UPSC Success Story, IAS Success Story, First IAS of India : भारत में आईएएस अफसरों के रुतबे और कार्यक्षेत्र की चर्चा होती है, लेकिन उनकी मेहनत और संघर्ष की कहानी अक्सर अनकही रह जाती है। सत्येंद्रनाथ टैगोर भारत के पहले आईएएस अफसर थे जिन्होंने 1864 में भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास की।
उनका जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता में हुआ था और वे प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ ठाकुर के बड़े भाई थे। उस समय सिविल सेवाओं की परीक्षा लंदन में होती थी, जहां भारतीयों के लिए सफलता प्राप्त करना कठिन था। सत्येंद्रनाथ की सफलता ने भारतीयों के लिए इस मार्ग को खोल दिया और उनके प्रयासों ने भारतीय सिविल सेवाओं की दिशा बदल दी।
सत्येंद्रनाथ टैगोर का जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता के मशहूर टैगोर परिवार में हुआ था। उनके पिता महर्षि देबेंद्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं। सत्येंद्रनाथ के परिवार की सामाजिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि ने उन्हें उच्च शिक्षा की ओर प्रेरित किया। वे प्रेसीडेंसी कॉलेज के छात्र रहे और अपनी अकादमिक उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध हुए। उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा को 1864 में पास किया और इस प्रकार वे भारतीय सिविल सेवा के पहले अधिकारी बने।
सिविल सर्विसेज परीक्षा की स्थापना और चुनौतियाँ
भारत में सिविल सर्विसेज परीक्षा की शुरुआत 1854 में हुई, जब ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। उस समय जिन कैंडिडेट्स को सिविल सर्विसेज के लिए चुना जाता था, उन्हें ट्रेनिंग के लिए लंदन के हेलीबरी कॉलेज भेजा जाता था। ब्रिटिश शासन के तहत भारतीयों के लिए सिविल सर्विसेज में प्रवेश की प्रक्रिया बहुत कठिन थी और भारतीयों को असफल करने के लिए एक विशेष सिलेबस तैयार किया गया था। इसमें यूरोपीय क्लासिक्स को ज्यादा अंक दिए गए थे और अंग्रेजी अफसरों के मुकाबले भारतीयों को पास करना मुश्किल था।
इस असमानता और भेदभाव को समाप्त करने के लिए 1854 में ब्रिटिश संसद की सेलेक्ट कमेटी ने लॉर्ड मैकाउले की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें सिविल सर्विस में चयन के लिए मेरिट बेस एग्जाम की सिफारिश की गई। 1855 में लंदन में सिविल सर्विस कमीशन का गठन हुआ और अगले साल से परीक्षा की प्रक्रिया शुरू हुई। इस परीक्षा के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष और अधिकतम आयु 23 वर्ष निर्धारित की गई थी।
सत्येंद्रनाथ टैगोर की उपलब्धि
सत्येंद्रनाथ टैगोर ने इस कठिन परीक्षा को 1864 में पास किया और इस प्रकार भारतीय सिविल सेवा के पहले अधिकारी बने। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी, जिसने भारतीयों के लिए सिविल सर्विसेज की नई राह खोली। उनके भाई, महान कवि रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ ठाकुर) ने भी उनकी सफलता की सराहना की और भारतीय समाज में उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाया। सत्येंद्रनाथ के बाद, केवल तीन साल के भीतर, चार और भारतीयों ने सिविल सर्विसेज परीक्षा पास की और भारतीयों का इस क्षेत्र में प्रवेश बढ़ा।
भारतीय सिविल सर्विस की परिवर्तनकारी यात्रा
सत्येंद्रनाथ टैगोर की सफलता के बाद भारतीय सिविल सर्विसेज में धीरे-धीरे बदलाव आया। भारतीयों की लगातार मेहनत और याचिकाओं के कारण, सिविल सर्विसेज परीक्षा को 1922 से भारत में आयोजित किया जाने लगा। इस बदलाव ने भारतीयों को अपनी क्षमता साबित करने का अवसर प्रदान किया और सिविल सेवाओं में भारतीयों की संख्या में वृद्धि हुई।
सत्येंद्रनाथ टैगोर की यह यात्रा न केवल उनके व्यक्तिगत प्रयासों की कहानी है, बल्कि यह भारतीय सिविल सर्विसेज की स्थापना और विकास की भी एक महत्वपूर्ण कड़ी है। उनकी सफलता ने न केवल भविष्य के भारतीय अधिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी।