Assembly Election 2024 : हरियाणा चुनाव 2024 में आखिर किसका पलड़ा भारी, कौन बनेगा किंगमेकर, जानें प्रमुख दलों की ताकत, कमजोरियां, चुनौतियाँ और जातीय समीकरण

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Assembly Election 2024, Haryana Election Explainer, Haryana Assembly Election 2024, BJP, Congress : हरियाणा में दुर्गा पूजा से पहले नई सरकार का चुनाव हो जायेगा। चुनावी तारीखों की घोषणा की जा चुकी है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने हरियाणा में हाल ही में बड़े बदलाव किए हैं। पार्टी ने मुख्यमंत्री पद पर बदलाव किया और जननायक जनता पार्टी (जजपा) से नाता तोड़ लिया। इन बदलावों के बावजूद, सवाल यह है कि क्या ये कदम राज्य में बीजेपी को लगातार तीसरा कार्यकाल दिला पाएंगे?

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भाजपा के सामने सत्ता बचाए रखने की चुनौती है, जबकि कांग्रेस को गुटबाजी से उबरकर हार का सूखा समाप्त करने की आवश्यकता है। छोटे दलों जैसे जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो), और हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) के लिए यह चुनाव अस्तित्व का सवाल भी है।

कांग्रेस के लिए थोड़ी उम्मीद

कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनावों में थोड़ी उम्मीद जगी है। कांग्रेस ने एक दशक बाद राज्य की दस में से पांच सीटें जीतीं, लेकिन इसके बावजूद पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट और कुमारी सैलजा गुट के बीच मतभेदों ने पार्टी की एकता को कमजोर किया है। गुटबाजी के चलते कांग्रेस ने किसी एक चेहरा को उभारने से परहेज किया है। पार्टी की रणनीति जाट (22%) और दलित (21%) मतदाताओं को साधने की है, लेकिन इसका नतीजा कितना प्रभावी होगा, यह देखना होगा।

भाजपा के लिए चुनौतियाँ

भाजपा के लिए चुनौतियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले भाजपा हरियाणा में बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं थी। मोदी युग के आगाज के बाद पार्टी पहली बार अपने दम पर बहुमत हासिल करने में सफल रही। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा बहुमत से चूक गई और उसे सरकार बनाने के लिए जेजेपी का सहारा लेना पड़ा। इसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी को कांग्रेस के हाथों पांच सीटें गंवानी पड़ीं, जो भाजपा के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।

जेजेपी में अंतर्विरोध

जेजेपी ने पिछले चुनावों में 10 सीटें जीतकर किंगमेकर का रोल अदा किया था। दुष्यंत चौटाला ने देवीलाल की विरासत को आगे बढ़ाने में सफलता प्राप्त की थी। लेकिन भाजपा से गठबंधन और उसके टूटने के बाद जेजेपी में अंतर्विरोध बढ़ गए हैं। वहीं इनेलो पिछले चुनावों में प्रभाव छोड़ने में असफल रही है और पार्टी को अपनी स्थिति सुधारने की चुनौती है।

जातीय गणित

हरियाणा में जातीय गणित भी चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है। राज्य में जाट 22%, दलित 21%, ओबीसी 30%, ब्राह्मण 8%, वैश्य 5%, पंजाबी 8%, और राजपूत 3.5% हैं। ये जातीय समीकरण चुनावी रणनीतियों को आकार देंगे और दलों की सफलता को प्रभावित करेंगे।

हरियाणा में 1 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में राज्य के प्रमुख दलों की ताकत, कमजोरियों, अवसरों और चुनौतियों पर एक नजर डालते हैं:

भारतीय जनता पार्टी (BJP)

