छत्तीसगढ़ के इस विधानसभा सीट में आने से कतराते हैं मुख्यमंत्री…आने के बाद कईयों की चली गई हैं कुर्सी…जाने क्या हैं वह राज…?

जांजगीर चाम्पा (संजय यादव)…जांजगीर चाम्पा जिले में अकलतरा विधानसभा का यह सीट सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित यह सीट हैं। लेकिन, इस विधानसभा में एक मिथ्य जुड़ा हुआ हैं। कहा जाता हैं कि, यहां मुख्यमंत्री आने से बचते हैं। इसके पीछे की वजह बताई जाती हैं कि, जो भी सीएम यहां आया हैं, वह सत्ता के सुख से वंचिच हो जाएगा। सीएम भूपेश बघेल यहां पांच साल में एक भी बार नहीं आए। जिस पार्टी का नेता यहां से जीता हैं वह सत्ता से बाहर हो जाती हैं। 15 साल तक रमन सिंह भी अकलतरा नहीं गए थे। लेकिन, 2018 में रमन सिंह यहां गए थे और सत्ता से बाहर हो गए। अविभाजित मध्यप्रदेश में भी 1958 में कैलाशनाथ काटजू और 1973 में प्रकाश चंद्र सेठी अकलतरा गए , इसके बाद दोनों ही नेता दोबारा सीएम नहीं बन सके। 2002 में अजीत जोगी भी अकलतरा गए थे , उसके बाद वो दोबारा सीएम नहीं बन पाए। 2003 से 2018 तक यहां एक ही राजनैतिक पार्टी के चुनाव चिह्न पर कोई चेहरा दोबारा चुनाव नहीं जीता है। सौरभ सिंह बीएसपी और बीजेपी दोनों ही पार्टियों से चुनाव जीत चुके है। यहां 40 फीसदी ओबीसी ,33 फीसदी एससी और 15 फीसदी एसटी वोटर्स अधिक है। दोनों ही वर्ग के मतदाता चुनाव में अहम भूमिका निभाते है। 50 हजार से अधिक अनुसूचित जाति मतदाता यहां किंगमेकर के रोल में रहता है। प्रदूषण का बढ़ता स्तर,सड़क की असुविधा,रोजगार की कमी, मुरूम का अवैध खनन यहां की प्रमुख समस्या है। यहां बीएसपी, कांग्रेस और बीजेपी तीनों ही पार्टियों का बर्चस्व है।

अकलतरा विधानसभा के मुद्दे और समस्याएं….

अकलतरा विधानसभा सभा का बलौदा ब्लॉक घने जंगलों बीच बसा हैं। जिसके कारण यहां रहने वाले अनुसूचित जनजाति के लोग वन सम्पदा पर ही निर्भर हैं। इन क्षेत्रों में बिजली, पानी, सड़क और चिकित्सा व्यवस्था बदहाल हैं। बड़े बड़े कोल डिपो, क्रेसर प्लांट और मुरुम खदान हैं। जिससे स्थानीय लोगों को नौकरी कम और प्रदुषण ज्यादा मिलता हैं। बलौदा क्षेत्र के किसान सिंचाई की समस्या से भी जूझ रहे हैं। नहर का विस्तार नहीं होने के कारण खेती किसानी का काम भी प्रभावित हुआ। हर बार सभी दलों के प्रत्याशी इस समस्या का निराकरण का वादा करते हैं। लेकिन, स्थिति जस की तस हैं। पहले सीसीआई सीमेंट फैक्ट्री के कारण रोजगार के लिए जनता को अच्छा मौका मिला। लेकिन, प्लांट के बंद होने के बाद बेरोजगारी और मंदी हावी रहा हैं।

2018 में अकलतरा सीट का रिजल्ट….

अकलतरा विधानसभा में राष्ट्रीय दलों के साथ साथ स्थानीय और निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी अपना भाग्य आजमाया. 2018 में बीजेपी से सौरभ सिंह, बसपा और जेसीसीजे से ऋचा जोगी, तो कांग्रेस से चुन्नीलाल साहू समेत 16 प्रत्याशी चुनावी मैदान मे उतरे। जिसमें बीजेपी के सौरभ सिंह ने 60502, दूसरे बसपा और जेसीसीजे की प्रत्याशी ऋचा जोगी 58648 और तीसरे स्थान पर कांग्रेस के चुन्नी लाल साहू ने 27668 वोट हासिल किया हैं। 2018 में सौरभ सिंह ने अकलतरा से 1854 मतों से जीत हासिल की थी।

अकलतरा की जनता प्रयोग करने में माहिर…

अकलतरा विधानसभा की जनता किसी पार्टी के चिन्ह के अलावा व्यक्ति विशेष को ज्यादा महत्व देती हैं। यहां पार्टी उतना महत्व नहीं रखता, जितना प्रत्याशी का व्यक्तित्व मायने रखता है। इसलिए अकलतरा विधानसभा में हमेशा नया प्रयोग हुआ हैं। यहां निर्दलीय भी विधायक बने, तो सौरभ सिंह बहुजन समाज पार्टी से विधायक चुने गए हैं। उसके बाद पार्टी छोड़कर बीजेपी जॉइन किये फिर बीजेपी की टिकट में विधायक बने हैं। पुराना इतिहास देखा जाए तो अकलतरा में नए-नए प्रयोग चुनाव में होते रहे इसलिए यहां की जनता का मुड़ जानना आसान नहीं होता हैं। अब यहां 2023 विधानसभा चुनाव में आप पार्टी की एंट्री हो गई हैं।जिससे यह चुनाव चौकोड़ी हो गया हैं। बीएसपी में विनोद शर्मा को टिकट देकर सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला बीएसपी ने अपनाया हैं, तो वही आप पार्टी ने एस सी वर्ग से इंजीनियर आनंद मिरी को टिकट दिया हैं। कांग्रेस एवं भाजपा का पत्ता खुलना बाकी हैं।

बसपा और बीजेपी से विधायक रहे हैं सौरभ…

विधायक सौरभ सिंह कांग्रेसी नेता और अकालतरा के पूर्व विधायक ठाकुर धीरेद्र सिंह के बेटे हैं। जिन्होंने पहले कांग्रेस से अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत की हैं। लेकिन, कांग्रेस से दावेदारी नहीं मिलने पर बसपा का दामन थामा और जीत हासिल की. सौरभ सिंह के 5 साल के कार्यकाल में क्षेत्रीय समस्याओं को विधानसभा में प्रमुखता से उठाने और लोगों के समस्या दूर करने के काम को देखकर बीजेपी ने 2018 के चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया हैं। अकलतरा सीट में सौरभ ने 2018 में भी जीत दर्ज की हैं। हालांकि, 2018 विधानसभा चुनाव में सौरव सिंह का जीत का अंतर काफी कम रहा हैं।