बिलासपुर. अपने बुजुर्ग पिता की देखभाल ना करने और असहाय पिता की जरूरतों को पूरा ना करने के एक संवेदनशील मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा निर्णय आया है। जस्टिस दीपक तिवारी के बेंच ने इस मामले में निर्णय सुनाते हुए 7 दिनों के भीतर मकान खाली करवाने के आदेश को बरकरार रखते हुए बेटे की याचिका खारिज़ कर दी है। वहीं हाईकोर्ट ने एफसीआई से सेवानिवृत्त होने और पेंशन मिलने के कारण हर माह 5 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश निरस्त कर दिया है।
मामला रायपुर स्थित कासिमपारा क्षेत्र का है।।जहां के नीरज बघेल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में रायपुर कलेक्टर के द्वारा 7 दिनों के भीतर मकान खाली करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। पिता सेवालाल बघेल ने रायपुर कलेक्टर के समक्ष मेंटेनेंस एन्ड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एन्ड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के प्रावधानों के तहत आवेदन दिया था।
इसमें सुनवाई के दौरान आवेदनकर्ता पिता के द्वारा बताया गया कि रायपुर स्थित यह मकान उनके नाम पर है, जहां उनके बेटा और बहू रहते हैं और दोनों उनकी देखभाल नहीं करते, उनके खाने और इलाज का भी समुचित ध्यान नहीं दिया जाता। यहां तक कि उनके खुद के खरीदे घर में घुसने पर धमकी दी जाती है, यही वजह है कि उन्हें अपने बड़े बेटे के साथ रहना पड़ रहा है।
हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में मकान बेदखली के आदेश के खिलाफ दायर बेटे की याचिका खारिज करते हुए कहा है कि परंपरा की अनदेखी, लोकाचार और नैतिकता में गिरावट की वजह से बुजुर्गों की उपेक्षा की भावना बढ़ी है, ऐसे में उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कानून की जरूरत है।