ताकत:
हरियाणा में 10 साल से सत्ता में रहने वाली बीजेपी के पास बूथ स्तर तक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है। पार्टी ने इन चुनावों की तैयारी बहुत पहले से शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और उनके पूर्ववर्ती मनोहर लाल खट्टर की स्वच्छ छवि भी पार्टी की ताकत है। खट्टर के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी, बीजेपी अपनी सरकार द्वारा प्रदान किए गए पारदर्शी प्रशासन को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है।

कमजोरियां:
बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है, जो दो बार से सरकार चला रही पार्टी के लिए एक चुनौती बन सकती है। इसके अलावा, जजपा से नाता तोड़ने के बाद गठबंधन की कमी भी एक कमजोरी हो सकती है।

चुनौतियां:
पार्टी को कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है। कांग्रेस ने हाल के लोकसभा चुनावों में 10 में से 5 सीटें जीती हैं। कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रियता बीजेपी के लिए चुनौती बन सकती है।

अवसर:
पार्टी को मुख्यमंत्री सैनी और खट्टर की स्वच्छ छवि का लाभ उठाने का अवसर है। बीजेपी की पारदर्शी प्रशासन की छवि भी मतदाताओं को आकर्षित कर सकती है।

कांग्रेस

ताकत:
भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे नेता व्यक्तिगत रूप से मतदाताओं के बड़े वर्ग को प्रभावित करते हैं। हुड्डा और सैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस को व्यापक समर्थन मिल सकता है।

कमजोरियां:
हुड्डा और सैलजा के नेतृत्व में अलग-अलग धड़े होने की वजह से पार्टी में आंतरिक मतभेद देखे जा सकते हैं। इसके अलावा, विपक्षी दल कांग्रेस के राज्य में सत्ता में रहने के समय के कथित घोटालों को भी उठाते हैं।

चुनौतियां:
जाट मतों का बंटवारा, जो इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और जजपा जैसी पार्टियों के बीच हो सकता है, कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुँचा सकता है।

अवसर:
कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर को अपने पक्ष में कर सकती है। यह स्थिति पार्टी के लिए एक बड़ा अवसर हो सकता है।

जननायक जनता पार्टी (JJP)

ताकत:
जजपा ने साढ़े चार साल तक सरकार का हिस्सा रहकर राज्य के ग्रामीण इलाकों में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज की है। पार्टी देवीलाल की विरासत पर दावा करती है और जाट समुदाय में अच्छी पकड़ रखती है।

कमजोरियां:
बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद जजपा के लिए राजनीतिक स्थिति कठिन हो सकती है। गठबंधन के बिना चुनाव लड़ने में पार्टी को मुश्किलें आ सकती हैं।

चुनौतियां:
पार्टी के कुछ नेता पाला बदलकर कांग्रेस या बीजेपी में जा सकते हैं, जिससे पार्टी की स्थिति कमजोर हो सकती है।

अवसर:
जजपा के नेता दुष्यंत चौटाला जाट समुदाय का एक प्रमुख चेहरा हैं और युवा मतदाताओं को लुभाने में सक्षम हो सकते हैं।

आम आदमी पार्टी (AAP)

ताकत:
पार्टी दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकारों द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा कर रही है। यह पार्टी खुद को बीजेपी और कांग्रेस के विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रही है।

कमजोरियां:
हरियाणा में आम आदमी पार्टी के पिछले प्रयासों के बावजूद चुनावी सफलता नहीं मिली है।

चुनौतियां:
हरियाणा में बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ना पार्टी के लिए एक कठिन काम हो सकता है।

अवसर:
AAP खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश कर रही है और इससे मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है।

ऐसे में इंडियन नेशनल लोकदल जैसी क्षेत्रीय पार्टी बीजेपी कांग्रेस का गेम बिगाड़ सकती है। हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में विभिन्न दलों की ताकत, कमजोरियां, अवसर और चुनौतियाँ निर्धारित करेंगी कि किस पार्टी को सत्ता में आने का मौका मिलता है। खैर चुनावी रण में कौन सी पार्टी कितनी सफल होती है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।