suo Moto, Suo Moto Explainer : बंगाल की घटना ने पुरे देश को झकझोर दिया है। प्रमुख वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की अदालत में कहा “सामान्य स्थिति वापस आनी चाहिए।” इस टिप्पणी का संदर्भ तब था जब अदालत कक्ष डॉक्टरों के संघों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं से भरा हुआ था।
यह बैठक विशेष रूप से कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या की सीबीआई की स्थिति रिपोर्ट की समीक्षा के लिए आयोजित की गई थी। हालांकि इस मामले की सुनवाई पहले से ही कलकत्ता उच्च न्यायालय में चल रही थी, सुप्रीम कोर्ट ने अब इसपर Suo moto यानि स्वत: संज्ञान लेते हुए इस पर ध्यान दिया।
भावनात्मक स्थिति और समाज की प्रतिक्रिया
हालांकि सामान्य स्थिति की कल्पना करना कठिन है, वर्तमान स्थिति में प्रचलित भावनाएँ अभी भी क्रोध, निराशा, भय और थकावट से भरी हुई हैं। यौन उत्पीड़न और लैंगिक हिंसा की घटनाएँ समाज को झकझोर देती हैं और यह सवाल उठता है कि क्या हमने इस मुद्दे पर कोई वास्तविक प्रगति की है।
इतिहास की बात करें तो 1997 में सुप्रीम कोर्ट के विशाखा फैसले ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाव के लिए दिशानिर्देश स्थापित किए थे। इसके बावजूद, 27 साल बाद भी एक युवा डॉक्टर के बलात्कार और हत्या जैसी गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। निर्भया, दिशा, हाथरस और मणिपुर जैसे मामलों की छाया अभी भी हमारे समाज पर मंडरा रही है।
सुप्रीम कोर्ट का Suo Moto और न्यायिक भूमिका
सुप्रीम कोर्ट की स्वत: संज्ञान “Suo Moto” शक्तियां जनहित याचिका के नवाचार के साथ विकसित हुई हैं। संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक और सार्वजनिक कानून मामलों में Suo Moto अधिकार क्षेत्र प्राप्त है। समय के साथ इस प्रावधान की व्याख्या इस प्रकार की गई है कि न्यायालय औपचारिक याचिका की आवश्यकता के बिना भी मामलों की सुनवाई कर सकता है।
स्वत: संज्ञान यानि Suo Moto मामले मीडिया रिपोर्टों, पत्रों और उल्लेखों पर आधारित हो सकते हैं। हाल ही में न्यायालय ने मणिपुर में यौन हिंसा का स्वत: संज्ञान लिया और कलकत्ता उच्च न्यायालय को किशोर लड़कियों के बारे में लैंगिक टिप्पणी करने के लिए फटकार लगाई।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए कदम और प्रोटोकॉल
आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तर्क किया कि जबकि उच्च न्यायालय के “न्यायाधीश” पहले से ही मामले पर काम कर रहे थे, न्यायालय ने इसे स्वत: संज्ञान में लिया क्योंकि इस घटना ने देश भर में डॉक्टरों की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े कर दिए थे।
इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए कोर्ट ने अखिल भारतीय प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए नौ सदस्यीय राष्ट्रीय टास्क फोर्स की स्थापना की। न्यायालय ने यह भी आश्वासन दिया कि वह न केवल दिशानिर्देश तय करेगा बल्कि प्रोटोकॉल को संस्थागत बनाने के लिए एक निर्देश पारित करेगा।
राजनीतिक विवाद और न्यायालय की भूमिका
केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकारें एक-दूसरे की आलोचना करती रही हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की आवाज ने कुछ राजनीतिक विवादों को कम किया है। न्यायालय ने यह संदेश भेजा है कि “हम यहाँ हैं”। सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों से काम फिर से शुरू करने का आग्रह किया और विरोध कर रहे लोगों को आश्वस्त किया कि उनकी आवाज को दबाया नहीं जाएगा।
गुरुवार को डॉक्टरों के संघों ने अदालत को सूचित किया कि इसके स्वत: संज्ञान ने उन्हें राहत प्रदान किया है और उन्हें महसूस कराया है कि उनकी बात सुनी गई है। इसके बाद, कई डॉक्टरों और डॉक्टरों के संघों ने अपनी 11 दिन लंबी हड़ताल वापस लेने की घोषणा की।