बिलासपुर. प्रदेश के मीसाबंदियों के लिए राहत भरी ख़बर है. दरअसल, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के द्वारा 2020 में जारी की गई दोनों नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि सभी मीसाबंदियों के रोके गए पेंशन उन्हें दिया जाए. इसके साथ ही राज्य शासन की सभी अपील को खारिज करते हुए 2008 में जारी सम्मान निधि को लागू कर दिया है. दरअसल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद राज्य सरकार ने 2008 से मीसाबंदियों को मिल रहे सम्मान निधि को भौतिक सत्यापन और समीक्षा के नाम पर रोक दिया. इसके खिलाफ मीसाबंदियों ने एक के बाद एक सैकड़ों याचिकाएं छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में लगाई. जिसकी हाईकोर्ट के सिंगल बेंच ने सुनवाई के बाद राज्य शासन को आदेश दिया था कि जनवरी 2019 से जनवरी 2020 तक के मीसाबंदियों के रोके गए पेंशन को दिया जाए. सिंगल बेंच के आदेश के बाद हाईकोर्ट ने करीब 40 अपील प्रस्तुत की.
इस बीच 2020 मे दो नोटिफिकेशन जारी कर शासन ने 2008 के सम्मान निधि के रूल्स को समाप्त कर दिया. इसके खिलाफ 3 मीसाबंदियों ने फिर से हाईकोर्ट की शरण ली. अधिवक्ता सुप्रिया उपासने ने अपने याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी की. सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया था. जिसका आज कोर्ट खुलते ही मीसाबंदियों के पक्ष में फैसला आ गया. अब प्रदेश भर के मीसाबंदियों के रोके गए पेंशन उन्हें दिए जाने का हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है. बता दें कि छत्तीसगढ़ में पूर्व की बीजेपी सरकार ने साल 2008 में 1975-77 के बीच आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA) के तहत जेल गए लोगों को पेंशन देने के लिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि योजना शुरू की थी. इसके तहत राज्य के करीब 325 मीसा बंदियों को ₹15000 से लेकर ₹20000 तक की मासिक पेंशन दी जा रही थी. सत्ता परिवर्तन के बाद जनवरी 2020 में भूपेश सरकार ने ये बोलकर पेंशन बंद कर दी थी कि मीसाबंदी कोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं है जो उन्हें पेंशन दी जाए.
याचिकाकर्ता के वकील सुप्रिया उपासने ने हाईकोर्ट के फैसले की जानकारी देते हुए बताया की… प्रदेश के सारे मीसाबंदियों को जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि 2008 के नियम के तहत पेंशन मिल रही थी. जो इस शासन ने नोटिफिकेशन के तहत उस रूल्स को निरस्त कर दिया था. जिस रूल्स को निरस्त किया गया था नोटिफिकेशन के तहत.. उस अधिसुचना को उच्च न्यायालय द्वारा आज रद्द कर दिया गया है. और सारे मीसाबंदियों को उस पेंशन को वापस शुरू कर.. उन्हें पेंशन देने का आदेश जारी किया है. आज मीसाबंदियों को एक बड़ी राहत उच्च न्यायालय ने प्रदान की है.
मीसाबंदियों के मानदेय को लेकर हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने कहा… 2008 में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया. जो निर्णय मीसाबंदियों के लिए था. मीसाबंदी जिस प्रकार से प्रताड़ित रहे. 19 महीने जेल में रहे, उनका व्यवसाय उनकी रोजी रोटी छीन गयी. और उनके जीवनभर की सम्पति, उनके परिवार की खर्च भी चली गयी. इसको एक राहत देने के लिए भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में 2008 में निर्णय लिया गया की.. इन्हें एक मानदेय की राशि.. पेंशन के रूप में दिया जाए. और ये पूरा निर्णय उन लोगों के जीवन में एक बेहतरी लाने का प्रयास हुआ. कांग्रेस की सरकार आते ही एक बार फिर तुगलकी फैसला भूपेश बघेल ने लिया. और जितने भी मीसाबंदी हमारे थे. जिनको लोकतंत्र सेनानी हमने कहा है. और विधानसभा में हमने इसको मंजूर भी किया. लोकतंत्र सेनानियों को मिलने वाले पेंशन को समाप्त कर दिया. न्यायालय में गये, पक्ष में फैसला आया. और उसके बाद भी सरकार ने उसकी अवहेलना की. फिर ये डबल बेंच में गए. और डबल बेंच में उन्होंने इस बात के लिए भी प्रार्थना किया. की जो बीच की राशि है. जो अप्राप्त है. उसके सहित उन्हें पेंशन वापस फिर से देने की प्रक्रिया शासन फिर से करे. आज एक बहुत ऐतिहासिक जीत हुई. और दूध का दूध और पानी का पानी हुआ. न्यायालय की डबल बेंच ने हाईकोर्ट बिलासपुर ने फैसला किया कि इनके जो शेष राशि है. उस राशि का भी भुगतान किया जाए. और इनको जो मानदेय या पेंशन की राशि दी जाती थी. उसको भी जारी रखा जाए. मुझे लगता है ये बहुत बड़ा सबक है. की किस प्रकार लोगों को कुचला जाता है. किस प्रकार तानाशाही प्रवृति भूपेश बघेल की है. और ये न्यायालय के इस फैसले के बाद मुझे लगता है की प्रजातंत्र की जीत हुई है.